औरंगाबाद: सदर विधानसभा क्षेत्र संख्या–223, औरंगाबाद में इस बार हुए बिहार विधानसभा चुनाव 2025 ने राजनीतिक माहौल पूरी तरह बदलकर रख दिया। लगातार दस वर्षों तक कांग्रेस के विधायक रहे आनंद शंकर सिंह इस बार अपनी सीट नहीं बचा सके और पहली बार चुनाव लड़ रहे बीजेपी प्रत्याशी त्रिविक्रम नारायण सिंह ने बाज़ी मार ली।
त्रिविक्रम नारायण सिंह को कुल 87,200 वोट मिले, जबकि आनंद शंकर सिंह को 80,406 वोट ही मिल पाए। इस तरह बीजेपी उम्मीदवार ने 6,794 वोटों से आनंद शंकर सिंह की हार के पीछे छुपी बड़ी कहानी
कई राजनीतिक जानकार यह मान रहे हैं कि आनंद शंकर सिंह की हार की सबसे बड़ी वजह वह समर्थन था, जो उन्हें पहले दो चुनाव—2015 और 2020—में मिला था, लेकिन इस बार नहीं मिला। पहले, औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के पूर्व बीजेपी सांसद सुशील कुमार सिंह ने दोनों चुनावों में आनंद शंकर सिंह को पर्दे के पीछे से पूरा सहयोग दिया था।

उस समय बीजेपी के ही दावेदार रामाधार सिंह और सुशील कुमार सिंह के बीच गहरा राजनीतिक विरोध था। दोनों नेताओं का रिश्ता इतना खराब था कि विधानसभा चुनावों में सुशील कुमार सिंह, रामाधार सिंह को हराने के लिए खुलकर कांग्रेस प्रत्याशी आनंद शंकर सिंह की मदद करते थे। इसी वजह से कांग्रेस उम्मीदवार लगातार दो बार जीत सके थे। लेकिन इस बार तस्वीर बिल्कुल पलट गई।
समर्थन क्यों टूटा? मंच पर हुआ विवाद बना टर्निंग पॉइंट
कुछ महीनों पहले आनंद शंकर सिंह के पैतृक गांव रायपुरा में सत्यचंडी महोत्सव का आयोजन हुआ था। इस कार्यक्रम में सुशील कुमार सिंह को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था, लेकिन कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस विधायक ने मंच से उनका माइक्रोफोन छीन लिया और कहा कि “ये सिर्फ राजनीति करते हैं।”
यह घटना सुशील कुमार सिंह को बेहद नागवार गुज़री। उन्होंने बिना कुछ कहे मंच छोड़ दिया और बाद में मीडिया से कहा कि “कांग्रेस विधायक का संस्कार ही यही है कि लोगों को बुलाकर मंच पर अपमानित करें।”
इसके बाद जिला मुख्यालय में हुए एक डिबेट कार्यक्रम में भी दोनों के समर्थकों के बीच जोरदार विवाद हुआ। इन घटनाओं के कारण सुशील कुमार सिंह इस बार चुनाव में आनंद शंकर सिंह के खिलाफ खड़े नजर आए और उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी त्रिविक्रम नारायण सिंह का खुलकर समर्थन किया। बीजेपी के अंदर की नाराज़गी भी चुपचाप शांत हो गई।
जब बीजेपी ने रोहतास जिले के जमुहार गांव निवासी और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गोपाल नारायण सिंह के पुत्र त्रिविक्रम नारायण सिंह को टिकट दिया, तो पार्टी के कई स्थानीय दावेदारों ने नाराज़गी जताते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ने तक की धमकी दे दी थी। लेकिन जैसे ही नेतृत्व ने सभी को साध लिया, सब शांत हो गए। यह चर्चा आज भी औरंगाबाद शहर से लेकर पूरे जिले में है कि “कई नेता सिर्फ टिकट की नौटंकी करते हैं, असल में जनता के मुद्दों से कोई मतलब नहीं रखते।”
चिराग पासवान–नीतीश कुमार गठबंधन का बड़ा असर
पिछले चुनाव में लोजपा (रामविलास) ने जदयू के खिलाफ एकतरफा लड़ाई लड़ी थी, जिससे एनडीए को बड़ा नुकसान हुआ था। लेकिन इस बार चिराग पासवान और नीतीश कुमार साथ आ गए। एनडीए फिर एकजुट होकर मैदान में उतरा और इसका बड़ा फायदा त्रिविक्रम नारायण सिंह की जीत को मिला।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर लोजपा और जदयू साथ न आते, तो नई चेहरे के रूप में त्रिविक्रम नारायण सिंह के लिए जीत आसान नहीं थी।
रिपोर्ट: अजय कुमार पाण्डेय.
