शब्दवीणा की पश्चिम बंगाल इकाई ने आयोजित की मासिक काव्यगोष्ठी

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गया (बिहार) : राष्ट्रीय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ‘शब्दवीणा’ की पश्चिम बंगाल प्रदेश इकाई द्वारा मासिक काव्यगोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. डॉ. रश्मि प्रियदर्शिनी के मार्गदर्शन एवं प्रदेश अध्यक्ष, सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार रामनाथ बेख़बर के नेतृत्व में सम्पन्न हुआ।

इस आयोजन को विशेष रूप से हिन्दी पखवाड़ा और 23 सितंबर को मनाई जाने वाली राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती को समर्पित किया गया। कार्यक्रम का आयोजन हुगली स्थित ‘असेम्बली ऑफ लिटिल बड्स हाई स्कूल’ के सभागार में हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि श्री शंकर रावत ने की, जबकि संचालन स्वयं प्रदेश अध्यक्ष श्री रामनाथ बेख़बर ने किया।

मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. शाहिद फ़रोगी, तथा विशिष्ट अतिथियों के रूप में डॉ. अवधेश सिंह और हीरालाल साव मंच पर उपस्थित रहे। कार्यक्रम में उपस्थित सभी रचनाकारों ने राष्ट्रकवि दिनकर की जीवनी एवं साहित्यिक योगदान पर विचार प्रकट करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

काव्य सत्र में एक से बढ़कर एक कविताओं का पाठ हुआ, जिसमें कई चर्चित और नवोदित रचनाकारों ने भाग लिया। जिन प्रमुख रचनाकारों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, उनमें श्री रामनाथ बेख़बर, हीरालाल साव, राम पुकार सिंह, डॉ. शिव प्रकाश दास, ज्ञान प्रकाश पांडेय, संजीव कुमार दुबे, डॉ. शाहिद फ़रोगी, अर्चित यादव, रेणुका पासवान, शंकर रावत, अवधेश मिश्रा, कमलापति पांडेय ‘निडर’, रीना गिरी, डॉ. अवधेश सिंह, भागीरथी कुर्मी, चंद्रभानु गुप्त, विष्णु दत्त उपाध्याय, रूपम महतो, निधि साव, शिवम तिवारी, रोहित साव, सुशांत मिश्रा आदि शामिल रहे।

छात्र अर्चित यादव द्वारा राष्ट्रकवि दिनकर की प्रसिद्ध कविता “कृष्ण की चेतावनी” का ओजपूर्ण पाठ दर्शकों के बीच विशेष आकर्षण का केंद्र रहा।

काव्यपाठ के कुछ प्रमुख अंशों में संजीव दुबे की रचना “अपनी-अपनी मंज़िल सबकी, अपनी-अपनी चाल। रुकता, कोई तोड़ निकलता है कांटों का जाल”, रामनाथ बेख़बर की “शाम का यह वक़्त प्यारा लग रहा है। रेत पर सोई नदी है और मैं हूँ”, और ज्ञान प्रकाश पांडेय की “अब न वो लोग रहे टूट के मिलने वाले। दे रही रोज़ ही माज़ी की दुहाई महफ़िल” को भरपूर सराहना मिली।

राम पुकार सिंह ने “हिन्दी भाषा प्यार की, सब भाषा की प्राण” जैसी पंक्तियों के माध्यम से हिन्दी भाषा की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त की। डॉ. शाहिद फ़रोगी की ग़ज़ल “मिला वो राह में कल मुझसे अजनबी की तरह, जो मेरे दिल में था हर लम्हा ज़िन्दगी की तरह”, भागीरथी कुर्मी की “अब बेटियाँ बेटों की जगह लेने लगी हैं”, डॉ. शिव प्रकाश दास की “शिक्षा के दुश्मनों पर गिरी कुछ ऐसी गाज…” तथा हीरालाल साव की भावपूर्ण पंक्तियाँ “हसरतें सारी की सारी क़ैद में… फिर भी उम्मीदों का दामन सी रहा” को खूब प्रशंसा मिली।

कवयित्री निधि साव की रचना “यूँ तो लिख दूँ अपने जीवन का सारा वृत्तांत, पर तुम्हारे पास समय है?”, रीना गिरी की ओजस्वी कविता “ऑपरेशन सिंदूर” और शंकर रावत की प्रेरक पंक्तियाँ “चाँद सितारे देखने के लिए हैं, छूने के लिए नहीं। गुलाब खुशबू के लिए है, मसलने के लिए नहीं” भी विशेष चर्चा का विषय रहीं।

कार्यक्रम का सीधा प्रसारण शब्दवीणा के फेसबुक केन्द्रीय पेज पर किया गया, जिसे देशभर से जुड़े श्रोताओं ने देखा। इस डिजिटल माध्यम से प्रो. रश्मि प्रियदर्शिनी, पुरुषोत्तम तिवारी, डॉ. रवि प्रकाश, देवेश मिश्र, महावीर सिंह वीर, अरुण अपेक्षित, पी. के. मोहन, डॉ. विजय शंकर, अनंग पाल सिंह भदौरिया, प्रो. सुनील कुमार उपाध्याय, प्रो. सुबोध कुमार झा सहित देशभर से अनेक साहित्यप्रेमियों ने काव्य गोष्ठी का आनंद लिया।

रिपोर्ट: विश्वनाथ आनंद

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