राष्ट्रीय प्रेस दिवस 2024: बदलते पत्रकारिता के स्वरूप पर चर्चा

राष्ट्रीय प्रेस दिवस 2024 के पावन अवसर पर इस बार समाहरणालय स्थित जिला पदाधिकारी के सभागार मे संध्या 4:00 बजे एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया.

राष्ट्रीय प्रेस दिवस 2024: बदलते पत्रकारिता के स्वरूप पर चर्चा
National Press Day 2024 celebrated in Aurangabad

आयोजित कार्यक्रम में जिला पदाधिकारी, श्रीकांत शास्त्री, पुलिस - अधीक्षक, अंबरीश राहुल वरीय उपसमाहर्ता सह प्रभारी जिला सूचना जनसंपर्क पदाधिकारी श्वेता प्रियदर्शी भी रहे मौजूद

औरंगाबाद: ( बिहार ) राष्ट्रीय प्रेस दिवस 2024 के पावन अवसर पर इस बार समाहरणालय स्थित जिला पदाधिकारी के सभागार मे संध्या 4:00 बजे एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसमें औरंगाबाद के जिला पदाधिकारी, श्रीकांत शास्त्री, पुलिस - अधीक्षक, अंबरीश राहुल एवं वरीय उप समाहर्ता सह प्रभारी जिला सूचना एवं जनसंपर्क पदाधिकारी, श्वेता प्रियदर्शी भी मौजूद रहे. सर्वप्रथम सभी लोगों ने एक साथ मिलकर परंपरा अनुसार द्वीप प्रज्वलित करते हुए कार्यक्रम की शुरुआत की.

इस बार के आयोजित कार्यक्रम में मुख्य विषय था . चेंजिंग नेचर ऑफ प्रेस. सभागार में उपस्थित पत्रकार बंधुओं को भी मुख्य रूप से इसी विषय पर बोलने हेतु हॉल में उपस्थित सभी पदाधिकारियों ने आग्रह किया. तब हॉल में उपस्थित पत्रकार बंधुओ ने भी बारी - बारी से इसी विषय पर आधारित अपना - अपना पक्ष भी रखा. हालांकि समय कम रहने की वजह से कई पत्रकार बंधु अपना पक्ष भी नहीं रख सके, क्योंकि ठंड के मौसम होने की वजह से अंधेरा भी होने लगा था. जिसके वजह कई मीडिया कर्मी बोलने से वंचित रह गए. समय को देखते हुए ही जब पुलिस - अधीक्षक को बोलने का मौका दिया गया.

तब उन्होंने सर्वप्रथम हॉल में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं बड़ा बोलता नहीं हूं. बहुत अच्छा बोलता नहीं हूं मैं . लेकिन अब आप लोगों के सामने बोलने के लिए मुझे लिखना पड़ रहा है. मैं कभी लिखता भी नहीं हूं, इससे पहले, और मैं जब लिख रहा था, तो मुझे समझ में आया कि ये ऐसा मैं यू.पी.एस.सी. के समय में लिखता था. जब मैं यू.पी.एस.सी. की तैयारी कर रहा था, और एग्जाम दे रहा था, तो ऐसे में इस तरीके से लिखता था, कि क्या खूबियां है. क्या प्रॉब्लम है. कहां से क्या हुआ. अच्छा लगा वो मुझे दिन याद आया, क्योंकि नेचर कैसे है. उस बारे में आप लोगों ने सब कुछ बोल ही दिया है. कुछ बोलने के लिए रह नहीं गया है. मैने शुरुआत की थी. मैने जो देखा था. कार से, वो डी.डी. न्यूज का होता था. सुबह 7:00 बजे का. उसके बाद 24 * 7 न्यूज़ चैनल आ गया. फिर मीडिया आ गया. आज आदमी पत्रकार है. इनके नेचर तो बहुत है. इसके खूबियां भी है, और नुकसान भी है. क्षेत्र बड़ा है. स्कार्सिटी बढ़ी है. आज हर कोई अपना जो वर्शन है. वो दे सकता है लोगों को. लोगों तक पहुंचा सकता है. जो पहले बहुत लिमिटेड लोगों के पास था, तो लोगों को स्कार्सिटी बढ़ी है. लोगों को अब लोग ज्यादा पावरफुल ख़ुद को महसूस करने लगे हैं. सोशल - मीडिया के माध्यम से, एवं अन्य चैनल के माध्यम से भी. लोगों को अब पक्ष रखने का ज्यादा मौका मिलता है. प्रॉब्लम ई है, कंट्रोल लूज हुआ है. अकाउंटेबिलिटी / रिस्पांसिबिलिटी वो सारा का सारा एक हद तक नीचे चला गया है. रेगुलेशन के बाहर. जिसके कारण बाहर आ जा रही है. एक मीडिया का एक रोल जो है. वो ठीक हो गया है. वो पहले मैं देखता था. अब नहीं है. फैक्ट्स और ओपिनियन की बेसिस पे एक पहले एस्टेब्लिश दिखता था. मैंने बहुत बढ़िया पढ़ा, कि एक आदमी बोल रहा है कि आज दिन है. दूसरा आदमी ना बोल रहा है, कि आज रात है. मीडिया को बताने की यह जिम्मेवारी नहीं है. ये आदमी बोल रहा है, कि दिन है. ये आदमी रात. इसका जिम्मेदारी है कि बाहर निकल कर देख ले, कि दिन है. कि रात है. और लोगों को ये बताएं, कि दिन है, या रात. ये मैने पढ़ा था. बहुत अच्छा लगा. लेकिन इसका ऑपोजिट भी है, कि ओपिनियन अपनी ओपिनियन पर भी लोगों को ठीक सोंच लेना है, कि नहीं रात है, तो रात है. लेकिन अब मेरा ओपिनियन है, कि दिन है. ये चीज भी बहुत देखने को मिल रहा है, तो ये नहीं होना चाहिए. ये पहले नहीं होता था. जब अखबार और सुबह 7:00 बजे वाली न्यूज़ थी, तो नही होता था. लेकिन जब से ये 24 * 7 न्यूज़ चैनल हुआ, और मीडिया शुरू हुआ. कंपटीशन बढ़ा है. कोई डाउट नहीं है. ब्रेकिंग न्यूज़ के चक्कर में आज हर कोई केवल ये न्यूज ब्रेक करना चाहता है. जिसके कारण सारी की सारी समस्याएं आ रही है. दरअसल बहुत ज्यादा बढ़ गया है लोगों के अंदर. दूसरे को वो हमेशा काउंटर करना / कांट्रडिक्ट करना / उनके अप्रोच को अपने से निहित मानना. ये सारा का सारा चीज बहुत ज्यादा बढ़ रहा है. ये नही होना चाहिए. वेब और बढ़ गया है. रिस्पांसिबल मीडिया जो पहले चलता था. आज के इस सेटअप में / सोशल - मीडिया के चक्कर में. इसके बाद पुलिस - अधीक्षक ने संबोधित करते हुए कहा कि आप लोगों को बोला है. मैने कहा है. पत्रकार बंदूक का गोला है. मेरे खिलाफ जितना छापना है, छापिए. अगर आप नहीं छापेंगे, तो हम अपना काम कैसे करेंगे. हम भी आराम से बैठ जाएंगे, तो जो भी घटना घट रही है. उसको आप बढ़ चढ़कर छापें. लेकिन सच्चाई छापें. अपने मन से कुछ भी कुछ मिला नहीं है.

इसके बाद फिर अपने संबोधन के दौरान ही पुलिस - अधीक्षक, अंबरीश राहुल ने एक ऐसे शब्द का प्रयोग कर दिया. जो आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं. वो शब्द था कि कंस्ट्रक्टिव ये डिजिल्व, आप एक वॉच डॉग है, तो उसका एक आप लोग उसको पालन करें. ज्ञात हो कि इसी शब्द के संबोधन को लेकर हॉल में बैठे हुए काफी मीडिया - कर्मियों में पुलिस - अधीक्षक के खिलाफ नाराजगी भी व्याप्त है, और हॉल में उपस्थित मीडिया - कर्मियों का कहना है, कि ये एस. पी. साहब अपने आप को समझते क्या है. जो अपने संबोधन के दौरान वॉच डॉग के नाम से संबोधित किया.

हालांकि इस संबोधन के बाद पुलिस - अधीक्षक ने हॉल में उपस्थित मीडिया - कर्मियों को संबोधित करते हुए कहा कि आप फ्रेंड्स ऑफ़ पीपल है. आप उनके पब्लिक को, पब्लिक के जो भी समस्या है, उठाएं. हर लेवल पर उठाएं. ये आपका मेन रोल है, और एक अंतिम में है, कि बट आप लोग हर किसी को आईना दिखाते हैं. एकाध बार आईना आप लोग खुद को भी दिखा ले, और अगर आप खुद को आईना दिखाने लगेंगे, तो मुझे लगता है, कि आप लोगों में सुधार हो जाएगा, और फिर से हम लोग, ये जो चेंजिंग नेचर है. उसके बावजूद भी एक अकाउंटेबिलिटी और रिस्पांसिबिलिटी जो है. वो अपने काबू में ला पायेंगे.

अंत में फिर जिला पदाधिकारी, श्रीकांत शास्त्री ने हॉल में उपस्थित सभी मीडिया - कर्मियों को विषय पर आधारित ही संबोधन कर कार्यक्रम का समापन किया. इस पूरे कार्यक्रम का मंच संचालन वरीय उपसमाहर्ता सह प्रभारी जिला सूचना जनसंपर्क पदाधिकारी, श्वेता प्रियदर्शी ने की.

-- अजय कुमार पाण्डेय