औरंगाबाद (बिहार) : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र में बड़ा राजनीतिक उलटफेर कर दिया। लगातार दस वर्षों तक कुटुंबा सीट पर कांग्रेस का परचम लहराने वाले और बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे राजेश कुमार उर्फ राजेश राम इस बार अपनी प्रतिष्ठा भी बचा नहीं पाए। जनता ने उन्हें भारी मतों से चुनाव हरा दिया, और जीत का ताज जदयू के पूर्व विधायक ललन राम उर्फ ललन भुइयां के सिर बांध दिया।
कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र संख्या-222, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, में इस बार जनता का मूड शुरू से ही बदला-बदला था। क्षेत्र के मतदाताओं का कहना था कि पिछले दस वर्षों में विधायक राजेश कुमार उर्फ राजेश राम ने उन इलाकों की कभी सुध नहीं ली, जहां विकास की सबसे अधिक जरूरत थी। अंबा से पूर्वी दिशा और देव के दक्षिणी हिस्से के लोग लंबे समय से बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे थे, लेकिन उनका कहना था कि विधायक जी इन क्षेत्रों में झांकने तक नहीं गए।
लोगों ने साफ कहा—“जब हमारे नेता हमारी समस्याओं से ही मतलब नहीं रखते, तो हम उन्हें सिर्फ जाति और पार्टी के नाम पर क्यों वोट दें?” यही नाराजगी इस बार मतों में खुलकर दिखी।

राजेश कुमार उर्फ राजेश राम जब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बने, तब भी क्षेत्र की जनता को लगता रहा कि उनका ध्यान जिले या विधानसभा क्षेत्र से हटकर सिर्फ बड़े नेताओं—राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे—पर ही केंद्रित हो गया है। लगातार मीटिंगों, हेलीकॉप्टर से चुनावी यात्रा और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने जनता और नेता के बीच की दूरी बढ़ा दी। यहां तक कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पेश करने की इच्छा भी जाहिर की थी।
लेकिन जनता ने याद दिला दिया कि चुनाव सिर्फ सपनों और बड़े नेताओं की मौजूदगी से नहीं जीते जाते—बल्कि काम से जीते जाते हैं।

इतिहास पर नजर डालें तो 2015 में जब राजेश कुमार पहली बार विधायक बने थे, तब कुटुंबा सीट महागठबंधन में कांग्रेस को मिली थी, और जदयू के पूर्व विधायक ललन राम का टिकट काटकर उन्हें मैदान में उतारा गया था। उसी चुनाव में जिद में आकर डॉक्टर सुरेश पासवान ने निर्दलीय लड़ाई लड़ी थी, जिससे वोटों का बंटवारा हुआ और राजेश कुमार की जीत संभव हुई।
2020 में भी यही स्थिति दोहराई गई। हम पार्टी के प्रत्याशी श्रवण भुइयां के खिलाफ ललन राम ने निर्दलीय लड़ाई लड़ी और 20,000 से अधिक वोट ले गए, जिसका सीधा फायदा कांग्रेस प्रत्याशी राजेश कुमार को मिला। और वे दोबारा जीत गए।
लेकिन 2025 में कहानी पलट गई।
इस बार ललन राम उर्फ ललन भुइयां ने हम पार्टी (सेक्युलर) का सिंबल लेकर चुनाव लड़ा और मजबूत रणनीति के साथ मैदान में उतरे। पिछले दो चुनावों में जिन परिस्थितियों ने उनकी हार में योगदान दिया था, इस बार वही परिस्थितियाँ कांग्रेस के खिलाफ खड़ी हो गईं।
मतदान के बाद जब नतीजे आए, तो कुटुंबा में ललन राम ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए कुल 84,727 वोट हासिल किए।
वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व विधायक राजेश कुमार को 63,202 वोट ही मिले।
अंतर रहा — 21,525 वोटों का, जो बेहद बड़ा और निर्णायक माना जाता है।
तीसरी बार लगातार चुनाव लड़ रहे राजेश कुमार उर्फ राजेश राम के लिए यह हार सिर्फ एक चुनावी हार नहीं, बल्कि जनता का स्पष्ट जनादेश था कि विकास और जनसंपर्क के बिना चुनाव में जीत संभव नहीं।
कुटुंबा की जनता ने इस बार एक ही संदेश दिया—
“जो जनता के बीच नहीं रहेगा, उसे जनता चुनने भी नहीं वाली।”
रिपोर्ट: अजय कुमार पाण्डेय.
