आदतें ही व्यक्ति का व्यक्तित्व बनाती हैं
आदतें किस तरह से गहराई पकड़ती है. सोचिए कि आपके सामने टेबल पर बर्फ़ का क्यूब रखा है. कमरे में इतनी ठंडक है कि आप अपनी सांस को देख सकते हैं और यह तापमान पच्चीस डिग्री है. कमरा धीरे-धीरे गरम होने लगता है...
उमेश कुमार सिंह :
येस! इट मैटर्स. हर इंसान के जीवन में कुछ अच्छी आदतें होती है और कुछ बुरी आदतें होती हैं. इस से पहले कि मैं आपको अपनी अच्छी और बुरी आदतों के बारे में बताऊँ पहले ये समझते है कि आदतें किस तरह से गहराई पकड़ती है. सोचिए कि आपके सामने टेबल पर बर्फ़ का क्यूब रखा है. कमरे में इतनी ठंडक है कि आप अपनी सांस को देख सकते हैं और यह तापमान पच्चीस डिग्री है. कमरा धीरे-धीरे गरम होने लगता है... छब्बीस डिग्री, सत्ताईस डिग्री, अट्ठाईस डिग्री, आपके सामने रखी टेबल पर बर्फ का क्यूब अभी भी है. उनतीस डिग्री, तीस... इक्कत्तीस... ,अब तक कुछ नहीं हुआ. फिर बत्तीस डिग्री. बर्फ पिघलने लगती है. इससे पहले एक-एक डिग्री बढ़ने से इतना अंतर नहीं पड़ा था लेकिन इस एक डिग्री ने बड़ा परिवर्तन कर दिया.
पावेल गर्ग का कहना है की सफलता के पल अक्सर पूर्व के कामों के परिणाम ही होते हैं जो बड़े बदलाव के लिए संभावनाएँ तैयार करते हैं और यह स्थिति हर जगह देखने को मिल जाएगी. कैंसर अपने जीवन का 80 फीसदी भाग तो पता चले बिना ही बिताता है लेकिन फिर कुछ ही माह में शरीर को खत्म कर देता है. बांस पहले पाँच वर्षो में बड़ा हुआ नहीं दिखता है क्योंकि वह जमीन के भीतर जड़ें जमाता रहता है और अगले छह हफ्ते में नब्बे फीट तक बढ़ जाता है.
इसी प्रकार से आदतें भी तब तक कोई फर्क नहीं डालती है जब तक कि आप एक अहम सीमा को पार नहीं कर जाते और नए स्तर नहीं पा लेते. किसी अनुसंधान या तलाश के आरंभ और मध्य में अक्सर निराशा की खाई होती है. आप सीधी रेखा में प्रगति की आशा करते हैं और पहले दिन, एक हफ्ते और यहाँ तक कि कई माह तक जब बदलाव अप्रभावी दिखते हैं तो आप कुंठित हो सकते हैं. ऐसा नहीं लगता है कि आप कहीं जा रहे हैं. यह मूल कारणों में से एक है कि क्यों स्थाई आदतें बनाना इतना मुश्किल होता है. लोग कुछ छोटे बदलाव करते हैं और उन्हें ठोस नतीजा नहीं मिलता है तो वे इसे रोक देने का फैसला करते हैं. आप सोचते हैं ‘मैं कई महीने तक हर दिन दौड़ा तो मैंने अपने शरीर में बदलाव क्यों नहीं देखा ?’ जब इस तरह के विचार हावी होते हैं, तो अच्छी आदतों को दरकिनार करने का बहाना मिल जाता है, लेकिन अर्थपूर्ण बदलाव के लिए अच्छी आदतों को लंबे समय तक बनाए रखना होता है.
एक बच्चा जो 1967 में पैदा हुआ, तब उसके पिताजी 58 रुपए महीने की नौकरी करते थे. वह चाहे कितना भी किस्मत वाला होता, शायद भगवान भी उसके सामने प्रकट होकर उससे बोलते कि तू वरदान मांग, क्या मांगता है, तो भी वह बच्चा हज़ार-दस हज़ार रुपए महीने से ऊपर नहीं मांग सकता था. मगर किस्मत ने उसे इतनी खुशकिस्मती बख्शी कि वह बच्चा आज 300 करोड़ की नेट वर्थ वाली 3 कंपनियों का मालिक है और अपनी टीम को एक करोड़ से ज़्यादा का मासिक वेतन का भुगतान करता है. वह बच्चा मैं, यानि पावेल गर्ग हूँ. यह किताब मेरी जीवन यात्रा तथा इसके उतार-चढ़ाव को कुछ पन्नों मे समेटने की कोशिश है, आशा है, मैं सफल रहा.
डायमण्ड बुक्स द्वारा प्रकाशित बुक ‘येस! इट मैटर्स जिसके लेखक है पावेल गर्ग. यह बुक्स पावेल गर्ग ने अपने जीवन के घटनाक्रमों को एक किताब का रूप दिया है. पावेल गर्ग का कहना है कि मेरा बहुत पहले से ही मन था कि मैं अपने जीवन के घटनाक्रमों को एक किताब का रूप दूँ मगर कभी समय नही लग पाया, कभी किताब लिखने के प्रोसेस का पता नही लग पाया तो लिख नहीं पाया, फिर 2022 मे डॉ. तिलक तंवर के हौसला अफ़जाई तथा मदद से आखिरकार किताब लिखना शुरू किया, फाइनल रिजल्ट आपके हाथ में है. मैं डॉ. तिलक तंवर और R.J. आरती मल्होत्रा के पुस्तक लेखन के दौरान दिए योगदान के लिए आभारी हूँ.
मैं अपने परिवार, मित्रों तथा बिजनेस के सभी साथियों का हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने पग पग पर न केवल मेरा साथ दिया बल्कि जहाँ तक भी संभव हुआ, मार्गदर्शन भी किया. सबसे अधिक मैं अस्तित्व के प्रति अनुग्रहित हूँ जिसने एक साधारण मनुष्य को भौतिक जीवन तथा आध्यात्मिकता के सर्वोच्च शिखरों को छूने के काबिल बनाया.