कबीर दास की शिक्षाएँ
उन्होंने कहा कि भगवान हर जगह हैं और उनका क्षेत्र असीमित है. ईश्वर एक शुद्ध, पवित्र प्राणी, बिना रूप, प्रकाश, अंतहीन और अविभाज्य था. इसलिए ईश्वर सर्व-महत्वपूर्ण था, और केवल प्रेम और भक्ति के माध्यम से ही उसकी पूजा की जा सकती थी.
कबीर के दार्शनिक सिद्धांत सीधे थे. उन्हें भक्ति आंदोलन की मार्गदर्शक आत्मा के रूप में जाना जाता था. उन्होंने अपने 'दोहों' के माध्यम से भक्ति या 'भक्ति' का प्रचार किया. कबीर के दोहों ने सबके दिल को छुआ और सभी ने उन्हें प्यार किया.
प्रेम: सबके लिए प्रेम कबीर का सिद्धांत था. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रेम ही एकमात्र ऐसा माध्यम है जो संपूर्ण नश्वर जाति को भाईचारे के अटूट बंधन में बांध सकता है. कबीर ने हिंदू धर्म और इस्लाम में तुच्छता और कर्मकांडों का तिरस्कार किया, और ये मानवता को एक साथ सुरक्षित करने का कोई रास्ता नहीं खोज सके. इसलिए उन्होंने सभी को सलाह दी कि वे घृणा को त्याग दें और एक और सभी के लिए प्यार कायम रखें.
ईश्वर: ईश्वर कबीर के धर्म का केंद्र बिंदु था और कबीर ने उसे विभिन्न नामों से संबोधित किया. उनकी राय में राम, रहीम, गोविन्द, अल्लाह, खुदा, हरि आदि एक ही ईश्वर थे, लेकिन कबीर के लिए 'साहेब' ही उनका प्रिय नाम था. उन्होंने कहा कि भगवान हर जगह हैं और उनका क्षेत्र असीमित है. ईश्वर एक शुद्ध, पवित्र प्राणी, बिना रूप, प्रकाश, अंतहीन और अविभाज्य था. इसलिए ईश्वर सर्व-महत्वपूर्ण था, और केवल प्रेम और भक्ति के माध्यम से ही उसकी पूजा की जा सकती थी. कोई किसी भी नाम से उन्हें संबोधित करता है, ईश्वर एक है और उसका कोई विकल्प नहीं है. इसलिए कबीर ने एकेश्वरवाद का प्रचार किया. मूर्तिपूजा में उनका विश्वास नहीं था. वह कर्मकांडों और अंधविश्वासों के प्रदर्शन या तथाकथित पवित्र स्थानों पर जाने के भी खिलाफ थे.
शिक्षक: कबीर के शासनादेश में, शिक्षक या 'गुरु' को सर्वोच्च स्थान दिया गया है. उनके अनुसार शिक्षक ईश्वर का अवतार था. कबीर की यह पराकाष्ठा तभी हुई जब वे रामानंद के संपर्क में आए. एक शिक्षक के नेतृत्व वाले व्यक्ति का उचित दिशा में मार्गदर्शन और उसे सही अंतर्दृष्टि विकसित करने में मदद मिली. इस प्रकार कबीर कहते हैं, "गुरु गोविन्द दोउ खाडे काकू लगुन पै बलिहारी गुरु अपने जिन गोविन्द दियु बतल" अर्थात् - "गुरु और गोविन्द दोनों मेरे सामने हैं. मैं पहले किसका सम्मान करूं? मैं पहले गुरु को सम्मान दूँगा क्योंकि उनके माध्यम से मुझे गोविन्द का बोध हुआ है.
भक्ति का मार्ग: कबीर ने जोर देकर कहा कि भगवान को पाने का एकमात्र तरीका भक्ति का मार्ग है. प्रेम और भक्ति निश्चित रूप से ईश्वरत्व की परम प्राप्ति की ओर ले जाएगी. अपने आधार पर पूर्ण समर्पण व्यक्ति को उस तक पहुँचने में मदद करता है, और यह सबसे महत्वपूर्ण बात होनी चाहिए, जिस पर कबीर ने जोर दिया था. कोई अनुष्ठान या पालन की मांग नहीं की गई थी; केवल हृदय की पवित्रता और अटल भक्ति ही दो मूल बातें थीं. इसलिए कबीर ने अपने अनुयायियों को भक्ति मार्ग से ईश्वरत्व प्राप्त करने की सलाह दी.
आत्मा: आत्मा से संबंधित मामले कबीर के आध्यात्मिक प्रेषण का एक अभिन्न अंग थे. उनके अनुसार आत्मा ही जीवन, श्वास और ज्ञान है. यह परम ज्ञान का एक हिस्सा था '. आत्मा ही रचना थी, और वही रचयिता भी थी.