ग़लती कहाँ हो रही है?
After all, where is the hole that neither poverty nor illiteracy is ending.
अगर पानी का नल चालू हो और उसके नीचे कितना भी बड़ा बर्तन रखा हो वो कभी न कभी ज़रूर भर जाता है और अगर नहीं भरता तो समझ लीजिए कि बर्तन में छेद हो गया है जो बर्तन को भरने नहीं दे रहा, उसके लिए दो तरीक़े हैं या तो बर्तन बदल दो या छेद बंद कर दो. अगर आप ग़ौर करेंगे तो इस्लामी कानून के हिसाब से हर साल हज़ारों करोड़ रुपए ग़रीबों के लिए सदका ज़कात के नाम पर निकलता है.
सवाल ये पैदा होता है कि हर साल हज़ारों करोड़ रुपए अगर गरीबों के लिए जा रहा है तो फिर मुसलमानों के अंदर से ग़रीबी ख़त्म क्यों नहीं हो रही आज भी सबसे ज्यादा भिकारी इसी क़ौम से आते हैं. और अगर ये पैसा दीनी तालीम पर ख़र्च हो रहा है तो तक़रीबन 95% मुसलमानों को दीनी तालीम में क़ाबिल हो जाना चाहिए था, जबकि हकीकत ये है कि दीनी तालीम तो छोड़ो ज़्यादातर मुसलमानों को कुरान शरीफ़ पढ़ना या उर्दू पढ़ना लिखना भी नहीं आता तो आख़िर ये पैसा जाता कहां है?
आख़िर छेद कहां पर है कि न तो ग़रीबी ख़त्म हो रही है और न ही जहालियत.
जब तक इस छेद को ढूंढ कर इसे बंद नहीं किया जाएगा तब तक क़ौम के हालात नहीं सम्भलेंगे. ग़ौर ज़रूर करना, क्योंकि बिना ग़ौर किये हुये हमारे हालात नहीं बदलने वाले, और ना ही किसी भी तरह से हमारी नई नस्लें सुधरने वाली. इसके लिए हमे दीन और दुनिया दोनो पर मेहनत करना पड़ेगी.
-मुस्लिम कुरैशी एडवोकेट, हापुड