कितना भोजन प्लेटों में फिकता है | आंकड़ों की जुब़ानी एवं उसे बांटने में एनजीओ की भूमिका
“Wasted food can find purpose, ask those it feeds”, “Across India, NGOs collect surplus food from wedding venues, restaurants, bakeries, community centres and cloud kitchens to feed the hungry”
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जो खाना हम प्रतिदिन अपनी प्लेटों में छोड़ देते हैं वह दुनिया के अनेक भूखे इंसानों का पेट भरने के काम आता है। शादियों में लाखों प्लेट खाना फिकता है। कल्पना करें, अंबानी के परिवार में हुई शादियों में कितनी प्लेटों में खाना छूट गया होगा। शादियों के अतिरिक्त बड़े-बड़े आयोजनों में बच्चों की वर्षगांठ, विवाह की वर्षगांठ, मृत व्यक्तियों के सम्मान में दिया गया भोज, होटलों में और अनेक शासकीय उत्सवों में आयोजित भोज, गणतंत्र और आज़ादी के उत्सव पर राष्ट्रपति भवन और राजभवनों में आयोजित भोजों में एक मोटे अंदाज़ के अनुसार पूरी दुनिया में लगभग एक अरब इंसानों का पेट इन प्लेटों में छूटे हुए भोजन से भरा जा सकता है।
टाईम्स ऑफ इंडिया ने पिछले रविवार के संस्करण में “Wasted food can find purpose, ask those it feeds”, “Across India, NGOs collect surplus food from wedding venues, restaurants, bakeries, community centres and cloud kitchens to feed the hungry” अर्थात प्लेटों में छूटा हुआ खाना कैसे भूखे इंसानों का पेट भर सकता है। भारतवर्ष में अनेक एनजीओ इस तरह के खानों को इकट्ठा कर विभिन्न गरीब बस्तियों में रहने वाले बच्चों को प्रतिदिन पहुंचाते हैं। एक और शीर्षक है ‘‘बड़ी भूख और बड़ा खाने का नुकसान’’।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमान के अनुसार 2022 में एक अरब भूखे लोगों के लिए उपलब्ध होने वाला खाना प्लेटों में छोड़ दिया गया। दुनिया में जो खाना खाया जाता है उसका यह 1/5वां हिस्सा है। जो खाना नष्ट होता है उसका 12 प्रतिशत इन आयोजनों में फेंक दिया जाता है। 28 प्रतिशत रेस्टोरेंट और होटलों में फेंक दिया जाता है और 60 प्रतिषत घरों में फिक जाता है। 783 मिलियन लोग प्रतिवर्ष भूखे रहते हैं।
प्लेटों में छूटे गये खाने को खाने लायक बनाने में बहुत कठिनाई होती है। परंतु छूटा हुआ खाना खाने लायक बना रहे इसमें एनजीओ की बहुत बड़ी भूमिका रहती है। जैसे एक एनजीओ है जिसका नाम है राबिनहुड आर्मी। इसके 500 स्वयंसेवक हैं जो इस तरह के खानों को इकट्ठा करके लोगों में बांटते हैं। राबिनहुड के एक स्वयंसेवक के अनुसार हमें इस बात की पूरी सावधानी बरतनी पड़ती है कि खाना कहीं खराब न हो जाए। इसलिए जब इस तरह का खाना तादाद से ज्यादा हो जाता है तो हमें और स्वयंसेवकों की सहायता लेनी पड़ती है। इस तरह का नेटवर्क पूरे देश में है। कुछ एनजीओ ऐसे भी हैं जो खाना पका कर बांटते हैं। इस तरह के एनजीओ के बड़े वेयरहाउस से संबंध रहते हैं। ये एनजीओ खाना पका कर इस तरह के वेयरहाउस में रख देते हैं। परंतु इस तरह खाने को खराब होने से बचाना काफी मंहगा पड़ता है।
कोयम्बटूर शहर में काम करने वाले एक स्वयंसेवक ने बताया कि उनका संगठन करीब 2000 लोगों को इस तरह का खाना पहुंचाता है। खाने में मुख्यतः चावल और सांभर रहता है। सारे प्रयासों के बाद भी बड़ी मात्रा में आज भी इस तरह के खाने को सही हाथों में नहीं पहुंचा पा रहे हैं। डिसिल्वा नामक एक स्वयंसेवक बताते हैं कि हम बंबई के गरीबों की बस्तियों में खाना बांटते हैं। परंतु हमारे प्रयासों के बाद भी हम अभी भी ज़रूरतमंद बच्चों को खाना नहीं दे पाते हैं। इस तरह का छूटा हुआ खाना सिर्फ धनी देशों में ही प्राप्त नहीं होता है बल्कि ऐसे देश जिनमें गरीबी आज भी है वहां भी बड़े पैमाने पर प्लेटों में खाना मिलता है। कुल मिलाकर यह दुनिया की एक बहुत बड़ी समस्या है।
संयुक्त राष्ट्र संघ इस तरह के आंकड़ो को इकट्ठा करता है और स्वयंसेवी संस्थाओं को ऐसे कामों की जिम्मेदारी देने में भूमिका निभाता है। परंतु संयुक्त राष्ट्र संघ का अनुमान है कि आने वाले कई वर्षों तक दुनिया में भुखमरी रहेगी और उसे दूर करना बहुत ही कठिन काम है।
-एल.एस. हरदेनिया द्वारा प्रसारित