समाज की असलियत को समझते हुए, मुस्लिम समुदाय से वोट की भीख न मांगें: नजरे आलम
नजरे आलम ने बिहार में मुस्लिम समाज की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए, जदयू नेताओं के वोट की भीख मांगने की टिप्पणी की है। उन्होंने नेताओं से अपील की कि वे मुसलमानों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करें और समाज में असमानता को खत्म करें।
सामाजिक और राजनीतिक असमानता पर नजरे आलम की तीखी टिप्पणी
नज़रे आलम का बयान: मुसलमानों के प्रति गलत टिप्पणियों से बचें
पटना (बिहार) – बिहार में ऑल इंडिया मुस्लिम बेदारी कारवां के राष्ट्रीय अध्यक्ष, नजरे आलम ने राज्य के राजनीतिक नेताओं, विशेषकर जदयू (जनता दल यूनाइटेड) के नेताओं पर कड़ी आलोचना की है. उनका कहना है कि कुछ जदयू नेता मुसलमानों को बार-बार नकारात्मक दृष्टिकोण से देखते हुए, वोट न देने वाले और समाज में कमतर समझे जाने जैसी टिप्पणियां करते हैं. नजरे आलम ने इसे बेहद आपत्तिजनक और गलत बताया और जदयू नेताओं से आग्रह किया कि इस तरह की टिप्पणियों से बचें.
मुसलमान हमेशा काम करने वालों के साथ रहा है
नजरे आलम ने कहा कि मुसलमानों की इतिहास और परंपरा यह रही है कि वे हमेशा उन नेताओं और पार्टियों के साथ खड़े रहे हैं, जो समाज के सभी वर्गों के साथ समान व्यवहार करते हैं और राज्य को प्रगति की दिशा में आगे बढ़ाते हैं. बिहार में मुसलमानों ने हमेशा उन नेताओं का साथ दिया है जो सबको साथ लेकर चलने की नीति पर विश्वास करते हैं, और कभी भी समाज में भेदभाव को बढ़ावा नहीं दिया.
उनका यह भी कहना था कि बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार को इस बात का भली-भांति ज्ञान है कि मुसलमान उनके नेतृत्व का कितना सम्मान करता है, और वह कितनी बार उन्हें अपना समर्थन दे चुके हैं. इसलिए नजरे आलम ने अपील की कि नेताओं को इस प्रकार के बेतुके और बेशर्म बयान से बचना चाहिए, क्योंकि यह केवल समाज में गलत संदेश भेजता है और बिहार के राजनीतिक माहौल को प्रभावित करता है.
राजनीतिक नेताओं का अपमानजनक रुख
नजरे आलम ने राज्य के कई नेताओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि कुछ समय पहले देवेश चंद्र ठाकुर, ललन सिंह, बलियावी और अब संजय झा जैसे नेता मुसलमानों को वोट न देने वाला और समाज में उनकी अहमियत को कम करने वाली बातें कर चुके हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल किया कि अगर ये नेता इतने ईमानदार होते, तो क्या उन्हें मुस्लिम समुदाय से वोट की भीख मांगने की जरूरत पड़ती? नजरे आलम का मानना था कि अगर ये नेता वास्तव में अपने कामों में ईमानदार होते, बिना किसी भेदभाव के समाज के सभी वर्गों से सम्मान प्राप्त करते, तो मुस्लिम समुदाय खुद-ब-खुद उन्हें अपना समर्थन देता और वोट करता.
राजनीतिक असमानता और पार्टी का भविष्य
नजरे आलम ने यह भी चेतावनी दी कि आने वाले विधानसभा चुनाव 2025 में न केवल भाजपा, बल्कि विपक्षी दल भी जदयू को खत्म करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. उनका कहना था कि अगर नीतीश कुमार और उनकी पार्टी को अपने नेता की इमेज सुधारनी है और आगामी चुनाव में सफलता प्राप्त करनी है, तो उन्हें अपने पार्टी के नेताओं को इस तरह की अपमानजनक टिप्पणियों से रोकना होगा. नजरे आलम ने सलाह दी कि नीतीश कुमार को खुद हाथ में कमान लेनी चाहिए और मुस्लिम समुदाय के साथ इंसाफ करना चाहिए. अगर ऐसा होता है, तो मुस्लिम समाज से उन्हें वोट की भीख नहीं मांगनी पड़ेगी, और समाज में उनका सम्मान और समर्थन बढ़ेगा.
समाज के प्रति जिम्मेदारी
इस पूरी बातचीत में नजरे आलम ने यह भी स्पष्ट किया कि हर राजनीतिक पार्टी की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह समाज के हर वर्ग का सम्मान करे और उनके अधिकारों का संरक्षण करे. समाज में किसी भी वर्ग को तंग करके या उसके अस्तित्व को नकार कर राजनीति नहीं की जा सकती. समाज की वास्तविक स्थिति को समझने की जरूरत है, ताकि सभी को समान अवसर मिल सकें.
आगे की दिशा और जिम्मेदारी
बिहार और देश में मुसलमानों की स्थिति सुधारने के लिए राजनीतिक नेतृत्व को एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है. उन्हें समझना होगा कि वोट केवल एक राजनीतिक खेल नहीं है, बल्कि यह समाज के हर वर्ग की असल स्थिति और उनकी जरूरतों का भी प्रतीक है. नजरे आलम के बयान से यह स्पष्ट होता है कि मुस्लिम समुदाय सिर्फ वोट बैंक नहीं है, बल्कि उन्हें भी अन्य समाजों की तरह सम्मान और अवसर की आवश्यकता है.
नजरे आलम ने अंत में यह भी कहा कि अगर बिहार में नेतृत्व को मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का सम्मान करना सीखना है, तो उसे अपनी नीतियों में बदलाव लाना होगा. बिना भेदभाव के अगर राजनीतिक दल काम करते हैं और समाज के सभी वर्गों को समान अवसर देते हैं, तो निश्चित ही बिहार की राजनीति में मुस्लिम समुदाय का विश्वास और समर्थन मिलेगा.
--जावेद रब्बानी / अजय कुमार पाण्डेय.