गया जी: (बिहार) संस्कृत वेद की भाषा है! जो ज्ञान- विज्ञान का जनक है। संस्कृत भाषा का महत्व और महत्ता इसी से प्रकट होती है, कि इसे सुरगिरा अथवा देवभाषा कहते हैं! जो इसकी मृदुलता, समृद्धि और सुग्राह्यता को आभासित करता है। यह सर्वविदित तत्थ है, कि संस्कृत भाषा सभी आर्य भाषाओं की जननी है। यह सत्य है कि भाषा का महत्व माता के समतुल्य होता है। किसी राष्ट्र की ज्ञान निधि उसकी भाषा में ही संचित रहती है। भारत का विशाल वांग्मय इसमें सुरक्षित है। किंतु दुर्भाग्यवश आजादी के बाद हमारे देश की बागडोर संभाले रहनुमाओं ने निष्ठुरता के साथ हमारी अति प्राचीन संस्कृत भाषा और सनातन संस्कृति को धीरे-धीरे मिटाने का प्रयास किया। यह राष्ट्र ही नहीं, संपूर्ण मानवता के लिए घोर अपराध है। यह कथन है विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा एवं कौटिल्य मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक चिकित्सक, डॉक्टर विवेकानंद मिश्र का।
डॉक्टर मिश्र ने बताया कि उत्तराद्वी / मठ के उत्तराधि मठाधीश्वर श्री श्री 1008 श्री सत्यम तीर्थस्वामी जी की परिकल्पना एवं निर्देश के अनुसार उनके तमाम अनुआइयों ने विष्णुपद मंदिर के प्रांगण में स्थित उत्तराधि मठ के पास संस्कृत विद्यालय के भवन निर्माण का कार्य तीव्र गति से प्रारंभ कर दिया है! जिसके तहत इस विद्यालय में छात्रों को वैदिक धर्म, संस्कृति, कर्मकांड तथा दैनिक पूजा पद्धति की शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था होगी। इसके साथ-साथ यह संस्था भारतीय संस्कृति और अपनी संस्कृति के रक्षार्थ प्रचार -प्रसार एवं उत्थान के कार्य को मजबूत आधार प्रदान करने का कार्य करेगी।
भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा एवं कौटिल्य मंच से जुड़े बड़ी संख्या में लोगों ने इस ऐतिहासिक पुनीत कार्य के लिए विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष, शंभू लाल विट्ठल जी, सचिव, गजाधर लाल पाठक जी, प्रसिद्ध समाजसेवी, महेश लाल गुपुत, प्रसिद्ध समाजसेवी, विनय लाल टाटक, मणिलाल बारिक, गजाधर लाल कटरियार, संजय गायब, ऋषिकेश गुर्दा, शीतल, पुष्प लता के अलावे तमाम तीर्थ पुरोहित पंडा समाज के जागरूक लोगों को हृदय से आभार प्रकट किया है! जो इस कार्य में बढ़ चढ़कर रुचि ले रहे हैं। इन तमाम लोगों के प्रति महासभा एवं मंच से जुड़े हुए लोगों ने बहुत-बहुत धन्यवाद के साथ आभार प्रकट किया है!
उनमें प्रमुख रूप से विभिन्न साहित्यिक सांस्कृतिक पुरस्कारों से सम्मानित साहित्यकार आचार्य राधा मोहन मिश्रा माधव , वैचारिक चेतना जागरूकता अभियान के अग्रदूत आचार्य सच्चिदानंद मिश्रा, महासभा एवं मंच के संरक्षक, आचार्य स्वामी वल्लभ जी महाराज, बोधगया मठ के स्वामी सत्यानंद गिरी जी, आचार्य रामाचार्य, स्वामी गोपाल आचार्य जी, शिवचरण बाबू डालमिया, नेत्र रोग विशेषज्ञ, डॉक्टर कैप्टन अशोक कुमार झा, दंत रोग विशेषज्ञ, डॉक्टर श्रीमती गरिमा झा, प्रसिद्ध नेत्ररोग विशेषज्ञ डॉक्टर नंदकिशोर गुप्ता, हरि नारायण त्रिपाठी, सत्येंद्र दुबे, अरुण ओझा, अखिलेश पाण्डेय, ज्योति मिश्रा, डॉक्टर राजीव मिश्रा, महेश मिश्रा, समाजसेवी मृदुला मिश्रा, डॉक्टर ज्ञानेश भारद्वाज, शासकीय संस्कृत शिक्षक, आद्यानंदन मिश्र, प्रियंका मिश्रा, रविभूषण भट्ट, डॉक्टर रवींद्र कुमार, डॉक्टर दिनेश सिंह, राजीव नयन पाण्डेय, किरण पाठक, वरिष्ठ नेत्री, मांडवी गुर्दा, शिवम गौड़, पारस बाबू गौड़, रूबी कुमारी, डॉक्टर अनीता पाठक, अर्चना मिश्रा, आचार्य, अजय मिश्रा, विश्वजीत चक्रवर्ती, अच्युत अनंत मराठे, सरोज देवी गुप्ता, इंजीनियर हिमांशु मिश्रा, प्रसिद्ध चिकित्सक डॉक्टर रानी मिश्रा, शंभू गिरी, पुष्पा गुप्ता, नीलम कुमारी, देवेंद्र मिश्रा कविता राऊत, पार्वती देवी, रंजीत पाठक, पवन मिश्रा, संगीता कुमारी, फूल कुमारी यादव, मुन्नी देवी इत्यादि उल्लेखनीय हैं।
ज्ञात हो कि वर्तमान बिहार के अंदर बिहार – सरकार ने भी जिस प्रकार से संस्कृत भाषा के प्रति उदासीनता दिखाई है! औरंगाबाद जिला में भी लगभग प्रत्येक स्थानों पर जो संस्कृत विद्यालय सरकारी या प्राइवेट ग्रुप से चलाए जाते थे! उसकी भी आज स्थिति बद से बदतर ही है, क्योंकि आज औरंगाबाद जिला के अंदर जितनी भी संस्कृत विद्यालय के नाम पर चलती है! वो सिर्फ कागज के पन्नों पर ही बिहार – सरकार के सरकारी रिकॉर्ड में चलती है, और जब प्रथमा या मध्यमा का परीक्षा देने का समय आता है, तो सिर्फ विद्यालय चलने वाले शिक्षक / प्रधानाध्यापक द्वारा छात्र-छात्राओं या उनके अभिभावक को जानकारी दे दी जाती है, कि इतना तारीख तक ही रजिस्ट्रेशन होगा, या फिर जानकारी दी जाती है कि इतना तारीख तक हीं परीक्षा देने के लिए फॉर्म भरा जाएगा! इसलिए यदि फॉर्म भरना है, तो जितना जल्दी हो सके, इतना फीस जमा करके फॉर्म भर लीजिए! नहीं तो फिर आप लोगों का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा, या फॉर्म नहीं भरा जाएगा!
इसके बाद उस संस्कृत विद्यालय के छात्र-छात्रा सिर्फ परीक्षा के वक्त ही अपना विद्यालय से एडमिट कार्ड लेकर परीक्षा केंद्र पर जाकर परीक्षा देते हैं, और उनका परीक्षा परिणाम भी बिहार सरकार द्वारा निर्धारित समय पर घोषित कर दिया जाता है! जो बिल्कुल ही गलत नियम है, क्योंकि वास्तव में संस्कृत विद्यालय के अंदर कहीं भी धरातल पर पढ़ाई नहीं होती है! जिसके लिए संवाददाता ने पूर्व में लोक़ जनशक्ति पार्टी ( रामविलास ) के प्रदेश अध्यक्ष, माननीय राजू तिवारी से भी औरंगाबाद में ही एक निजी होटल में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस के दौरान सवाल उठाया था! तब उन्होंने भी चिंता व्यक्त करते हुए कहा था, कि आपका कहना सही है कि बिहार में धरातल पर संस्कृत विद्यालय कहीं भी नहीं चलाई जा रही है, सिर्फ बिहार सरकार के रिकॉर्ड में ही संस्कृत विद्यालय चलाए जा रहे हैं! जो गंभीर चिंता का विषय तो है ही, क्योंकि वास्तव में संस्कृत भाषा को तो देव भाषा कहा ही जाता है, और सभी भाषाओं की जननी भी है! ज्ञात हो कि उस वक्त लोक़ जनशक्ति पार्टी ( रामविलास ) जनता दल यूनाइटेड मुखिया एवं बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार की पार्टी से अलग थी!
इसके बाद संवाददाता ने जब कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक एवं वर्तमान बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, राजेश कुमार उर्फ राजेश राम से भी जब उनके बिजौली स्थित मकान पर मुलाकात होने के बाद इसी मुद्दे पर जब सवाल उठाया था, तो उन्होंने कहा था कि आज के समय में संस्कृत भाषा से अधिक तो लोग फ्रेंचाइजी / विदेशी भाषा को सीख रहे हैं, तो बिहार – सरकार भी क्या करें? लेकिन बिहार – सरकार अपना नियमानुकूल तरीके से संस्कृत विद्यालय का भी परीक्षा तो समय पर ले ही रही है, और समय पर छात्र-छात्राओं को परीक्षा परिणाम भी घोषित कर ही दे रही है? इसलिए ऐसी परिस्थिति में यदि विष्णुपद प्रबंध कारिणी समिति संस्कृत भाषा और सनातन को संजीवनी प्रदान कर रहा है, तो बहुत ही सराहनीय कार्य है!
रिपोर्ट: अजय कुमार पाण्डेय / विश्वनाथ आनंद.