दिल्ली में अन्यायपूर्ण विध्वंश और बेदखली बंद करो
विध्वंस अभियान के दौरान कानूनों और नियमों का घोर उल्लंघन भी उतना ही भयावह है। ये कार्रवाइयाँ सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) अधिनियम, 1971, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद अधिनियम, 1994, और संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धांतों और विकास-आधारित बेदखली पर दिशा-निर्देशों में उल्लिखित सिद्धांतों सहित, कानूनी सुरक्षा उपायों और उचित प्रक्रिया की अवहेलना करती हैं।
तुग़लकाबाद और सभी बस्तियों के विस्थापित निवासियों के साथ एकजुटता
G-20 शिखर सम्मेलन क्रूर बुलडोजर-राज का बहाना नहीं हो सकता !
17 मई, 2023: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम) तुगलकाबाद और नई दिल्ली की कुछ अन्य बस्तियों के उन हज़ारों पीड़ित निवासियों के साथ पूरी एकजुटता व्यक्त करती है, जिनके घरों को पहले भी और अभी G-20 शिखर सम्मेलन के संदर्भ में तबाह कर दिया गया है। उनके न्यूनतम कल्याण की अवहेलना और उनके अधिकारों का घोर उल्लंघन बेहद निराशाजनक है और हम इस पर तत्काल ध्यान देने और निवारण की मांग करते हैं। हम भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (ए.एस.आई) की कार्रवाइयों की निंदा करते हैं, जिसने हाल ही में एक बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान चलाया, जिसमें लगभग 1,000 घर नष्ट हो गए।साथ ही अन्य बस्तियों में भी सैकड़ों घर तोड़े गए हैं। कुछ स्थानों पर, कानून का उल्लंघन करते हुए, फेरीवालों को भी क्रूर तरीके से बेदखली का भी सामना करना पड़ा है।
अधिकारियों द्वारा किए गए जबरन विस्थापन और विध्वंस ने न केवल 2.6 लाख निवासियों सहित लगभग 1,600 परिवारों को बेघर कर दिया है, बल्कि उनकी सम्पत्ति और आजीविका का भी नुकसान हुआ है। 'बेदखली' करने के किसी भी कदम से पहले, उचित पुनर्वास और न्यायोचित सहायता की अभाव से, हाशिए पर जी रहे समुदायों की दुर्बल स्थिति और विकट हो गई है। नागरिकों को उनके घरों से बार-बार विस्थापित करने में केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की भूमिका निंदनीय है।
विध्वंस अभियान के दौरान कानूनों और नियमों का घोर उल्लंघन भी उतना ही भयावह है। ये कार्रवाइयाँ सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) अधिनियम, 1971, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद अधिनियम, 1994, और संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धांतों और विकास-आधारित बेदखली पर दिशा-निर्देशों में उल्लिखित सिद्धांतों सहित, कानूनी सुरक्षा उपायों और उचित प्रक्रिया की अवहेलना करती हैं। हम कानून व्यवस्था की इस कदर अवहेलना की कड़ी निंदा करते हैं और सभी श्रमिक समुदायों के प्रति राज्य की जवाबदेही का आग्रह करते हैं। अधिकारियों से तत्काल विध्वंस को रोकने, इन उल्लंघनों की जांच करने और तुग़लकाबाद और अन्य इलाकों के बेघर निवासियों के लिए कानूनन सहायता और निवारण सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं। .
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को एक सुरक्षित घर का अधिकार अंतर्निहित है। लोगों के आश्रय के मौलिक अधिकार पर जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियों को प्राथमिकता देते देखना निराशाजनक है। कश्मीरी गेट, यमुना बाढ़ के मैदान, धौला कुआं, महरौली, मूलचंद बस्ती और हाल ही में तुग़लकाबाद जैसे वंचित समुदायों के इलाकों में बेदखली, पहसे से धर्म, जाति, लिंग के कारण हाशिए पर रहने वाले लोगों का जीवन और जटिल कर देता हैं। यह न केवल उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं, बल्कि सबसे कमजोर वर्गों के हकों को सुनिश्चित करने में राज्य की व्यवस्थागत विफलताओं को दर्शाता हैं।
- हम सरकार से सभी विध्वंस और जबरन बेदखली तुरंत रोकने का आग्रह करते हैं।
- हम मांग करते हैं कि सरकार को सभी प्रभावित व्यक्तियों और परिवारों को संपत्ति के नुकसान और आजीविका के नुकसान सहित, हर नुकसान के लिए पूरी और न्यायपूर्ण रूप से मुआवज़ा देना चाहिए।
- हम सरकार से यह भी आग्रह करते हैं कि G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान मकानों के क्रूर विध्वंस के घटनाओं, पुलिस प्रशासन की ज़्याददतियाँ की एक विस्तृत और निष्पक्ष जांच करें, तथा जिम्मेदार अधिकारियों और कार्यालयों को जवाबदेह ठहराते हुए, इन पर उचित कानूनी कार्रवाई की जाए।
- हम केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार से भी अपने दमनकारी रवैए को बंद करने और प्रभावित समुदायों के साथ सार्थक बातचीत करने का आग्रह करते हैं, क्योंकि यह राज्य की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों की रक्षा करे और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करे, ख़ासकर जी-20 जैसे महाकाय आयोजनों के समय, जिसके परिणाम स्वरूप, श्रमिकों के जीवन पर गंभीर असर पड़ता हैं। ऐसा न करने से 'सबका साथ सबका विकास' जैसे बड़े-बड़े नारे खोखली बयानबाजी बनकर रह जाते हैं।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय द्वारा जारी
ई-मेल: napmindia@gmail.com