प्रोफेसर ख्वाजा सलाउद्दीन: एक साधारण जीवन की अधूरी प्रेरणादायक दास्तान

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मुजफ्फरपुर : प्रोफेसर डॉ. ख्वाजा सलाउद्दीन का यूं अचानक चले जाना शिक्षा जगत के लिए गहरी क्षति है। शांत स्वभाव, अत्यंत सादगी पसंद और पूरी तरह अध्ययन व शोध में रमे रहने वाले सलाउद्दीन साहब ने एक ऐसे समय दुनिया को अलविदा कह दिया जब उन्होंने शिक्षण और शोध के क्षेत्र में अभी-अभी अपनी यात्रा आरंभ की थी।

उनके निधन की खबर ने पूरे शिक्षा समुदाय को शोक में डुबो दिया है। शुक्रवार की रात जब उन्हें पटना एयरपोर्ट कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया, तो हर आंख नम थी। लौटते वक्त लोगों को उनका पसंदीदा शेर याद आया, जो जैसे इस घड़ी के लिए ही लिखा गया था:
“अब आए हो तो क्या है यहां देखने के लिए
यह जगह कब से है वीरान, वो लोग कब के गए।”

उनके बड़े भाई, वरिष्ठ पत्रकार और वर्तमान में ऊर्जा विभाग, बिहार सरकार में प्रोटोकॉल अफ़सर ख्वाजा जमाल खुद को संभाल नहीं पा रहे थे। छोटे भाई को अंतिम विदाई देना उनके लिए बेहद कठिन पल था। लेकिन उन्होंने हिम्मत दिखाई, और लोगों ने उनके धैर्य और साहस की सराहना की।

प्रोफेसर सलाउद्दीन ने अभी हाल ही में शिक्षा जगत में कदम रखा था। उन्होंने अपने पिता, स्वर्गीय ख्वाजा अमीनुद्दीन की विरासत को आगे बढ़ाना शुरू ही किया था। उनके पिता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय में उर्दू साहित्य के प्रोफेसर थे और अंग्रेजी में भी गहरी पकड़ रखते थे। वे भी एक शांत और अध्ययनशील व्यक्तित्व थे, जिनसे प्रो. सलाउद्दीन ने जीवन की प्रेरणा ली।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा नालंदा में हुई और जन्म गया जिले में। उनके दादा ख्वाजा मोइनुद्दीन गया समाहरणालय में अधिकारी थे। बाद में पूरा परिवार मुजफ्फरपुर आ गया, जहां प्रो. सलाउद्दीन ने उच्च शिक्षा प्राप्त की, डॉक्टरेट किया और रिसर्च फेलोशिप भी यहीं से पूरी की।

उन्होंने जूनागढ़ के बहाउद्दीन साइंस कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्य किया, फिर श्रीनगर स्थित आकाश इंस्टिट्यूट में बॉटनी के फैकल्टी बने। इसके बाद रिज़ोनेंस एडवेंचर्स, भुवनेश्वर में उन्होंने सेवा दी। अंततः उन्हें ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के एम.आर.एम कॉलेज में नियुक्त किया गया, और 2023 में विश्वविद्यालय ने उन्हें बॉटनी विभाग में प्रोन्नत किया।

इस दौरान वे शोध कार्यों में गहराई से संलग्न रहे। उनके शोध ‘जर्नल ऑफ बॉटनिकल सोसाइटी ऑफ बंगाल’ और यूजीसी केयर के प्रतिष्ठित जर्नलों में प्रकाशित हुए। स्प्रिंगर पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित “एप्लाइड माइकोलॉजी” में भी उनके शोध कार्य को जगह मिली।

उनकी लिखी दो पुस्तकें – “एक्सक्लूसिव बॉटनी फॉर नीट” (Academic Enclave द्वारा प्रकाशित) और “बॉटनी फॉर नीट” (Scientific Publishers, Jodhpur से) – छात्रों में काफ़ी लोकप्रिय रहीं।

बहुत कम समय में उन्होंने जिस तरह शिक्षा और शोध के क्षेत्र में योगदान दिया, वह प्रेरणादायक है। उनके जाने से जो रिक्तता बनी है, उसे भरना मुश्किल है। वे एक आदर्श शिक्षक, मार्गदर्शक और विनम्र इंसान थे। उनका जीवन नई पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा बना रहेगा।

रिपोर्ट: ग़ज़नफ़र इकबाल, मुजफ्फरपुर.

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