सावधानी बरतें : डीवीडी से हमेशा के लिए राहत पाए
Take Care: Get Permanent Relief With DVDs
New Delhi, 24 September, 2014 (ismatimes) :
डीप वेन थ्रोंबोसिस
जब शरीर के भीतरी धमनियों में रक्त थक्के के रूप में जम जाता है, तो उसे डीवीडी यानी डीप वेन थ्रोंबोसिस कहा जाता है. यह थक्के तब बनते हैं जब रक्त जमकर गाढ़ा हो जाता है. ये अक्सर पैरों के निचले हिस्से और जांघों में होता है. साथ ही, ये शरीर के अन्य भागों में भी बन सकते हैं. कई बार ये थक्के टूटकर रक्त के द्वारा संचालित होने लगते हैं. खुले या लूज थक्कों को एंबोलस कहा जाता है. जब यह थक्का फेफड़ों तक जाकर रक्त प्रवाह को अवरूद्ध कर देता है, तो इसे पुलमोनरी एंबोलिज्म कहा जाता है. इसे लघु रूप में पीई भी कहा जाता है, जिसमें जान जाने का भी खतरा रहता है. इसके अंतर्गत सीने में दर्द और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत होती है. फेफड़े तक रक्त के थक्के के पहुंचने के 30 मिनट के अंदर मरीज की मृत्यु हो सकती है. सबसे अधिक परेशानी वाली बात यह है कि डीवीटी के 80 प्रतिशत मामलों में किसी तरह के लक्षण प्रकट नहीं होते इसलिए इसे लेकर विशेष रूप से सतर्क रहने की जरूरत है. खास बात यह है कि इस रोग के हमले के अधिक अवसर तब उत्पन्न होते हैं जब मरीज सक्रिय नहीं होता. बहुत लंबी हवाई, रेल या कार यात्रा के दौरान अक्सर ही यह रोग घेरता है, जब शरीर लंबे समय तक एक ही स्थान पर स्थिर रहा करता है.
लक्षण
मुंबई स्थित पी डी हिंदुजा हास्पिटल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन डा.संजय अग्रवाला का कहना है कि पैरों या पैर की एकाध धमनी में सूजन होना, पैरों में दर्द होना खासकर खड़े होते समय या चलते समय, सूजन वाले भाग में जलन या गर्मी का एहसास होना. त्वचा का रंग बदलना आदि.
सावधानियां बरतें
ऐसे मरीज जिनके बारे में मालूम हो चुका है कि उन्हें डीवीटी है, उन्हें कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि परेशानी पैदा करने वाली जटिलताएं नहीं होने पाएं. एस्प्रिन नामक दवा का सेवन करनेे से भी रक्त को पतला होने से रोका जा सकता है. धूम्रपान करने वाले लोगों को धूम्रपान त्याग देना चाहिए. उदाहरण के लिए अगर लंबी रेल या हवाई यात्रा पर जाना हो तो यात्रा आरंभ करने से पहले एस्प्रीन की हल्की मात्रा ले लेनी चाहिए. इसी तरह हवाई जहाज या ट्रेन में अपने केबिन या सीट के आस-पास तक चहलकदमी कर लेने से डीवीटी के खतरे को कम किया जा सकता है. रक्त को अगर जमने नहीं दिया जाएगा या फिर जमे हुए रक्त के थक्के को फेफड़े तक नहीं पहुंचने दिया जाएगा तो फिर डीवीटी का खतरा नहीं रहेगा. जिन लोगों के डीवीटी का शिकार हो जाने का अधिक खतरा रहता है उन्हें कंप्रेशन स्टॉकिंस पहनने की सलाह दी जाती है.
किन लोगों में पाया जाता है?
डा.संजय अग्रवाला का कहना है कि डी वी टी उन लोगों में अधिक पाया जाता है जो कि अधिक यात्रा करते हैं खासकर कार या हवाई जहाज में. वे लोग जो कि किसी बीमारीवश जैसे हार्ट फेल्योर, फ्रैक्चर, सांस संबंधी तकलीफ, ट्रौमा, दुर्घटना आदि के बाद लंबे समय तक बेड पर रहते हैं वे लोग भी इसका शिकार हो सकते हैं. मधुमेह से पीडि़त मोटे लोग, धुम्रपान करने वाले लोग एवं वे महिलाएं जो कि गर्भधारण से बचने के लिए दवाओं का इस्तेमाल करती हैं भी डीवीटी के निशाने पर होती हैं.
डीवीटी की रोकथाम
- अपने डॉक्टर से नियमित जांच कराएं. दवाओं को समय से लें.
- किसी भी बीमारी या सर्जरी के बाद जल्द से जल्द बिस्तर से उठें.
- अपने पैरों को आगे की तरफ फैलाएं और खींचे ताकि रक्त प्रवाह ठीक से हो.
- लंबे सफर करते वक्त निम्रलिखित बातों का ध्यान दें. लंबे सफर के दौरान पैरों का व्यायाम करते रहें.
- लिट और एक्सीलेटर के बजाएं सीढिय़ों का प्रयोग करें.
- ढीले-ढ़ाले व आरामदायक कपड़े पहनें.
- ज्यादा से ज्यादा पेय पदार्थ का सेवन करें और एल्कोहोल न लें.
- व्यायाम से भी मिल सकता है छुटकारा
व्यायाम से भी आप कुछ हद तक डीवीटी से आराम पा सकते हैं. विशेषकर जब आप लंबे समय तक बिस्तर पर रहे हों. मोटे लोगों को अपना अतिरिक्त वजन कम करना चाहिए. नियमित तौर पर वॉकिंग करने से भी आप को बहुत मदद मिलेगी. इससे आप के पैर में डीवीटी विकसित नहीं हो पाएगा. पैरों का व्यायाम जैसे बैठै हुए अपनी एडिय़ों को घुमाते रहना, पैरों के अंगूठों को आगे पीछे की ओर घुमाना चाहिए ताकि तलवों में रक्त एकत्रित न हो.
डीवीटी मरीजों के लिए विशेष
पैरों के लिए विशेष तकिए बनाए गए हैं ताकि यात्रा करते हुए लोग उसकी सहायता से पैरों का व्यायाम कर सकें. हर हाल में सक्रिय रहना बहुत जरूरी है. आम तौर पर ऑपरेशन के कुछ समय बाद तक मरीज को अस्पताल में ही रहना पड़ता है ताकि उसे चिकित्सकों की निगाहों में रखा जाए और किसी भी तरह की जटिलता उत्पन्न होने पर तात्कालिक रूप से कार्रवाई की जा सके. इस दौरान उन मरीजों को जितनी जल्दी हो सके सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. डीवीटी के मरीजों को कंप्रेशन स्टाकिंग्स पहनने की सलाह दी जाती है.
उपचार
डा.संजय अग्रवाला का कहना है कि यह पता लग जाने के बाद कि मरीज को डीवीटी है, उसे तत्काल ही इंजेक्शन के सहारे हेपैरिन दवा दी जाती है. मरीजों को इसी तरह की दवा-वारफ रीन खाने की सलाह दी जाती है. यह दवा कई महीनों तक चल सकती है. जब मरीज इन दवाओं का सेवन कर रहा होता है तो बार-बार रक्त की जांच करवाते रहना चाहिए ताकि यह अंदाजा होता रहे कि मरीज को रक्त को पतला करने वाली इन दवाओं की सही मात्रा दी जा रही है या नहीं. ऐसा करके ही हैमरेज के खतरे को दूर रखा जा सकता है. ऐसा होने पर डीवीटी का कम खतरा रहेगा. ऑपरेशन के विकल्प को बहुत कम अवसरों पर ही आजमाया जाता है. किसी भी आपरेशन या सर्जरी के बाद अधिक दिनों तक बेड पर न रहने की हिदायत दी जाती है. एंटीकोग्लुएंट दवाइयां डी वी टी का उच्चस्तरीय उपचार हैं जैसे:-हेपारिन व वेराफेरिन. ये रक्त में नए-नए क्लाट या गांठ बनने से रोकने में मदद करते हैं. साथ ही पुरानी गांठों को बड़ा भी नहीं होने देती हैं. ये इन गांठों को घटा तो नहीं सकते क्यों कि आप का शरीर धीरे-धीरे खुद ही इन गांठों को समाप्त कर देता है. पैरों के लिए विशेष तकिए बनाए गए हैं ताकि यात्रा करते हुए लोग उसकी सहायता से पैरों का व्यायाम कर सकें. हर हाल में सक्रिय रहना बहुत जरूरी है.
आम तौर पर ऑपरेशन के कुछ समय बाद तक मरीज को अस्पताल में ही रहना पड़ता है ताकि उसे चिकित्सकों की निगाहों में रखा जाए और किसी भी तरह की जटिलता उत्पन्न होने पर तात्कालिक रूप से कार्रवाई की जा सके. इस दौरान उन मरीजों को जितनी जल्दी हो सके सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. बड़े डीवीटी के केसों में लिंब इस्केमिया भी हो सकता है. इससे धमनियों पर दबाव पड़ता है. इससे गैंगरीन, त्वचा में इंफेक्शन होने के भी खतरे रहते हैं. डीवीटी जवां लोग में कम पाया जाता है. ये अपना शिकार 40 से अधिक उम्र के लोगों को अपना शिकार बनाता है. लेकिन किसी भी प्रकार का अंदेशा होने पर तुरंत ही डाक्टर से संपर्क करें. इस विषय पर और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए डा. संजय अग्रवाला से फोन नं. 9869446644 पर संपर्क किया जा सकता है.
उमेश कुमार सिंह