फरहान सिद्दीकी (कार्यकारी संपादक)
“वसुधैव कुटुंबकम्” – यह भारतीय दर्शन का वह अमर सूत्र है, जो विश्व को एक परिवार मानने की प्रेरणा देता है। यह विचार हमें सिखाता है कि मानवता की रक्षा और दूसरों के दुख-दर्द के प्रति सं Histogram: Sensitivity: High संवेदनशीलता, सहानुभूति और एकजुटता का प्रतीक है। लेकिन आज के दौर में इस सिद्धांत को वास्तव में जीने वाले लोग कम ही मिलते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं 77 वर्षीय प्रोफेसर वीके त्रिपाठी, जो गाजा में हो रहे जनसंहार और भुखमरी के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से लोगों को जागरूक कर रहे हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि इस नेक काम के लिए उन्हें दिल्ली पुलिस के अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ा। यह घटना न केवल दुखद है, बल्कि हमारे समाज और व्यवस्था के रवैये पर गंभीर सवाल उठाती है।
15 अगस्त 2025 को, स्वतंत्रता दिवस के दिन, प्रो. वीके त्रिपाठी राजघाट पर पूरे दिन उपवास पर बैठे थे। उनका मकसद था गाजा में हो रही भुखमरी और हिंसा के बारे में लोगों को जागरूक करना। एक साधारण बैनर के साथ, वह चुपचाप अपनी बात रख रहे थे, बिना किसी हंगामे या उपद्रव के। लेकिन शाम करीब 6 बजे दिल्ली पुलिस के कुछ अधिकारियों ने उनके पास पहुंचकर उन्हें अपमानित किया। यह व्यवहार उस देश में हुआ, जो “वसुधैव कुटुंबकम्” के सिद्धांत को गर्व से दोहराता है। आखिर एक बुजुर्ग व्यक्ति, जो मानवता के लिए आवाज उठा रहा था, उसे इस तरह का व्यवहार क्यों सहना पड़ा?
प्रो. वीके त्रिपाठी: मानवता के सच्चे सिपाही
प्रो. वीके त्रिपाठी, एक सेवानिवृत्त शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता, लंबे समय से सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए काम कर रहे हैं। 77 साल की उम्र में भी वह न केवल भारत में, बल्कि विश्व स्तर पर हो रहे अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। गाजा में चल रहे संकट ने उन्हें गहरे तक प्रभावित किया है। वहां के लोगों की भुखमरी, बमबारी और दमन की खबरें उन्हें चैन से नहीं बैठने देतीं। महीनों से वह दिल्ली की सड़कों पर पर्चे बांटकर, छोटी-छोटी सभाओं में बोलकर और शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के जरिए लोगों को इस मुद्दे पर जागरूक कर रहे हैं।15 अगस्त को, जब पूरा देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, प्रो. त्रिपाठी ने राजघाट पर उपवास करने का फैसला किया। उनका उद्देश्य था गाजा के लोगों की पीड़ा को भारतीय जनता के सामने लाना। एक साधारण बैनर और कुछ पर्चों के साथ वह वहां मौजूद थे, न कोई नारेबाजी, न कोई हिंसा। लेकिन दिल्ली पुलिस का रवैया उनके प्रति ऐसा था, मानो वह कोई बड़ा अपराध कर रहे हों।
दिल्ली पुलिस का व्यवहार: सवालों के घेरे में
शाम करीब 6 बजे दिल्ली पुलिस के कुछ अधिकारी प्रो. त्रिपाठी के पास पहुंचे। उन्होंने न केवल उनके शांतिपूर्ण प्रदर्शन को रोकने की कोशिश की, बल्कि उनके साथ अपमानजनक व्यवहार भी किया। सूत्रों के अनुसार, पुलिस ने उनसे सवाल-जवाब किए और उनके बैनर को हटाने की बात कही। एक 77 वर्षीय बुजुर्ग, जो बिना किसी हथियार या हिंसक इरादे के, सिर्फ मानवता की पुकार उठा रहे थे, उनके साथ ऐसा व्यवहार क्यों?यह घटना कई सवाल खड़े करती है। क्या भारत में शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार नहीं है? क्या मानवता के लिए आवाज उठाना अब अपराध है? दिल्ली पुलिस का यह व्यवहार न केवल प्रो. त्रिपाठी के प्रति अन्यायपूर्ण था, बल्कि यह उस भारतीय लोकतंत्र के मूल्यों पर भी सवाल उठाता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करता है।
गाजा का संकट: एक वैश्विक त्रासदी
गाजा में चल रहा संकट कोई नया मुद्दा नहीं है। वर्षों से वहां के लोग हिंसा, बमबारी और भुखमरी का सामना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि गाजा में लाखों लोग भोजन, पानी और दवाइयों की कमी से जूझ रहे हैं। बच्चों और महिलाओं की स्थिति विशेष रूप से दयनीय है। प्रो. त्रिपाठी जैसे लोग इस त्रासदी को दुनिया के सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वैश्विक समुदाय इस मुद्दे पर ध्यान दे और मानवीय सहायता प्रदान करे।प्रो. त्रिपाठी का मानना है कि भारत, जो विश्व शांति और मानवता की बात करता है, को इस मुद्दे पर नेतृत्व करना चाहिए। उनका कहना है, “हम एक परिवार हैं। गाजा में जो हो रहा है, वह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। अगर हम चुप रहे, तो हमारी मानवता भी चुप हो जाएगी।”
समाज का रवैया: उदासीनता या जागरूकता?
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग अपनी निजी समस्याओं में इतने उलझे हैं कि वैश्विक मुद्दों पर ध्यान देना मुश्किल हो गया है। लेकिन प्रो. त्रिपाठी जैसे लोग हमें याद दिलाते हैं कि मानवता की कोई सीमा नहीं होती। वह हजारों मील दूर हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, जबकि हम अपने आसपास के मुद्दों को भी नजरअंदाज कर देते हैं।उनके इस प्रयास को समाज का एक हिस्सा सराह रहा है। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने उनके साहस और समर्पण की तारीफ की है। एक यूजर ने लिखा, “प्रो. त्रिपाठी जैसे लोग इस दुनिया को बेहतर बनाते हैं। हमें उनके साथ खड़े होने की जरूरत है।” लेकिन दूसरी ओर, कुछ लोग इसे “विदेशी मुद्दा” बताकर नजरअंदाज कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हम वास्तव में “वसुधैव कुटुंबकम्” के सिद्धांत को मानते हैं?
दिल्ली पुलिस की भूमिका: सुधार की जरूरत
दिल्ली पुलिस का प्रो. त्रिपाठी के साथ व्यवहार न केवल व्यक्तिगत स्तर पर गलत था, बल्कि यह हमारी पुलिस व्यवस्था की मानसिकता को भी दर्शाता है। पुलिस का काम जनता की सुरक्षा करना और कानून-व्यवस्था बनाए रखना है, न कि शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को परेशान करना। इस घटना ने एक बार फिर पुलिस सुधार की जरूरत को उजागर किया है।पुलिस को यह समझने की जरूरत है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन लोकतंत्र का हिस्सा हैं। प्रो. त्रिपाठी जैसे लोग, जो बिना किसी हिंसा के अपनी बात रख रहे हैं, उन्हें सम्मान और सुरक्षा मिलनी चाहिए, न कि अपमान।
प्रो. त्रिपाठी का संदेश: मानवता की पुकार
प्रो. वीके त्रिपाठी का संदेश साफ है – “हमें इंसानियत को बचाना होगा। गाजा में जो हो रहा है, वह सिर्फ गाजा का मसला नहीं, बल्कि पूरी मानवता का मसला है।” वह चाहते हैं कि भारत के लोग इस मुद्दे पर जागरूक हों और वैश्विक स्तर पर शांति और न्याय के लिए आवाज उठाएं।उनका यह उपवास और जागरूकता अभियान न केवल गाजा के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा है। वह हमें सिखाते हैं कि उम्र, परिस्थितियां या सामाजिक दबाव कोई मायने नहीं रखते, जब बात इंसानियत की आती है।
निष्कर्ष: एक प्रेरणा, एक चुनौती
प्रो. वीके त्रिपाठी जैसे लोग आज के दौर में दुर्लभ हैं। 77 साल की उम्र में, जब ज्यादातर लोग आराम की जिंदगी चुनते हैं, वह सड़कों पर उतरकर मानवता के लिए लड़ रहे हैं। लेकिन दिल्ली पुलिस का व्यवहार हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमारा समाज और हमारी व्यवस्था वास्तव में ऐसे लोगों का सम्मान करती है?”वसुधैव कुटुंबकम्” सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है। प्रो. त्रिपाठी हमें यह जिम्मेदारी याद दिला रहे हैं। हमें उनके साथ खड़े होने की जरूरत है, न कि उन्हें अपमानित करने की। यह समय है कि हम उनके प्रयासों को समर्थन दें, गाजा के मुद्दे पर आवाज उठाएं और एक बेहतर, अधिक मानवीय विश्व के लिए काम करें।जय हिंद, जय मानवता!