किसानों से बातचीत क्यों नहीं हो रही? उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उठाया गंभीर सवाल
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किसानों से बातचीत न होने पर सवाल उठाया. ICAR के शताब्दी समारोह में उन्होंने कृषि मंत्री से वादे न निभाने पर चिंता जताई और MSP गारंटी कानून की जरूरत पर जोर दिया.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उठाया किसानों के अधिकारों का सवाल, क्यों नहीं हो रही चर्चा?
ICAR के शताब्दी समारोह में कृषि मंत्री से उपराष्ट्रपति ने पूछा, क्या वादे निभाए जा रहे हैं?
New Delhi, 04-12-2024 : किसानों के अधिकारों को लेकर एक बार फिर से चर्चा का विषय बना है. इस बार यह सवाल उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उठाया, जिन्होंने केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (ICAR) के शताब्दी समारोह के दौरान यह सवाल पूछा कि आखिरकार किसानों से बातचीत क्यों नहीं हो रही है? उपराष्ट्रपति का यह बयान कृषि और ग्रामीण विकास से जुड़ी गंभीर समस्याओं पर प्रकाश डालता है और यह मुद्दा केवल किसानों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश की कृषि नीति पर भी सवाल उठाता है.
किसानों के वादों का क्या हुआ?
मुंबई में आयोजित ICAR के शताब्दी समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से एक अहम सवाल पूछा. उन्होंने मंच पर मौजूद कृषि मंत्री से कहा कि पिछले कई वर्षों से किसानों के लिए कई वादे किए गए हैं, लेकिन उन्हें लागू करने में कोई प्रगति नहीं दिख रही. उपराष्ट्रपति ने शिवराज सिंह चौहान से पूछा कि ‘‘क्या किसी से कोई वादा किया गया था, और अगर किया गया था तो क्यों नहीं उसे निभाया गया? वादा निभाने के लिए हम क्या कदम उठा रहे हैं?’’
यह सवाल किसानों के अधिकारों और उनकी समस्याओं की गंभीरता को दर्शाता है. पिछले कई सालों से किसान विभिन्न मुद्दों पर आंदोलन कर रहे हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी का कानून. किसान चाहते हैं कि सरकार उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए एक कानूनी सुरक्षा प्रदान करे. हालांकि, सरकार और कृषि मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा बार-बार यह कहा गया है कि MSP की गारंटी की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन किसान अपने अधिकारों की रक्षा के लिए इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं.
किसानों के अधिकारों की अनदेखी पर चिंता
धनखड़ ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह सवाल उठता है कि इस मुद्दे को अब तक क्यों नहीं सुलझाया गया. उन्होंने कहा, "किसानों को उनका हक नहीं मिल रहा है, पुरस्कार तो दूर की बात है. पिछले साल भी किसान आंदोलन कर रहे थे, और इस साल भी उनका संघर्ष जारी है. कालचक्र घूमता जा रहा है, लेकिन हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं." यह बयान देशभर में किसानों की बढ़ती असंतोष और उनके निरंतर संघर्ष की स्थिति को उजागर करता है.
उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि किसानों के लिए एक ऐसा फार्मूला क्यों नहीं बनाया जा सकता जिसमें अर्थशास्त्रियों और थिंक टैंक के साथ विचार-विमर्श करके यह सुनिश्चित किया जाए कि किसानों को उनका हक दिया जाए. उन्होंने यह सुझाव दिया कि आर्थिक और कृषि नीति पर गंभीर विचार करने की आवश्यकता है ताकि किसानों को लाभ मिल सके और उनका सम्मान सुनिश्चित किया जा सके.
MSP गारंटी कानून की जरूरत पर जोर
उपराष्ट्रपति ने विशेष रूप से MSP गारंटी कानून की बात की और कहा कि खुले मन से सोचने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि इस कानून को लागू करना देश और किसानों के लिए फायदेमंद होगा. उन्होंने यह भी बताया कि अगर यह कानून लागू नहीं किया जाता तो इसके परिणाम नकारात्मक होंगे, और किसानों को उनका उचित मूल्य प्राप्त नहीं होगा, जिससे उनकी स्थिति और भी बिगड़ सकती है.
धनखड़ का कहना था, "आप खुले मन से सोचो और आकलन करो कि अगर MSP गारंटी कानून लागू नहीं किया जाता तो इसके क्या नुकसान होंगे. आपको तुरंत यह दिखाई देगा कि इसमें नुकसान ही नुकसान है." उपराष्ट्रपति ने किसानों के कल्याण के लिए इस कानून की आवश्यकता को एक स्पष्ट और मजबूत तर्क के रूप में प्रस्तुत किया.
किसान आंदोलन और सरकार की जिम्मेदारी
किसान आंदोलनों का इतिहास काफी लंबा है, और यह कोई नई बात नहीं है कि किसान अपने अधिकारों के लिए सड़क पर उतरते हैं. हालांकि, इन आंदोलनों से निपटने के लिए सरकार की तरफ से कई बार टाल-मटोल की नीति अपनाई गई है, जिसका नकारात्मक प्रभाव किसानों पर पड़ा है. किसान अपनी उपज के लिए बेहतर मूल्य की मांग करते हैं, और MSP को एक कानूनी अधिकार बनाने की उनकी मांग अब तक पूरी नहीं हुई है.
उपराष्ट्रपति ने इसे लेकर एक गंभीर सवाल पूछा कि "हमने अब तक किसानों के लिए क्या किया है?" यह सवाल न केवल सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता है, बल्कि यह किसानों की अनदेखी करने के नतीजों को भी दर्शाता है.
नए रास्ते की तलाश
किसानों के मुद्दे पर विचार करते हुए उपराष्ट्रपति ने यह भी सुझाव दिया कि अब समय आ गया है कि हम नए रास्तों पर विचार करें. हमें किसानों की स्थिति को समझते हुए उनकी मदद के लिए ठोस कदम उठाने होंगे. अगर हम किसानों को उनका हक दिलाने में असफल रहते हैं, तो यह न केवल उनके लिए, बल्कि देश के समग्र विकास के लिए भी एक बड़ा संकट बन सकता है.
उपराष्ट्रपति ने यह साफ तौर पर कहा कि देश की कृषि नीति को फिर से विचारने की जरूरत है ताकि यह किसानों के हित में हो. अगर किसानों के लाभ के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो न केवल किसान, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था पर इसका नकारात्मक असर पड़ेगा.
निष्कर्ष
किसानों के अधिकारों की रक्षा और उनकी भलाई के लिए एक मजबूत और प्रभावी नीति की आवश्यकता है, और यह तभी संभव है जब सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से ले और किसानों के साथ संवाद स्थापित करे. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस मुद्दे को उठाकर किसानों की आवाज को एक मंच प्रदान किया है, और यह उम्मीद की जाती है कि इससे सरकार और नीति निर्माताओं के लिए यह संकेत मिलेगा कि किसानों के मुद्दे को हल करने के लिए अब और इंतजार नहीं किया जा सकता.
उपसंहार
किसान देश की रीढ़ हैं, और उन्हें उनका हक मिलना चाहिए. अगर सरकार और कृषि मंत्री अपने वादों को पूरा करते हैं, तो देश की कृषि व्यवस्था मजबूत होगी और किसानों की स्थिति बेहतर होगी. अब वक्त आ गया है कि हम किसानों के मुद्दों को प्राथमिकता दें और उनके संघर्ष को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाएं.
-Shahabuddin Ansari, Delhi.