वक्फ संशोधन अधिनियम 2025: मुस्लिम नेताओं ने क्या कहा?

Share this News

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025, जिसे हाल ही में वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के रूप में संसद द्वारा पारित किया गया है, भारत में मुस्लिम धार्मिक और परोपकारी संपत्तियों के प्रशासन में महत्वपूर्ण बदलाव लाता है।

सरकार का दावा है कि यह विधेयक पारदर्शिता लाने, दुरुपयोग रोकने और जरूरतमंद मुस्लिम वर्गों, विशेष रूप से विधवाओं और पासमांदा समुदायों के हित में लाया गया है जो कि कभी हो ही नहीं सकता।

मुस्लिम समुदाय और उनके प्रमुख संगठन इसे सांप्रदायिक एजेंडे और संपति हड़पने का हिस्सा मानते हैं, और उनका आरोप है कि यह विधेयक मुस्लिम संपत्तियों पर नियंत्रण की साजिश है।

मुख्य बदलाव:

  1. वक्फ बोर्डों में अब गैर-मुस्लिम सदस्य नियुक्त किए जा सकेंगे, जो मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों के निर्णयों में भाग लेंगे।
  2. “वक्फ बाय यूजर” जैसे पुराने प्रावधान को हटा दिया गया है, जिससे कई ऐतिहासिक संपत्तियों का वक्फ दर्जा समाप्त हो सकता है।
  3. सरकारी हस्तक्षेप अब बढ़ गया है — जैसे संपत्ति का सर्वेक्षण, विवादों का निपटान और प्रशासनिक प्रक्रिया।
  4. एक डिजिटल पोर्टल के माध्यम से सभी वक्फ संपत्तियों की केंद्रीकृत निगरानी की जाएगी।

समुदाय की प्रतिक्रिया और विरोध:

विधेयक के पारित होते ही मुस्लिम नेताओं और संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस विधेयक को “असंवैधानिक” और “अल्पसंख्यक अधिकारों का उल्लंघन” बताया है।

मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, AIMPLB के वरिष्ठ सदस्य, ने कहा: “जेपीसी (संसदीय समिति) में हमारी आपत्तियां नजरअंदाज कर दी गईं। वक्फ संपत्तियां इस्लामी आस्था का हिस्सा हैं।”

एसक्यूआर इलियास ने विधेयक की तुलना बाबरी मस्जिद विध्वंस से करते हुए कहा: “यह उससे भी ज्यादा विनाशकारी सिद्ध हो सकता है।”

AIMPLB ने X (पूर्व में ट्विटर) पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश का स्वागत किया, लेकिन मस्जिदों को निशाना बनाए जाने की आशंका व्यक्त की।

राजनीतिक और धार्मिक नेतृत्व की प्रतिक्रियाएं:

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक को “मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला” बताया और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। उन्होंने X पर इस विधेयक को
“मुस्लिम संपत्तियों की चोरी” कहा, जो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से वायरल हुआ।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि “सरकार बहुसंख्यकवादी रवैये से काम कर रही है और यह विधेयक वक्फ की स्वायत्तता को खत्म कर देगा।”

उनके भाई अरशद मदनी ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की।

कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने “सरकार की साजिश पर अस्थायी रोक लगाई है, लेकिन व्यापक चिंताएं अभी भी कायम हैं।”

मौलाना तौकीर रजा ने सरकार से “शांतिपूर्ण जीवन और संवैधानिक अधिकारों की गारंटी”
की मांग की।

कश्मीर के प्रमुख धार्मिक नेता मिर्वेज उमर फारूक ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा: “संवैधानिक और धार्मिक चिंताएं अभी भी अनसुलझी हैं।”

AIMPLB ने यह भी आरोप लगाया कि “जेपीसी में एक भी सुझाव नहीं माना गया।”

कुछ अपवाद और राजनीतिक संभावनाएं:

हालांकि अधिकांश मुस्लिम नेतृत्व इस विधेयक के खिलाफ है, बरेली के मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने इसका समर्थन करते हुए कहा: “यह गरीब मुसलमानों के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है।”

मुस्लिम समुदाय में इस अधिनियम को लेकर असुरक्षा की भावना लगातार बढ़ रही है। एक ओर सरकार इसे “सुधारात्मक कदम” कहती है, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकारों पर सीधा हमला है।

यह अभी आगे वक्त क्या करवट लेता है। वही है जो निज़ाम ए हस्ती चला रहा है।

रिपोर्ट: ITN Desk.

Share this News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *