तकब्बुर का पर्दा

तकब्बुर का पर्दा

हमारे प्यारे नबी ए करीम ﷺ के अज़ीम सहाबी हज़रत उस्मान बिन अफ्फान (रदी अल्लाहु अंहु) के कई ग़ुलाम थे, लेकिन एक शाम आप अपने बगीचे से अपने सिर पर लकड़ी का एक बंडल लेकर घर तशरीफ लाए । जब आपसे इसका कारण पूछा गया तो आपने फरमाया , "मैं अपनी अना (नफ़्स) को जाँचना चाहता था।"

हज़रत दाता गंज बख्श अली हुजवेरी (क़द्दस अल्लाहु सिरराहु) ने फरमाया कि अल्लाह ता आला ज़ाहिरी तौर पर अपने दोस्तों (औलिया) को ज़ुल्म का शिकार बनाता है लेकिन उन्हें बातिनी तौर पर नुक़सान होने से महफ़ूज़ रखता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अल्लाह ता आला किसी को भी अपने दोस्तों के बातिन हुस्न को थामने नहीं देता। ज़ुल्म अल्लाह के दोस्तों में तकब्बुर को आने से रोकता है क्योंकि तकब्बुर तबाही लाता है।

अल्लाह ता आला यह काम लोगों के एक तबक़े को अपने दोस्तों के खिलाफ करके इन्हें मायूस करके के लिए करता है। फिर वली (पवित्र संत) का अपना शऊर (नफ़सी लव्वामाह) उसके खिलाफ उन लोगों में शामिल हो जाता है जो उसे सभी कामों के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हैं। यदि वह बुरे काम करता है, तो उसके मुख़ालिफ उस पर इल्ज़ाम लगाते हैं। यदि वह अच्छे काम करता है, तो उसका ज़मीर उसे यह इल्ज़ाम लगाता है कि उसे जो करना चाहिए था, उससे कम किया।

शेख़ ने समझाया कि तसव्वुफ की राह में तकब्बुर से ज़ादा कोई हिजाब मुश्किल नहीं है। यह दूसरों से शुरू होता है जब किसी शक्स की तारीफ की जाती है और ख़ुद  जब अपने अच्छे कामों की तारीफ करता है। लेकिन अल्लाह ता आला अपने दोस्तों की हिफ़ाज़त फ़रमाता है और इनके आमाल की ख़ूबसूरती को लोगों की नज़रों से ऐसे छुपा कर रखता है जिससे इनकी नेकियाँ लोगों को पसंद न आए। और अगर अल्लाह के दोस्त अपने अच्छे कामों का श्रेय अल्लाह को देते हैं, तो वे तकब्बुर से बच जाते हैं। इसलिए, जो शक्स अल्लाह को पसंद है यह ज़रूरी नहीं के वह लोगों को पसंद आए और लोगों द्वारा पसंद किया गया शक्स ज़रूरी नहीं के अल्लाह को पसंद आए।

दुआ:

या मेरे अल्लाह जुमला अंबिया के वास्ते,
हाजतें बरला मेरी कुल औलिया के वास्ते

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(संदर्भ: मौलाना वाहिद बख्श रब्बानी द्वारा अनुवादित हज़रत दाता गंज बख्श अली हुजवेरी (QSA) की काशफुल महजूब, पृष्ठ 71-77)