कश्मीर हिंसा के बाद भारत में मुसलमानों के जबरन निर्वासन पर विवाद | मानवाधिकार संगठनों ने जताई चिंता

Share this News

New Delhi: भारत में मुसलमानों के खिलाफ एक नई लहर देखने को मिल रही है। कश्मीर में पर्यटकों पर हुए हमलों के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में “अवैध प्रवासियों” को निर्वासित करने का अभियान तेज हो गया है। यह कार्रवाई न केवल विदेशी नागरिकों पर, बल्कि भारत के अपने मुस्लिम नागरिकों पर भी असर डाल रही है।

मुंबई के 52 वर्षीय स्ट्रीट वेंडर मुस्तफा कमाल शेख, जो सड़कों पर झालमुड़ी बेचते हैं, इस अभियान के शिकार बने। पुलिस ने जून में उन्हें हिरासत में लिया। उन्होंने अपने चार पहचान पत्र, जिनमें मतदाता पहचान पत्र भी शामिल था, पुलिस को दिखाए। फिर भी पुलिस ने उन्हें “जाली दस्तावेज़” बताकर गिरफ्तार कर लिया। मात्र पाँच दिनों में उन्हें भारत-बांग्लादेश सीमा पर ले जाकर जबरन निर्वासित कर दिया गया।

क़माल ने बताया कि सीमा पर सुरक्षा बलों ने उन्हें मात्र 300 टका देकर चेतावनी दी, “अगर दोबारा लौटे तो गोली मार दी जाएगी।” वे एक दर्जन से अधिक मुसलमानों के समूह में थे। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद प्रशासन ने उन्हें वापस लाने की कार्रवाई की, लेकिन महाराष्ट्र पुलिस ने इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी।

ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के अनुसार, यह अभियान कश्मीर में अप्रैल में हुए हमले के बाद शुरू हुआ, जिसमें 26 लोग मारे गए थे। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया, जबकि पाकिस्तान ने आरोपों से इनकार किया। रिपोर्ट में कहा गया कि 7 मई से 15 जून 2025 के बीच 1,500 से अधिक लोगों को बांग्लादेश और म्यांमार निर्वासित किया गया, जिनमें भारतीय नागरिक और लगभग 100 रोहिंग्या शरणार्थी शामिल थे।

इन निर्वासनों में कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। असम और गुजरात में कई मुस्लिम परिवारों के घर बुलडोज़र से गिरा दिए गए। ज़्यादातर प्रभावित लोग बंगला बोलने वाले प्रवासी कामगार थे। मानवाधिकार कार्यकर्ता मीनाक्षी गांगुली ने कहा कि साझा भाषा और कमजोर सामाजिक स्थिति ने इन्हें आसान निशाना बना दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह कदम कश्मीर हमले से ध्यान भटकाने का तरीका है।

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाद का मानना है कि इस तरह की कार्रवाई राजनीतिक और चुनावी लाभ के लिए की जा रही है। वहीं गृह मंत्रालय ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

दिल्ली के श्रम विहार में रहने वाले नूर आलामिन का परिवार भी इसका शिकार बना। उन्होंने बताया कि पुलिस बायोमेट्रिक सत्यापन के बहाने उन्हें ले गई और अंडमान से म्यांमार की दिशा में जहाज़ से फेंक दिया गया। म्यांमार के मछुआरों ने बाद में उन्हें बचाया।

दिल्ली पुलिस का कहना है कि यह किसी “जातीय अभियान” का हिस्सा नहीं, बल्कि अवैध प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई है।

लेखक और विश्लेषक जिया-उस-सलाम ने कहा कि मुसलमानों के खिलाफ भय और घृणा फैलाना चुनावों में लाभ देता है। भाजपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान रोहिंग्या शरणार्थियों को निर्वासित करने का वादा किया था और उसे जीत मिली। असम भाजपा ने हाल ही में एक एआई जनित वीडियो जारी किया, जिसमें मुसलमानों को “जनसंख्या बाढ़” के रूप में दिखाया गया।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के अभियान बेरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी वास्तविक समस्याओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए चलाए जाते हैं।

मुस्तफा कमाल अब पश्चिम बंगाल में रह रहे हैं और मुंबई लौटने से डरते हैं। यह घटना भारत में मुसलमानों के अधिकारों और नागरिक सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठाती है। साथ ही, इसने वैश्विक स्तर पर मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान भारत की नीतियों की ओर खींचा है।

Report : ITN Desk.

Share this News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *