6 अक्टूबर 2025, नई दिल्ली — भारत की सबसे ऊँची न्यायालय की प्रतिष्ठा को चुनौती देने वाली एक चौंकाने वाली घटना सोमवार को सुप्रीम कोर्ट परिसर में हुई। CJI (मुख्य न्यायाधीश) बी.आर. गवई पर एक वकील ने जूता फेंकने की कोशिश की, बाद में नारेबाजी कर यह स्पष्ट किया कि यह धार्मिक मान्यताओं के अपमान को लेकर किया गया था। यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि न्यायपालिका की गरिमा और संवैधानिक मूल्य‑संरचना पर एक सीधी चुनौती है।
6 अक्टूबर 2025, दिन सोमवार, समय लगभग 11:35 बजे, कोर्ट नंबर 1 की सुनवाई के दौरान, एक वकील — राकेश किशोर — मंच (डाइस) की ओर बढ़ा और उसने अपना स्पोर्ट्स जूता निकालने की कोशिश की। संदिग्ध रूप से, वह इसे न्यायाधीशों की बेंच पर फेंकना चाहता था।
सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत कार्यवाही की और वकील को पकड़ लिया। मंच से बाहर ले जाते समय, उसने नारा दिया: सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान ।
इस हमले की पृष्ठभूमि — न्यायाधीश गवई की हालिया विवादित टिप्पणियों से जुड़ी पब्लिसिटी — कम नहीं की जा सकती। यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब गवई ने मध्य प्रदेश के खजुराहो में भगवान विष्णु की सात फुट ऊंची मूर्ति पुनर्स्थापना की याचिका के संदर्भ में कहा था:
यह तो पूरी तरह publicity interest litigation है; जाओ और स्वयं देवता से कहो कुछ करो … यदि तुम बड़ी आस्था रखते हो तो तुम प्रार्थना करो, ध्यान लगाओ।
सोशल मीडिया पर इस कथन को व्यापक रूप से मिथ्य रूप से प्रस्तुत किया गया, जैसे कि वह हिंदू धार्मिक भावनाओं का उपहास है। गवई ने बाद में स्पष्ट किया कि उनका तर्क निर्णय दरअसल पुरातात्विक और विधि‑दायित्वों के संदर्भ में था और वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं।
न्यायाधीश का सामना और शांतिपूर्ण व्यवहार
आपको बताते चलें कि हुआ यह कि जूता बेंच तक नहीं पहुँचा, सुरक्षा ने समय रहते हस्तक्षेप किया। गवई ने पूरी घटनाक्रम के बीच शांत चित्त रहते हुए कहा: “इन सब बातों से विचलित न हों। ये मुझे प्रभावित नहीं करतीं”।
उनका यह संयम और धैर्य न केवल न्यायपालिका की मजबूती को दर्शाता है, बल्कि एक व्यक्ति के रूप में उनकी गरिमा और संवैधानशीलता को भी उजागर करता है। यह ध्यान देने योग्य है कि गवई भारतीय न्यायपालिका में सामाजिक पृष्ठभूमि (सवर्ण-जाति से वंचित समुदाय से) से उठे न्यायाधीशों में से हैं — और इस हमले को अनेक विशेषज्ञ जातिगत प्रेरणा से संबद्ध कर रहे हैं।
प्रतिक्रियाएं:
इस घटना पर न्यायिक समुदाय, राजनेताओं और नागरिक समाज ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने सार्वभौमिक प्रेस बयान की मांग की, जिसमें सभी सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों को वैचारिक हमलों की निंदा करनी चाहिए।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे एक अभूतपूर्व, शर्मनाक और घिनौनी घटना बताया, जिसे न्याय की शक्ति से निपटना चाहिए न कि डराया जाना चाहिए।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इसे न्यायपालिका की सर्वोच्च संस्था पर हमला करार दिया, और इस सामाजिक दृष्टिकोण की चेतावनी दी जो आज भी दबदबा और पदानुक्रम की मानसिकता पाले हुए है।
केरल के सीएम पिनारायी विजयन ने इसे संस्थानात्मक उल्लंघन कहा, जो न्यायालय की सुरक्षा की मांग करता है।
वकील संगठन SCAORA ने कहा कि यह अनावश्यक और अति तामिम्यपूर्ण कृत्य है और न्यायपालिका की शक्ति सुरक्षित रखने के लिए suo motu अवमानना प्रक्रियाएँ होनी चाहिए।
पत्रकार आरती तिकू सिंह ने इसे भारतीय गणराज्य पर अपमानजनक हमला कहा और चेताया कि समाज में उग्र कट्टरपंथी विचारों का सामान्यीकरण देश की स्थिरता को हिला सकता है।
इस हमले ने अनेक प्रश्न खड़े किए हैं:
- क्या यह एक व्यक्ति की सोच का चरम प्रदर्शन था, या कहीं कोई गहरी साजिश शामिल है?
- कोर्ट की सुरक्षा व्यवस्था कितनी सक्षम और प्रभावी है?
- क्या कानूनायोग्य सुधार — जैसे वकीलों को कोर्ट प्रवेश की निगरानी, सुरक्षा तंत्र का कड़ा मोड — समय की मांग हैं?
- और क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा के लिए सामाजिक शिक्षा और मीडिया सशक्तीकरण अधिक जरूरी नहीं?
सुधार के उपाय और निष्कर्ष:
इस घटना से यह स्पष्ट है कि नफरत, अतिसंवेदनशीलता और धर्म‑आधारित कट्टरता अब केवल सामाजिक या सार्वजनिक मंचों तक सीमित नहीं है — उन्होंने न्यायपालिका के पवित्र मंदिर — सुप्रीम कोर्ट — तक प्रवेश कर लिया है। यदि हम सचमुच लोकतंत्र और संवैधानिक शासन के रक्षक हैं, तो हमें ठोस कदम उठाने होंगे:
विशेष छानबीन टीम (SIT) बनाई जाए, जिसमें वंचित समुदायों के अधिकारियों को शामिल किया जाए, ताकि पक्षपात और जातिगत उद्देश्य पूरी तरह उजागर हों।
सुरक्षा उपायों में सुधार हो — वकीलों के प्रवेश नियंत्रण, पहचान व स्क्रीनिंग, कोर्ट परिसर की सुरक्षा तंत्रों का सुदृढीकरण।
बार एसोसिएशन और न्यायपालिका मिलकर मुद्दों की निगरानी करें और शिकायतों की त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करें।
सामाजिक शिक्षा, मीडिया और नागरिक जागरूकता बढ़ाएँ ताकि अभद्र टिप्पणियों का गलत व्याख्या नहीं हो सके और हेट स्पीच को रोका जाए।
न्यायपालिका की गरिमा व निष्पक्षता की रक्षा प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी हो — हम सभी को इस दिशा में मुखर और सतर्क रहना चाहिए।
यह घटना न्यायपालिका का अपमान नहीं, बल्कि एक अलार्म है — यह चेतावनी कि यदि हम संवेदनशीलता, सहिष्णुता और विधि व्यवस्था की रक्षा न करें, तो लोकतंत्र की रीढ़ कमजोर हो सकती है। मुख्य न्यायाधीश गवई का शांत और गरिमामय व्यवहार हमें प्रेरित करता है, पर यह केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं है — यह हमारे समाज, हमारी मूल्यों और हमारे संविधान की कहानी है। इसे माफ नहीं किया जाना चाहिए।
रिपोर्ट: ITN Desk.