PIL क्या होता है? जनहित याचिका दायर करने की क्या प्रक्रिया है? आइये जानते हैं इस लेख में की कैसे दाखिल करें PIL लेटर के जरिये
What is PIL? What is the procedure to file PIL? Let us know in this article how to file PIL through letter.
मान लीजिए अगर कोई शख्स आम आदमी से जुड़े मामले में हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को लेटर लिखता है, तो कोर्ट देखता है कि क्या मामला वाकई आम आदमी के हित से जुड़ा है. अगर ऐसा है तो उस लेटर को ही पीआईएल के तौर पर लिया जाता है और सुनवाई होती है.
लेकिन लेटर में यह बताया जाना जरूरी है कि मामला कैसे जनहित से जुड़ा है और याचिका में जो भी मुद्दे उठाए गए हैं, उनके हक में पुख्ता सबूत क्या हैं. अगर कोई सबूत है तो उसकी कॉपी भी लेटर के साथ लगा सकते हैं. लेटर जनहित याचिका में तब्दील होने के बाद संबंधित पक्षों को नोटिस जारी होता है और याचिकाकर्ता को भी कोर्ट में पेश होने के लिए कहा जाता है.
सुनवाई के दौरान अगर याचिकाकर्ता के पास वकील न हो तो कोर्ट वकील मुहैया करा सकती है. लेटर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के नाम लिखा जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के नाम भी यह लेटर लिखा जा सकता है. लेटर हिंदी या अंग्रेजी में लिख सकते हैं. यह हाथ से लिखा भी हो सकता है और टाइप किया हुआ भी.
लेटर डाक से भेजा जा सकता है. जिस हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से संबंधित मामला है, उसी को लेटर लिखा जाता है. लिखने वाला कहां रहता है, इससे कोई मतलब नहीं है. दिल्ली से संबंधित मामलों के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में, फरीदाबाद और गुड़गांव से संबधित मामलों के लिए पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में और यूपी से जुड़े मामलों के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में लेटर लिखना होगा.
लेटर लिखने के लिए कोर्ट के पते इस तरह हैं :
चीफ जस्टिस, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, तिलक मार्ग, नई दिल्ली- 110001
चीफ जस्टिस, दिल्ली हाई कोर्ट, शेरशाह रोड, नई दिल्ली- 110003
चीफ जस्टिस, इलाहाबाद हाई कोर्ट 1, लाल बहादुर शास्त्री मार्ग, इलाहाबाद
चीफ जस्टिस, पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट सेक्टर 1, चंडीगढ़
वकील के जरिये कोई भी शख्स वकील की मदद से जनहित याचिका दायर कर सकता है. वकील याचिका तैयार करने में मदद करते हैं. याचिका में प्रतिवादी कौन होगा और किस तरह उसे ड्रॉफ्ट किया जाएगा, इन बातों के लिए वकील की मदद जरूरी है.
पीआईएल दायर करने के लिए कोई फीस नहीं लगती. इसे सीधे काउंटर पर जाकर जमा करना होता है. हां, जिस वकील से इसके लिए सलाह ली जाती है, उसकी फीस देनी होती है. पीआईएल ऑनलाइन दायर नहीं की जा सकती. कोर्ट का खुद संज्ञान अगर मीडिया में जनहित से जुड़े मामले पर कोई खबर छपे, तो सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट अपने आप संज्ञान ले सकती हैं. कोर्ट उसे पीआईएल की तरह सुनती है और आदेश पारित करती है. कुछ अहम केस भी मैं आपको यहाँ बता रहा हूँ.
1. स्कूलों की मनमानी पर लगाम : दिल्ली हाई कोर्ट में 1997 में जनहित याचिका दायर कर कहा गया था कि स्कूलों को मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने से रोका जाना चाहिए. हाई कोर्ट ने 1998 में दिए अपने फैसले में कहा कि स्कूलों में कमर्शलाइजेशन नहीं होगा. इसके बाद 2009 में दोबारा स्कूलों ने छठे वेतन आयोग की सिफारिश लागू करने के नाम पर फीस बढ़ा दी. मामला फिर कोर्ट के सामने उठा और अशोक अग्रवाल ने पीआईएल में मांग की कि एक कमिटी बनाई जाए जो यह देखे कि स्कूलों में फीस बढ़ानी जरूरी है या नहीं. हाई कोर्ट ने पिछले साल जस्टिस अनिल देव कमिटी का गठन किया. कमिटी ने 200 स्कूलों के रेकॉर्ड की जांच की और बताया कि 64 स्कूलों ने गलत तरीके से फीस बढ़ाई है. कमिटी ने सिफारिश की है कि स्कूलों को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह बढ़ी हुई फीस ब्याज समेत वापस करें. अभी यह पूरा मामला प्रॉसेस में चल रहा है.
2. बचपन बचाने की पहल : बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से जनवरी 2009 में हाई कोर्ट में पीआईएल दायर कर यूनियन ऑफ इंडिया को प्रतिवादी बनाया गया और गुहार लगाई गई कि प्लेसमेंट एजेंसियों द्वारा कराई जाने वाली मानव तस्करी को रोकने का निर्देश दिया जाए. आरोप लगाया गया कि कई प्लेसमेंट एजेंसियां महिलाओं की तस्करी करती हैं और बच्चों से मजदूरी भी कराती हैं. सुनवाई के दौरान सरकार से जवाब मांगा गया. सरकार ने बताया कि श्रम विभाग प्लेसमेंट एजेंसियों को रेग्युलेट करने के लिए कानून बना रहा है. सरकार ने एक कमिटी बना दी है जो इसे कानून बनाने के लिए विधानसभा के पास भेजेगी. याचिकाकर्ता बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े भुवन रिभू ने बताया कि दिल्ली हाई कोर्ट ने 24 दिसंबर, 2010 को सरकार को निर्देश दिया था कि वह प्लेसमेंट एजेंसियों को रजिस्टर्ड कराए. अब प्लेसमेंट एजेंसियों का रजिस्ट्रेशन हो रहा है.
3. धारा 377 में संशोधन : नाज फाउंडेशन ने 2001 में दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर धारा 377 में संशोधन की मांग की. कहा गया कि दो वयस्कों के बीच अगर आपसी सहमति से अप्राकृतिक संबंध बनाए जाएं तो उनके खिलाफ धारा 377 का केस नहीं बनना चाहिए. हाई कोर्ट ने सरकार से अपना पक्ष रखने को कहा. इसके बाद कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक जजमेंट में कहा कि दो वयस्क अगर आपसी सहमति से अप्राकृतिक संबंध बनाते हैं तो उनके खिलाफ धारा-377 में मुकदमा नहीं बनेगा. इस के साथ ही कोर्ट ने यह भी साफ किया कि अगर दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति के बिना अप्राकृतिक संबंध बनाए जाते हों या फिर नाबालिग के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाए जाते हों तो वह धारा-377 के दायरे में होगा. जब तक संसद इस बाबत कानून में संशोधन नहीं करती तब तक यह जजमेंट लागू रहेगा. वर्तमान में यह व्यवस्था पूरी तरह से लागू है.
4. झुग्गी वालों को बसाएं कहीं और कुछ याचिकाकर्ताओं ने रिट याचिका दायर कर दिल्ली सरकार और एमसीडी को प्रतिवादी बनाया और कहा कि झुग्गियों में रहने वाले लोगों को हटाए जाने से पहले उन्हें किसी और जगह बसाया जाए. हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि कमजोर व गरीबों के लिए जगह तलाश करना सरकार की जिम्मेदारी है. अगर सरकारी नीति के तहत झुग्गी में रहने वालों को हटाया जाता है, तो उन्हें किसी और जगह शिफ्ट किया जाए. नई जगह पर भी इन लोगों के लिए सभी बुनियादी सुविधाएं होनी चाहिए. अदालत ने कहा कि संविधान ने सबको जीने का हक दिया है. लोगों के इस मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं किया सकता. झुग्गी में रहने वाले लोग दोयम दजेर् के नागरिक नहीं हैं. अन्य लोगों की तरह वे भी बुनियादी सुविधाओं के हकदार हैं. अब यह नियम है कि झुग्गियों में रहने वाले लोगों को हटाए जाने से पहले उन्हें किसी और जगह बसाया जाएगा.
5. रिक्शा चालकों को राहत एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने राजधानी की सड़कों पर साइकल रिक्शा चलाने वालों को राहत दी थी. हाई कोर्ट ने एमसीडी द्वारा लाइसेंस दिए जाने के लिए तय संख्या को खत्म कर दिया था. हाई कोर्ट ने कहा था कि रिक्शा चालकों के उस मूल अधिकार से उन्हें वंचित नहीं किया जा सकता, जिसमें उन्हें जीवन यापन करने के लिए कमाने का अधिकार दिया गया है. चीफ जस्टिस ए. पी. शाह ने एमसीडी के उस फैसले को रद्द कर दिया था जिसमें एमसीडी ने 99,000 से ज्यादा रिक्शा को लाइसेंस न देने की बात कहते हुए उन्हें रिक्शा चलाने से रोक दिया था. अदालत ने कहा कि अथॉरिटी समय-समय पर अपर लिमिट को बढ़ाती है लेकिन इसे फिक्स नहीं किया जा सकता. हाई कोर्ट ने एमसीडी के उस नियम को भी रद्द कर था दिया जिसमें कहा गया था कि रिक्शा का मालिक ही रिक्शा चलाए.
सुग्रीव दुबे कई पीआईएल दायर कर चुके हैं. उनकी दायर याचिकाओं में से ऐसे ही कुछ दिलचस्प मामले:
ग्राउंड वॉटर केस : 1998 की बात है. बारिश के दिन सुग्रीव ने देखा कि बारिश का पानी नालियों में जा रहा है. उन्हें खयाल आया कि दिल्ली में एक तरफ ग्राउंड वॉटर लेवल नीचे जा रहा है और दूसरी तरफ बरसाती पानी बर्बाद हो रहा है. उन्होंने हाई कोर्ट में पीआईएल दायर कर कहा कि दिल्ली में वॉटर लेवल नीचे गिर रहा है. ऐसे में लोगों का जीवन दूभर हो जाएगा. बरसात के पानी का सही इस्तेमाल हो और वॉटर हावेर्स्टिंग की जाए तो पानी का लेवल ऊपर आ सकता है. हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि सरकारी इमारतों में वॉटर हावेर्स्टिंग की व्यवस्था हो. साथ ही 200 स्क्वेयर यार्ड या उससे ज्यादा बड़े प्लॉट पर मकान बनाने से पहले एनओसी तभी मिले, जब वहां वॉटर हावेर्स्टिंग की व्यवस्था हो. वर्तमान में यह नियम लागू हो चुका है.
पेड़ों का बचाव : बारिश का मौसम था और तेज हवाओं के कारण राजधानी में बड़ी संख्या में पेड़ गिरे थे. सुग्रीव के घर के सामने भी पेड़ उखड़ गए थे. उन्होंने देखा कि पेड़ों की जड़ों में कंक्रीट डाली गई है. जड़ों में मिट्टी का अभाव है और जड़ें कमजोर हैं. तेज हवा और बारिश में ये कमजोर जड़ें उखड़ रही हैं. हाई कोर्ट में उन्होंने जनहित याचिका दायर की और कहा कि पेड़ों को बचाना जरूरी है. हाई कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा और बाद में आदेश दिया कि पेड़ों की जड़ों के आसपास छह फुट की दूरी तक कोई कंक्रीट नहीं डाली जाएगी. नियम बन चुका है.
अगर किसी को इसका उल्लंघन होता दिखता है तो वह शिकायत कर सकता है.
सब्जियों पर रंग : एक दिन सुग्रीव सब्जी खरीदने गए. उन्होंने देखा कि करेले का रंग गहरा हरा था. उन्होंने दुकानदार से पूछा कि आखिर करेला इतना ताजा कैसे है. उसने बताया कि उस पर कलर चढ़ाया है. उन्होंने सब्जी वाले से पूछा कि यह रंग अगर पेट में चला जाए तो क्या होगा? सब्जी वाले ने जवाब दिया कि आप सब्जी खरीदें और उसे अच्छी तरह धोकर खाएं. नहीं धोते तो नुकसान की जिम्मेदारी आपकी है. इसके बाद हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया और सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा. बाद में हाई कोर्ट ने सरकार से इस मामले में कमिटी बनाने और तमाम जगहों से सैंपल उठाने को कहा. अभी इस मामले में प्रक्रिया चल रही है.
दुरुपयोग पर जुर्माना : कई बार पीआईएल का गलत इस्तेमाल भी होता है. ऐसे लोगों पर कोर्ट भारी हर्जाना लगाती है. ऐसे में याचिका दायर करने से पहले अपनी दलील के पक्ष में पुख्ता जानकारी जुटा लेनी चाहिए. आरटीआई आने के बाद से पीआईएल काफी प्रभावकारी हो गई है. पहले लोगों को जानकारी के अभाव में अपनी दलील के पक्ष में दस्तावेज जुटाने में दिक्कतें होती थी, लेकिन अब लोग आरटीआई के जरिये दस्तावेजों को पुख्ता कर सकते हैं और फिर तमाम दस्तावेज सबूत के तौर पर पेश कर सकते हैं.
इस तरह जनहित से जुड़े मामलों में पीआईएल लगाए.
दीपक शर्मा, प्रभारी उत्तर प्रदेश, भारत सेवक संघ, कांटेक्ट नंबर 8595 332 356