क्या मुद्दाविहीन हो गई है राजनीति? बिहार की राजनीति का बदलता स्वरूप!

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मुद्दा-विहीन राजनीति गंभीर चिंता का विषय:

औरंगाबाद (बिहार): इन दिनों औरंगाबाद जिले में जो राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिल रहा है, उससे स्पष्ट रूप से यह प्रतीत होता है कि अब राजनीतिक दलों के पास जनसरोकार से जुड़े ठोस मुद्दे ही नहीं बचे हैं। किसी भी राजनीतिक सभा या कार्यक्रम में नेताओं के वक्तव्य मुद्दों से भटकते हुए केवल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित रह गए हैं।

हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान एन.डी.ए. के नेताओं ने विपक्षी दलों पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी की दिवंगत माता जी के प्रति दरभंगा में आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया गया था। उन्होंने जनता से अपील करते हुए कहा कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में इसका जवाब दिया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने विपक्ष पर संवैधानिक संस्थाओं में विश्वास नहीं रखने का आरोप भी लगाया।

एन.डी.ए. नेताओं का कहना था कि चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्यक्रम को भी बदनाम करने की कोशिश की जा रही है, जबकि यह कार्यक्रम पूरी पारदर्शिता से आवश्यकताओं के अनुरूप चलाया जा रहा है।

जब संवाददाता ने अंबा में एन.डी.ए. के बैनर तले आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन के बाद बिहार सरकार के उपमुख्यमंत्री माननीय विजय कुमार सिन्हा से इस विवाद पर सवाल किया कि प्रधानमंत्री की माताजी के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग भाजपा के ही कार्यकर्ता द्वारा किया गया था—जैसा कि काराकाट लोकसभा क्षेत्र के माले सांसद राजाराम सिंह का दावा है—तो उपमुख्यमंत्री ने प्रतिक्रिया में कहा कि “यह बात तो आपके ही मुंह से निकल रही है।”

इसके बाद जब संवाददाता ने स्पष्ट किया कि माले सांसद का यह बयान वीडियो के रूप में उपलब्ध है, तो उपमुख्यमंत्री ने कहा कि यदि सांसद ने ऐसा बयान दिया है, तो उनकी गिरफ्तारी भी हो चुकी है, जिसे देश और दुनिया ने देखा है। उन्होंने यह भी कहा कि झूठ बोलने और भ्रम फैलाने वालों को जनता आने वाले समय में जवाब देगी।

वहीं दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन में शामिल माले सांसद राजाराम सिंह और अन्य नेताओं का कहना है कि दरभंगा में आयोजित कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री की स्वर्गीय माताजी के प्रति की गई अभद्र टिप्पणी वास्तव में भाजपा कार्यकर्ता द्वारा ही की गई थी। उनका आरोप है कि यह सब इंडिया गठबंधन को बदनाम करने के लिए एक साजिश के तहत किया गया, जिससे जनता में भ्रम फैले और गठबंधन की छवि को नुकसान पहुंचे।

इन तमाम राजनीतिक उठापटक और आरोप-प्रत्यारोप के बीच अब बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या आज की राजनीति केवल व्यक्तिगत हमलों, भावनात्मक उकसावे और नकारात्मक प्रचार तक ही सिमट कर रह गई है?

क्या कोई भी राजनीतिक दल अब शिक्षा व्यवस्था की गिरती गुणवत्ता, संस्कृत विद्यालयों की दुर्दशा, युवाओं की बेरोजगारी, महिलाओं की आर्थिक स्थिति, भारतीय संस्कृति के संरक्षण और समावेशी विकास जैसे वास्तविक मुद्दों को लेकर संवैधानिक रूप से आवाज़ उठाने को तैयार नहीं है?

आज जनता को जवाब चाहिए कि राजनीति का उद्देश्य जनसेवा है या केवल सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने का साधन बनकर रह गया है।

रिपोर्ट: अजय कुमार पाण्डेय.

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