गया, बिहार : गया जी में लगने वाला पितृपक्ष मेला सनातन धर्म का एक अनुपम प्रतीक है, जो श्रद्धा, विश्वास और भक्ति का केंद्र माना जाता है। इस अवसर पर प्रत्येक पिंडदाता अपने पूर्वजों की परंपरा के अनुसार तीर्थ पुरोहितों से मिलकर विधिपूर्वक आज्ञा लेकर पिंडदान और अन्य अनुष्ठान संपन्न करता है। भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा की मान्यता है कि पितृसंतोष का वास्तविक फल केवल तभी प्राप्त होता है जब अनुष्ठान पवित्र तीर्थस्थली पर जाकर, योग्य पुरोहित के मार्गदर्शन में और संपूर्ण श्रद्धा के साथ संपन्न हो।
धर्मशास्त्र स्पष्ट रूप से बताते हैं कि पिंडदान का महत्व केवल प्रतीकात्मक कर्म में नहीं, बल्कि विधि, भक्ति और पुरोहित के निर्देशन में संपूर्ण कर्म के रूप में निहित होता है। ऑनलाइन पिंडदान केवल एक सूचनात्मक रूप है, जिसमें पितृसंतोष या आध्यात्मिक फल की प्राप्ति असंभव मानी जाती है। तकनीकी माध्यमों से अनुष्ठान करना धर्म, कर्मकांड और परंपरा के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।
भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. विवेकानंद मिश्र का कहना है कि धर्म का सार श्रद्धा, भक्ति और कर्म में है। ऑनलाइन पिंडदान केवल बाह्य रूप दर्शाता है और इसमें पूर्वजों की सेवा तथा संतोष की भावना नहीं होती। आचार्य सच्चिदानंद मिश्र (नैकी) मानते हैं कि पितृसंतोष का वास्तविक फल विधिपूर्वक तीर्थस्थल जाकर ही प्राप्त हो सकता है; तकनीकी माध्यम इसे पूर्ण नहीं कर सकता।
राधामोहन मिश्र माधव जी ने कहा कि कर्मकांड की पूर्णता बिना भक्ति, विधि और पुरोहित के असंभव है। ऑनलाइन पिंडदान केवल एक रूपांतरण है, न कि वास्तविकता। महासभा का यह दृढ़ मत है कि ऑनलाइन पिंडदान शास्त्रविरोधी और धर्मविरोधी है।
गया नगर निगम और स्थानीय प्रशासन से महासभा ने आग्रह किया है कि वे पौराणिक परंपराओं का सम्मान करते हुए पिंडदान की केवल पारंपरिक पद्धति को ही लागू करें। राज्य और केंद्र सरकार से भी अनुरोध है कि वे पितृपक्ष के दौरान संबंधित विभागों को निर्देश दें कि हिंदू धार्मिक परंपराओं और श्रद्धालुओं की भावनाओं का सम्मान किया जाए और ऑनलाइन पिंडदान जैसी प्रक्रियाओं को समाप्त किया जाए।
स्वामी सुमन गिरी ने कहा कि सनातन धर्म के अनुसार पितृसंतोष और पूर्वजों की परंपरा का पालन प्रत्येक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण का परम कर्तव्य है। इसे त्यागना या तकनीकी माध्यमों से पूर्ण करना सनातन धर्म की आत्मा के विरुद्ध है।
इस विषय पर आचार्य अरुण मिश्रा मधुप, रंजीत पाठक, संदीप मिश्रा, सुमन भारती, पंडित अजय मिश्रा, डॉ. कैप्टन अशोक कुमार झा, डॉ. बी. एन. पांडे, शिवचरण बाबू डालमिया, डॉ. नंदकिशोर गुप्ता, डॉ. ज्ञानेश भारद्वाज, डॉ. दिनेश सिंह, पवन मिश्रा, बृजेश राय, नंद दीपक पाठक, चंद्रभूषण मिश्रा, कौशल उपाध्याय, विक्रम मिश्रा, रूबी यादव, महेश मिश्रा, आचार्य सुनील मिश्रा, अमरनाथ पांडे, राजीव नयन पांडे, रामानंद मिश्रा, हरिनारायण त्रिपाठी, सत्येंद्र दुबे, मानती देवी, सुनीता देवी, विश्वजीत शंकरी चक्रवर्ती, सुमो देवी, मनीष कुमार, प्रो. गीता पासवान, प्रो. संगीता लक्ष्मी, सोनी मिश्रा, हिमांशु शेखर मिश्रा, ऋषिकेश शंभू गुर्दा, सुनील कुमार, उषा ज्योति मिश्रा, शैलेश सिंह, शंभू गिरी, राजेश त्रिपाठी और नीरज वर्मा आदि ने भी ऑनलाइन पिंडदान का खंडन करते हुए विरोध जताया है।
रिपोर्ट: विश्वनाथ आनंद.