क्या आप उस भारतीय को जानते हैं जिसने चीन में पांडा को गोद में लिया, नाइजीरिया में बंदूक की नोक पर खड़ा किया गया, और न्यूजीलैंड में 71 मंज़िला बिल्डिंग से स्काई जंप किया — लेकिन आज भी दाल-चावल को अपनी सबसे पसंदीदा डिश मानता है?
मिलिए बाबा करनवीर से। भारत में जन्मे इस ट्रैवल और फूड ब्लॉगर ने अपनी ज़िन्दगी को एक ऐसे सफरनामे में बदल दिया है जिसमें रोमांच, अध्यात्म और स्वाद का अद्भुत संगम है। 100 से ज़्यादा देशों की यात्रा कर चुके करनवीर का सफर वाकई लाजवाब है।
सचमुच कम देखे गए रास्तों पर
बाबा करनवीर की यात्राओं की कहानियां किसी नेटफ्लिक्स सीरीज से कम नहीं लगतीं। तीन देशों की सीमाएं एक ही दिन में पार करना, नाइजीरिया में बंदूक की नोक पर लुटना, या न्यूजीलैंड में गगनचुंबी इमारत से कूदना — रोमांच जैसे इनका पीछा करता रहता है।
ब्रुनेई, कोलंबिया और ईरान जैसे खास देशों को भी इन्होंने अपनी लिस्ट में शामिल किया है।
100 व्यंजन, 1 दिल का खाना
100 से ज्यादा वैश्विक व्यंजन चख चुके करनवीर का स्वाद भी उनके कदमों की तरह दूर-दूर तक गया है। ग्रीक खाना जहां उनकी अंतरराष्ट्रीय पसंद है, वहीं दाल-चावल का सुकून आज भी उनके दिल के सबसे करीब है — यह दिखाता है कि दुनिया घूमने वाले को भी घर का खाना सबसे प्यारा लगता है।
जानवरों के संग अनोखे पल
बाबा करनवीर सिर्फ फूड ब्लॉगर ही नहीं, बल्कि एनिमल ब्लॉगर भी हैं। युगांडा में चिंपांज़ी के साथ खेलना, चीन में पांडा को गोद में लेना, और स्कॉटलैंड में बाज के साथ फोटो खिंचवाना — इनकी ये यादें सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी हैं।
आध्यात्मिक यात्रा
बाबा करनवीर की आध्यात्मिक यात्राएं भी बेहद खास रही हैं — ईरान के अग्नि मंदिर, वेटिकन सिटी, और कंबोडिया के अंगकोर वाट जैसे धार्मिक स्थलों पर इन्होंने आस्था का अनुभव किया। इनके लिए यात्रा सिर्फ बाहर का नहीं, अंदर का भी सफर है।
लेखक, सपना देखने वाले, किस्सागो
इनकी पहली किताब NUSQE को भारत का सर्वश्रेष्ठ नॉन-फिक्शन पुस्तक का खिताब दो बार मिल चुका है, और यह करीब 40 देशों में उपलब्ध है। यह किताब पाठकों को प्रेरणा देती है कि कैसे वे खुद को और दुनिया को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं।
इसके अलावा करनवीर दो और किताबें लिख रहे हैं — एक कॉल सेंटर लाइफ पर, और दूसरी केबिन क्रू के असली भूतिया किस्सों पर आधारित।
कॉलेज फेल से 100 देशों तक
इनकी कहानी आसान नहीं रही। कभी क्रिकेटर, मर्चेंट नेवी अफसर या जियोलॉजिस्ट बनने का सपना था, लेकिन पढ़ाई में असफल हुए। इसके बाद लाइब्रेरी असिस्टेंट, फिर कॉल सेंटर में काम किया, और आखिरकार कैबिन क्रू की नौकरी ने इनके लिए दुनिया के दरवाज़े खोल दिए।
2007–2025 तक की उनकी एयरक्रू लाइफ ने इन्हें 100 देशों की यात्रा करने वाले सबसे कम उम्र के भारतीयों में शामिल किया, और आज वे 2025 के बेस्ट सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और इंटरनेशनल एक्सीलेंस अवार्ड समेत कई पुरस्कार जीत चुके हैं।
आखिरी कॉल
बाबा करनवीर सिर्फ एक कंटेंट क्रिएटर नहीं हैं — वे एक सच्चे किस्सागो हैं, जिनकी कहानियां महाद्वीपों, संस्कृतियों, जानवरों और आध्यात्मिक स्थलों को जोड़ती हैं। चाहे एथेंस की गलियों में स्ट्रीट फूड खा रहे हों या हिमालय की किसी गुफा में ध्यान कर रहे हों, उनका सफर हमें याद दिलाता है:
दुनिया किताबों में पढ़ने के लिए नहीं, जीने के लिए है।