पटना (बिहार): प्रसिद्ध समाजसेविका एवं मानवाधिकार आयोग की सक्रिय सदस्य श्रीमती सोनी मिश्रा ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए अपने गहन विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हिंसा किसी भी जनआंदोलन की आत्मा को नष्ट कर देती है, जबकि अहिंसक मार्ग ही समाज को सही दिशा देने का कार्य करता है।
वह कहती हैं, “जब हम जनआंदोलन की बात करते हैं, तो वह केवल विरोध नहीं होता, बल्कि यह जनता की भावनाओं, आकांक्षाओं और उनके अधिकारों की पुकार होता है। लेकिन जैसे ही आंदोलन हिंसक होता है, उसका स्वरूप विकृत हो जाता है और उसकी आत्मा नष्ट हो जाती है।”
नेपाल में हिंसक घटनाएँ – दुर्भाग्यपूर्ण परिदृश्य
अपने वक्तव्य में श्रीमती मिश्रा ने नेपाल में हाल ही में हुए हिंसक आंदोलन पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा, “नेपाल एक शांतिप्रिय, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और आध्यात्मिक राष्ट्र है, जहां का इतिहास बौद्ध और हिन्दू मूल्यों से ओतप्रोत रहा है। वहाँ यदि कोई जनांदोलन हिंसा की राह पकड़ लेता है, तो यह केवल उस देश के लिए नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए चिंताजनक विषय है।”
उन्होंने विशेष रूप से उस अमानवीय घटना की निंदा की जिसमें नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी एवं सम्मानित चित्रकार राजलक्ष्मी को जीवित जलाने की कोशिश की गई। उन्होंने कहा कि यह न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि यह दिखाता है कि आंदोलन अपने रास्ते से भटक चुका है और अब वह अराजकता और क्रूरता का रूप ले चुका है।
जनआंदोलन का सही स्वरूप क्या होना चाहिए?
श्रीमती मिश्रा ने स्पष्ट किया कि सच्चे जनांदोलन का आधार लोकतांत्रिक मूल्य, संवाद, सहमति और अहिंसा पर होना चाहिए। उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का उदाहरण देते हुए कहा, “जब गांधीजी ने ‘सत्याग्रह’ और ‘अहिंसा’ को जनांदोलन का आधार बनाया, तभी यह आंदोलन संपूर्ण विश्व के लिए एक उदाहरण बना। उसी प्रकार, आज के आंदोलनों को भी उसी मूल भावना के साथ आगे बढ़ना चाहिए।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि, “हिंसा कभी समाधान नहीं होती। यह केवल अस्थायी भय उत्पन्न कर सकती है, लेकिन बदलाव तभी स्थायी होता है जब वह जनभावनाओं और नैतिक मूल्यों पर आधारित हो।”
पड़ोसी देशों में अशांति का प्रभाव भारत पर
सोनी मिश्रा ने एक और अत्यंत महत्वपूर्ण बात उठाई। उन्होंने कहा कि जब हमारे पड़ोसी देश में अशांति या संघर्ष होता है, तो उसके प्रभाव से हम अछूते नहीं रह सकते। उन्होंने एक सटीक उदाहरण दिया:
“यदि आग पड़ोसी के घर में लगी हो, तो उसकी लपटें और धुआं हमारे घर तक भी पहुँचता है। उसी प्रकार, सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल का असर हमारे देश, समाज और नागरिकों पर भी पड़ सकता है।”
भारत और नेपाल के बीच गहरे सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक संबंध हैं। यदि नेपाल में हिंसा और अराजकता फैलती है, तो इसका असर भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों पर भी पड़ सकता है — चाहे वह आर्थिक गतिविधियों में बाधा हो, सांस्कृतिक रिश्तों में तनाव हो, या सीमाओं पर सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ।
महिला सम्मान और सुरक्षा – समाज का आईना
राजलक्ष्मी जैसी प्रतिष्ठित महिला पर हमला इस बात को दर्शाता है कि आज भी महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान खतरे में है, और यह केवल एक देश विशेष की बात नहीं है। जब समाज में हिंसा बढ़ती है, तो महिलाएँ और बच्चे सबसे पहले उसके शिकार बनते हैं। सोनी मिश्रा कहती हैं, “यदि हम महिलाओं की गरिमा और सम्मान की रक्षा नहीं कर सकते, तो कोई भी जनांदोलन सफल नहीं हो सकता। महिला विरोधी मानसिकता के साथ कोई सामाजिक परिवर्तन संभव नहीं है।”
उन्होंने यह भी कहा कि कला और संस्कृति पर हमला करना, समाज की चेतना पर हमला करने के समान है। एक चित्रकार पर हिंसक हमला केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरे समाज के रचनात्मक ताने-बाने पर आघात है।
शांति और प्रार्थना का संदेश
अपने वक्तव्य के अंत में श्रीमती मिश्रा ने कहा कि आज सबसे ज़रूरी है कि हम शांति, संयम और संवाद के मार्ग को अपनाएं। उन्होंने कहा,
“मैं भगवान पशुपतिनाथ से प्रार्थना करती हूँ कि नेपाल में जल्द से जल्द शांति स्थापित हो, वहाँ का वातावरण सौहार्दपूर्ण बने और लोग मिलकर एक समृद्ध, सुरक्षित और समानता आधारित राष्ट्र का निर्माण करें।”
आज की चुनौतियाँ और हमारा कर्तव्य
आज के समय में जब सामाजिक असंतोष बढ़ रहा है, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और व्यवस्था की असफलता जनता को आंदोलनों की ओर धकेल रही है, तब यह आवश्यक है कि जनता अपने आक्रोश को हिंसा में नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक और रचनात्मक तरीके से व्यक्त करे।
सोनी मिश्रा कहती हैं, “हमारा कर्तव्य है कि हम आने वाली पीढ़ियों को एक ऐसा समाज दें जहाँ संवाद का सम्मान हो, विरोध की आज़ादी हो लेकिन मर्यादा बनी रहे, और जहाँ हर व्यक्ति को न्याय, सुरक्षा और सम्मान मिले।”
अंतिम विचार: क्यों जरूरी है अहिंसा की राह?
इस विस्तृत बयान के माध्यम से सोनी मिश्रा ने जो संदेश दिया है, वह सिर्फ नेपाल या किसी विशेष आंदोलन के लिए नहीं, बल्कि समूचे समाज के लिए है। आज जब दुनिया असहिष्णुता, उग्रवाद और विभाजन की ओर बढ़ रही है, तो ऐसे में अहिंसा का मार्ग ही सबसे शक्तिशाली और टिकाऊ समाधान बन सकता है।
“हिंसा किसी भी समस्या का हल नहीं, बल्कि वह नई समस्याओं की जननी होती है।”
इसलिए, जनांदोलनों को चाहिए कि वे अपने उद्देश्यों को शांति, धैर्य और सत्य के माध्यम से प्राप्त करें। यही सच्ची सामाजिक क्रांति का मार्ग है।
रिपोर्ट: विश्वनाथ आनंद.