विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर युवा और मानसिक स्वास्थ्य : ए.के.जी.ओविहैम्स

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युवा मानसिक अशांति से कैसे निपट सकते हैं?

भारत एक युवा देश है और यहाँ दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है। 28.4 वर्ष की औसत आयु और 35 वर्ष से कम उम्र के लोगों की बड़ी संख्या के साथ, हमारे देश में अपार संभावनाएँ हैं। यह स्थिति भारत को आत्मनिर्भर और आत्म-सस्टेनेबल देश बनाने के सपने को पूरा करने का एक बड़ा अवसर देती है। लेकिन अगर गहराई से देखा जाए तो तस्वीर उतनी उजली नहीं है। आज के युवा कई ऐसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जो बाहरी माहौल से ही नहीं बल्कि उनके भीतर से भी उत्पन्न होती हैं। अकेलापन, अपने लुक्स को लेकर असुरक्षा, कमजोर रिश्ते, दूसरों से लगातार स्वीकृति और प्रशंसा पाने की चाह, और भावनात्मक असंतुलन जैसी बातें युवाओं को मानसिक रूप से अस्थिर कर रही हैं। इसके साथ ही रोजगार बाजार में अनिश्चितता और बेरोजगारी की दर ने उनकी परेशानियों को और बढ़ा दिया है। आज के युवा संघर्ष कर रहे हैं और उन्हें मदद की ज़रूरत है।

अब मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ पहले की तुलना में अधिक सुलभ हो गई हैं। कोविड-19 महामारी के बाद से लोग मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के प्रति अधिक जागरूक हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों में तकनीक के तेज़ विकास ने पेशेवर मदद लेने से जुड़ी झिझक और कलंक को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। परिणामस्वरूप, अब अधिक से अधिक युवा खुद ही मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से संपर्क कर रहे हैं। यह एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

इसी दिशा में हाल ही में “माइंड द माइंड” (ए.के.जी.ओविहैम्स की मनोविज्ञान इकाई) के क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट श्री कार्तिक गुप्ता और सुश्री धरित्री दत्ता ने एक प्रयास किया। उन्होंने अपनी मनोवैज्ञानिकों की टीम के साथ मिलकर गुवाहाटी के एक प्रमुख संस्थान के छात्रों के लिए मानसिक स्वास्थ्य जांच की। यह संस्थान के छात्र कल्याण कार्यक्रम के तहत नवप्रवेशित छात्रों के लिए आयोजित किया गया था। कुल 1412 छात्रों (901 स्नातक और 511 स्नातकोत्तर) का उनकी जॉइनिंग के पहले महीने में परीक्षण किया गया। इनमें से 450 छात्र (कुल का 31.86%) ऐसे पाए गए जिन्हें गंभीर मानसिक तनाव था या जिन्हें आगे मूल्यांकन की आवश्यकता थी। यह चिंताजनक आंकड़ा है, क्योंकि उनकी शैक्षणिक सत्र की शुरुआत ही हुई थी।

प्रश्नावली के उत्तरों, छात्रों से संक्षिप्त व्यक्तिगत बातचीत और सार्वजनिक जानकारी के विश्लेषण से कुछ महत्वपूर्ण बातें सामने आईं जो सभी उम्र और शैक्षणिक स्तर के छात्रों के लिए प्रासंगिक हैं—

प्रदर्शन का दबाव उन पर भारी पड़ता है। यह दबाव अक्सर स्वयं उत्पन्न होता है क्योंकि वे स्वयं और दूसरों की अपेक्षाओं पर खरे उतरना चाहते हैं।

तुलना खुशी की चोर है। लगातार खुद की या दूसरों द्वारा की गई तुलना से ध्यान स्वयं के विकास से हटकर दूसरों पर केंद्रित हो जाता है। इससे ईर्ष्या, हीनभावना और असंतोष की भावना पैदा होती है।

व्यक्तिगत या रोमांटिक संबंधों में समस्याएँ उनके आत्म-सम्मान और समग्र कल्याण पर गहरा प्रभाव डालती हैं।

घर, परिवार और दोस्तों से दूर रहना, विशेषकर पहली बार, चुनौतीपूर्ण लगता है। कुछ छात्र जल्दी अनुकूल हो जाते हैं जबकि कुछ को कठिनाई होती है।

कुछ छात्रों ने क्षणिक आत्महत्या के विचार और अकेलेपन की भावना साझा की। यह बहुत गंभीर मामला है, क्योंकि हर दिन हम कई युवा प्रतिभाशाली लोगों को आत्महत्या की वजह से खो देते हैं।

स्क्रीन टाइम कम न कर पाना और सोशल मीडिया पर लगातार “डूमस्क्रॉलिंग” करना।
आत्म-संदेह और जीवन के महत्वपूर्ण मोड़ों पर मार्गदर्शक या मेंटर की कमी।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारे युवा संतुलित, लचीले और उत्पादक व्यक्ति बनें, हमें अभी कुछ कदम उठाने होंगे—

जीवन की पूरी ज़िम्मेदारी खुद लें। खुद से पूछें — “अगर मैं अपने जीवन की 100% ज़िम्मेदारी लूं तो क्या बदलेगा? मेरा जीवन कैसा होगा? मैं किस तरह का व्यक्ति बनना चाहता हूँ? क्या मेरे कर्म मुझे मेरे लक्ष्यों तक पहुँचने में मदद कर रहे हैं या रोक रहे हैं?”
आत्ममंथन और चिंतन की आदत डालें। हर दिन 10 मिनट खुद के साथ बिताएँ और देखें कि आपने दिन कैसे बिताया और क्या वह आपके लक्ष्यों के अनुरूप था।

यह ध्यान रखें कि आप अपना समय, ऊर्जा, भावनाएँ और प्रयास कहाँ निवेश कर रहे हैं। हर दिन कम से कम आधा घंटा अपनी रुचियों या शौक के लिए निकालें।

अपने सपोर्ट सिस्टम (दोस्त, परिवार, मेंटर्स) से सिर्फ समस्या होने पर ही नहीं, बल्कि अपनी खुशी और सामान्य जीवन के अनुभव भी साझा करें।

नींद, स्वच्छता, भोजन और व्यायाम जैसी बुनियादी चीजों का ध्यान रखें। एक मजबूत नींव ही स्थिर जीवन बनाती है। शराब, सिगरेट और नशे जैसी हानिकारक चीजों से दूर रहें।
माता-पिता, दोस्त, शिक्षक और शुभचिंतक — सभी को युवाओं के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाना चाहिए। अधिक सुनें, उपस्थित रहें, उनकी परवाह करें और केवल पढ़ाई ही नहीं, बल्कि जीवन के अन्य पहलुओं के बारे में भी बात करें।

शैक्षणिक संस्थानों की ज़िम्मेदारी है कि वे छात्रों के लिए एक स्वस्थ वातावरण बनाएं जहाँ अकादमिक के साथ-साथ समग्र विकास हो सके।

मेंटरशिप कार्यक्रम, अतिरिक्त गतिविधियों में भागीदारी, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े सेमिनार और वर्कशॉप, खेल दिवस, नाट्य क्लब आदि छात्रों के सीखने के अनुभव का हिस्सा होना चाहिए।

नियमित शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य जांच सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि बीमारियाँ उनके विकास में बाधा न बनें।

ए.के.जी.ओविहैम्स के संस्थापक-निदेशक प्रो. डॉ. ए.के. गुप्ता ने बताया कि ए.के.जी.ओविहैम्स में होम्योपैथी और मनोविज्ञान के माध्यम से मरीजों का समग्र उपचार किया जाता है। मरीजों का कल्याण ही संस्थान का एकमात्र उद्देश्य है। चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा में एकीकरण के जनक कहे जाने वाले डॉ. ए.के. गुप्ता ने कहा कि यह संस्थान होम्योपैथी-मनोवैज्ञानिक उपचार और देखभाल के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा को समर्पित है।

ए.के.जी.ओविहैम्स (ओम विद्या होम्योपैथी एवं संबद्ध चिकित्सा विज्ञान संस्थान) को 25 वर्षों से भी अधिक समय से चिकित्सा में अग्रणी एकीकरण के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में मान्यता प्राप्त है।

ए.के.जी.ओविहैम्स के होम्योपैथिक सलाहकार डॉ. संकेत गुप्ता ने इस बात पर ज़ोर दिया कि होम्योपैथी तनाव , अवसाद, चिंता विकारों और यहाँ तक कि व्यवहार संबंधी विकारों के इलाज में बिना किसी हानिकारक दुष्प्रभाव के अद्भुत भूमिका निभाती है।

एक राष्ट्र के रूप में, हमारे पास एक अद्वितीय अवसर है क्योंकि भारत की युवा और ऊर्जावान कार्यशक्ति अपनी अपार क्षमता का उपयोग करने के लिए तैयार है। यह हम सभी पर निर्भर करता है कि हम ऐसा वातावरण बनाएं जो उन्हें पोषित करे — जबकि युवाओं को भी खुद को तैयार करना होगा ताकि वे चुनौतियों का सामना कर सकें और अपने सपनों को हकीकत में बदल सकें।

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