समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद आजम खान की जेल यात्रा हमेशा से विवादों से घिरी रही है। हाल ही में, जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने एक ऐसा दावा किया है जो न केवल उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा पर सवाल उठाता है, बल्कि भारत के लोकतंत्र की नींव को हिला देने वाला है।
दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज करा रहे आजम खान से मिलने गए पूर्व राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ पत्रकार शाहिद सिद्दीकी ने इस मुलाकात का जिक्र करते हुए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया, जिसमें आजम खान के हवाले से बताया गया कि सीतापुर जेल में उन्हें और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खान को कथित तौर पर धीमा जहर (स्लो पॉइजन) दिया जा रहा था। इस खुलासे ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है, और विपक्षी दलों ने इसे सत्ता की दमनकारी नीतियों का उदाहरण बताया है।

आजम खान, जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक प्रमुख मुस्लिम चेहरा रहे हैं, लंबे समय से योगी आदित्यनाथ सरकार के निशाने पर थे। 2019 के लोकसभा चुनावों में रामपुर से सांसद चुने जाने के बाद से उनके खिलाफ कई मुकदमे दर्ज हुए, जिनमें भैंस चोरी से लेकर अवैध कब्जे और फर्जी दस्तावेजों तक के आरोप शामिल थे। इन मामलों में उन्हें और उनके परिवार को जेल की सजा सुनाई गई। आजम खान ने लगभग 23 महीने सीतापुर जेल में बिताए, जहां उनकी सेहत लगातार बिगड़ती रही। जेल में रहते हुए उन्हें कोरोना संक्रमण हुआ, फेफड़ों में इंफेक्शन हुआ, और कई बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
लेकिन अब रिहाई के बाद यह दावा कि जेल के खाने में स्लो पॉइजन मिलाया जा रहा था, एक नई बहस छेड़ रहा है। शाहिद सिद्दीकी ने अपनी पोस्ट में लिखा कि आजम खान ने बताया, “जेल में उनके और बेटे अब्दुल्ला के खाने में धीमा जहर मिलाया जा रहा था। जैसे ही उन्हें शक हुआ, उन्होंने जेल का खाना लेना बंद कर दिया और खुद भोजन बनाना शुरू कर दिया।”
यह दावा सिर्फ एक व्यक्तिगत शिकायत नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक साजिश की बू आ रही है। शाहिद सिद्दीकी ने आगे लिखा कि आजम खान को विश्वास है कि यह वही तरीका था जिससे मुख्तार अंसारी की मौत हुई थी। मुख्तार अंसारी, जो एक और प्रमुख विपक्षी नेता थे, जेल में रहते हुए दिल का दौरा पड़ने से मर गए थे, लेकिन उनके परिवार ने आरोप लगाया था कि उन्हें स्लो पॉइजन दिया गया था।

आजम खान का यह बयान उसी कड़ी का हिस्सा लगता है, जहां विपक्षी नेताओं को जेल में रखकर उनकी सेहत से खिलवाड़ करने के आरोप लगते रहे हैं। क्या यह संयोग है कि कई विपक्षी नेता जेल में रहते हुए बीमार पड़ते हैं या उनकी मौत हो जाती है?
आजम खान की राजनीतिक यात्रा को समझना जरूरी है ताकि इस दावे के संदर्भ को ठीक से ग्रहण किया जा सके। आजम खान का जन्म 1948 में रामपुर में हुआ था। वे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़े-लिखे हैं और छात्र राजनीति से ही सक्रिय रहे हैं। 1980 में वे पहली बार विधायक बने और उसके बाद कई बार मंत्री रहे। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाने वाले आजम खान ने रामपुर को अपना गढ़ बनाया।
उन्होंने जौहर यूनिवर्सिटी की स्थापना की, जो उनके लिए गर्व का विषय रही, लेकिन यही यूनिवर्सिटी उनके खिलाफ कई मुकदमों का कारण भी बनी। 2017 में भाजपा की सत्ता आने के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई तेज हुई। आजम खान को लगता है कि यह सब उन्हें राजनीतिक रूप से खत्म करने की साजिश है। जेल से बाहर आने के बाद वे दिल्ली में इलाज करा रहे हैं, जहां उनकी सेहत अभी भी नाजुक बनी हुई है।
शाहिद सिद्दीकी, जो खुद एक अनुभवी पत्रकार और पूर्व सांसद हैं, ने इस मुलाकात को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए कहा कि जब विपक्ष के एक बड़े नेता के साथ ऐसा होता है, तो यह सिर्फ आजम खान की हत्या की कोशिश नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र की हत्या की कोशिश है।
उनका यह बयान गंभीर है क्योंकि भारत में लोकतंत्र की रक्षा के लिए विपक्ष की भूमिका अहम है। अगर विपक्षी नेता जेल में असुरक्षित महसूस करेंगे, तो लोकतंत्र कैसे मजबूत रहेगा? इतिहास गवाह है कि भारत में कई बार लोकतंत्र पर हमले हुए हैं। इमरजेंसी के दौर को याद कीजिए, जब इंदिरा गांधी ने विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया था। आज भी, कई राज्यों में विपक्षी नेताओं पर मुकदमे चल रहे हैं, और जेल में उनकी सुरक्षा पर सवाल उठते रहते हैं।
इस दावे के बाद समाजवादी पार्टी ने प्रतिक्रिया दी है। पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा कि आजम खान पर हुए अत्याचारों की जांच होनी चाहिए।
वहीं, भाजपा ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या जेल प्रशासन की तरफ से कोई जांच होगी? सीतापुर जेल के अधिकारियों ने अभी तक कोई बयान नहीं दिया है। अगर यह आरोप सही हैं, तो यह जेल सुधार प्रणाली पर बड़ा सवाल है। भारत में जेलों की स्थिति वैसे भी खराब है – ओवरक्राउडिंग, खराब खाना, और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी। लेकिन अगर इसमें राजनीतिक साजिश जुड़ जाए, तो मामला और गंभीर हो जाता है।
आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान भी इस साजिश के शिकार बताए जा रहे हैं। अब्दुल्ला, जो खुद विधायक रह चुके हैं, पिता के साथ जेल में थे। उनके खिलाफ भी फर्जी जन्म प्रमाण पत्र का मामला था। जेल में स्लो पॉइजन का शक होने पर दोनों ने खुद खाना बनाना शुरू किया, जो जेल नियमों के तहत संभव था। लेकिन यह कितना व्यावहारिक था? जेल में कैदी खुद खाना बना सकें, इसके लिए विशेष अनुमति चाहिए। आजम खान ने बताया कि उन्होंने इस शक के बाद अपनी सेहत पर ध्यान दिया और डॉक्टरों से जांच कराई।
यह घटना विपक्षी नेताओं की सुरक्षा पर बहस छेड़ रही है। हाल के वर्षों में, कई नेता जेल में रहते हुए बीमार पड़े हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी जेल में स्वास्थ्य समस्याएं हुईं। क्या यह सब संयोग है या सिस्टेमेटिक तरीके से विपक्ष को कमजोर करने की कोशिश? विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में राजनीतिक कैदियों की संख्या बढ़ रही है, और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को दखल देना चाहिए।
आजम खान का यह खुलासा न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बनेगा। अगर जांच हुई और आरोप साबित हुए, तो यह सरकार की छवि पर बुरा असर डालेगा। वहीं, अगर यह सिर्फ आरोप साबित हुए, तो विपक्ष पर राजनीतिक लाभ लेने का इल्जाम लगेगा। लेकिन एक बात साफ है – लोकतंत्र में विपक्ष की आवाज दबाना खतरनाक है। जैसा कि शाहिद सिद्दीकी ने कहा, “वैसे भी कई बार लोकतंत्र की हत्या का प्रयास किया गया है।” क्या हम एक ऐसे दौर में हैं जहां जेल राजनीतिक हथियार बन गई है?
इस पूरे प्रकरण से सीख यह मिलती है कि न्याय व्यवस्था को पारदर्शी बनाना जरूरी है। आजम खान जैसे नेता, जो दशकों से राजनीति में सक्रिय हैं, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए। उम्मीद है कि इस दावे की निष्पक्ष जांच होगी और सच्चाई सामने आएगी। तब तक, यह खबर राजनीतिक बहस का केंद्र बनी रहेगी।
-ITN Desk.