✒️ सोहराब खान
खेतासराय, जौनपुर। खेतासराय में 7वीं मोहर्रम का जुलूस बड़ी अकीदत और श्रद्धा के साथ निकाला गया। यह जुलूस हज़रत अब्बास अलमदार की याद में हर साल निकाला जाता है, जो करबला की जंग में अपनी बहादुरी, वफादारी और कुर्बानी के लिए जाने जाते हैं। इस मौके पर पूरा नगर ग़म और इबादत के माहौल में डूबा रहा।
सुबह से ही नगर के अलग-अलग चौकों पर अलम और ताज़िए सजाए जाने लगे थे। मोहल्लों में मातम, नोहा और मरसिये पढ़े जा रहे थे। हर चौक से ताजिएदार अपने-अपने अलम के साथ जुलूस के लिए रवाना हुए। ढोल-तबले की गूंज और ‘या हुसैन’ की सदाओं के साथ जुलूस का माहौल बेहद भावुक और अनुशासित रहा।
दोपहर में सभी ताजिएदार पुरानी बाजार में एकत्र हुए। वहां से सामूहिक रूप से जुलूस इमामबाड़ा के लिए रवाना हुआ। इमामबाड़ा पहुंचने पर करबला के शहीदों की याद में फातिहा पढ़ी गई। इसके बाद सभी ताजिएदार अपने-अपने चौकों की ओर वापस लौटे। जुलूस पूरे समय शांति और व्यवस्था के साथ आगे बढ़ा।
इस जुलूस में पूरब मोहल्ला, डोभी, कासिमपुर, बरतल, बारा, निराला चौक, अजान शहीद सहित करीब एक दर्जन चौकों के ताजिएदार शामिल हुए। हर मोहल्ले की अपनी खास सजावट और ताजिए की अलग शैली थी, जो स्थानीय शिल्प और अकीदत का प्रतीक थी।

पूरे रास्ते में मातम और नोहा का सिलसिला लगातार जारी रहा। ताजिएदार सीने पर हाथ मारते हुए ग़म का इज़हार कर रहे थे। बच्चे, बुजुर्ग और युवा पूरी श्रद्धा के साथ इस जुलूस में शामिल रहे। रास्ते में कई जगह लोगों ने सबीलें लगाईं जहां शर्बत, पानी और चाय वितरित की गई, जो मुहर्रम के सेवाभाव का अहम हिस्सा है।
खास बात यह रही कि इस जुलूस में अन्य धर्मों के लोगों ने भी बढ़-चढ़ कर सहयोग किया। कई जगह स्थानीय हिंदू भाइयों ने रास्ता साफ करवाने, भीड़ को व्यवस्थित करने और पानी वितरण में मदद की। खेतासराय की गंगा-जमुनी तहजीब इस मौके पर पूरी तरह से झलक रही थी।
जुलूस की सुरक्षा व्यवस्था काफी सख्त थी। थाना प्रभारी रामाश्रय राय, उपनिरीक्षक मोहम्मद तारिक, हेड कांस्टेबल संजय पांडेय और पुलिस बल के अन्य जवान पूरी मुस्तैदी से तैनात रहे। पुलिस के साथ-साथ स्थानीय स्वयंसेवकों ने भी भीड़ नियंत्रण और व्यवस्था बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई।
मुख्य आयोजकों में मोहम्मद असलम खान, तबरेज अशरफी, डोभी चौक से मोहम्मद राशिद, नफीस खान, सलीम अहमद, इलियास मोनू, सफर शेख और नियाज खान सहित कई लोगों का खास योगदान रहा। इन्होंने न केवल अपने-अपने चौकों का नेतृत्व किया, बल्कि पूरी व्यवस्था भी बखूबी संभाली।

जुलूस का मुख्य आकर्षण हज़रत अब्बास का अलम रहा, जिसे पूरी श्रद्धा से लोग सिर झुकाकर सलाम कर रहे थे। सातवीं मोहर्रम का यह दिन हज़रत अब्बास की बहादुरी और वफादारी की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने करबला में प्यासे बच्चों के लिए पानी लाने की कोशिश करते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। उनका अलम बहादुरी, इंसानियत और त्याग का प्रतीक माना जाता है।
दिनभर नोहा, मातम और मरसिये पढ़े जाते रहे। करबला की घटनाओं का ज़िक्र कर लोग अपने ग़म का इज़हार कर रहे थे। अज़ादारी का यह माहौल देर रात तक जारी रहा, जिसमें सभी समुदायों के लोग शामिल होकर इंसानियत का संदेश दे रहे थे।
स्थानीय उलेमा और समाजसेवियों ने जुलूस में शामिल लोगों से अपील की कि इस मौके को पूरी शांति और भाईचारे के साथ मनाएं। उन्होंने कहा कि करबला का पैगाम इंसाफ, कुर्बानी और इंसानियत का है, जिसे हमें अपने जीवन में अपनाना चाहिए।
इस वर्ष के जुलूस में युवाओं की भागीदारी भी खूब देखी गई। बच्चों और युवाओं ने अलम सजाने, ताजिए तैयार करने और जुलूस की व्यवस्था संभालने में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इससे यह साफ हुआ कि करबला का संदेश नई पीढ़ी तक पूरी मजबूती से पहुंच रहा है।
खेतासराय का सातवीं मोहर्रम का यह जुलूस केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि सामाजिक सौहार्द का संदेश भी देता है। यहां जाति, धर्म और समुदाय की दीवारें गिर जाती हैं और इंसानियत की आवाज सबसे ऊपर होती है।
जुलूस के समापन पर सभी ताजिएदार अपने-अपने चौकों की ओर लौटे और वहां देर रात तक मातम का कार्यक्रम चलता रहा। पूरे आयोजन में एक बार फिर यह साबित हो गया कि खेतासराय की मिट्टी में मोहब्बत, अकीदत और भाईचारे की खुशबू बसी हुई है।