वंदे मातरम अनिवार्य करने के प्रस्ताव पर मुस्लिम सांसदों का कड़ा विरोध, संसद से सोशल मीडिया तक बहस तेज

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देश की राजनीति में एक बार फिर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। लोकसभा में वंदे मातरम को अनिवार्य रूप से गाने से जुड़े एक प्रस्ताव पर मुस्लिम सांसदों ने जोरदार विरोध दर्ज कराया है। इस मुद्दे पर एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी, सांसद इक्रा हसन और आगा सैयद रूहुल्ला खुलकर सामने आए। इन नेताओं का कहना है कि किसी भी नागरिक को जबरन किसी गीत या प्रतीक से जोड़ना उसकी व्यक्तिगत आज़ादी और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है।

यह पूरी बहस लोकसभा के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर वंदे मातरम पर हुई विशेष चर्चा के दौरान सामने आई। इस दौरान ओवैसी ने साफ कहा कि मुसलमानों को अपनी देशभक्ति साबित करने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वे हमेशा से इस देश का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। उन्होंने कहा कि संविधान हर नागरिक को विचार और धर्म की पूरी आज़ादी देता है और देशभक्ति को किसी खास धर्म या गीत से जोड़ना गलत है।

सांसद इक्रा हसन ने इस बहस में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का हवाला देते हुए कहा कि वंदे मातरम कभी भी जबरदस्ती नहीं गाया जाना चाहिए। वहीं आगा सैयद रूहुल्ला ने सरकार पर आरोप लगाया कि इस तरह के प्रस्ताव राष्ट्रवाद के नाम पर दिखावा हैं और इससे मुस्लिम पहचान को बदलने की कोशिश की जा रही है।

इस मुद्दे पर सोशल मीडिया भी गर्म हो गया है। हजारों लोग ओवैसी का एक वीडियो शेयर कर रहे हैं, जिसमें वे कहते हैं कि मुसलमान जिन्ना की सोच के खिलाफ हैं, लेकिन मजहब की आज़ादी उनका संवैधानिक अधिकार है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे विपक्षी दलों ने मुस्लिम सांसदों के इस रुख का समर्थन किया है, जबकि भाजपा ने इसे मुसलमानों की अलगाववादी मानसिकता करार दिया है।

अगर वंदे मातरम के इतिहास पर नजर डालें तो यह विवाद नया नहीं है। यह गीत 1870 के आसपास लिखा गया था और स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इसका खास महत्व रहा। हालांकि, इसमें कुछ पंक्तियों में हिंदू देवी-देवताओं का उल्लेख होने के कारण मुस्लिम समुदाय के एक हिस्से को असहजता महसूस होती रही है। इसी वजह से 1937 में कांग्रेस ने इसे राष्ट्रगान न बनाने का फैसला किया था। आज एक बार फिर वही बहस सामने आ गई है।

मुस्लिम समाज में यह खबर तेजी से फैल रही है। कई उलेमा और सामाजिक संगठनों ने ओवैसी के रुख की सराहना करते हुए इसे संविधान की रक्षा बताया है। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि यह मुद्दा राजनीतिक फायदे के लिए उठाया जा रहा है। कुल मिलाकर, यह विवाद देश की धर्मनिरपेक्षता और नागरिक स्वतंत्रता को लेकर कई सवाल खड़े कर रहा है।

ओवैसी का यह बयान उनकी राजनीतिक यात्रा का ही हिस्सा माना जा रहा है। वे हैदराबाद से चार बार सांसद चुने जा चुके हैं और मुस्लिम अधिकारों से जुड़े कई मुद्दों पर सरकार के खिलाफ मुखर रहे हैं। इक्रा हसन पहली बार सांसद बनी हैं और उन्होंने इस बहस में संवैधानिक मूल्यों की बात रखी, जबकि आगा सैयद रूहुल्ला ने देश के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले मुस्लिम समुदाय की चिंताओं को सामने रखा।

फिलहाल यह मामला थमता नजर नहीं आ रहा है। सोशल मीडिया से लेकर संसद तक चर्चा जारी है। अगर सरकार इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाती है तो यह मामला अदालत तक भी पहुंच सकता है। आने वाले दिनों में यह बहस और तेज होने की संभावना है।

by ITN Desk.

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