दुनिया की बहुत बड़ी आबादी पर बाढ़ का खतरा
बाढ़ और भारी बारिश के कारण हर साल दुनियाभर में अरबों रुपए का नुकसान होता है और अर्थव्यवस्थाएं कमजोर होती हैं।
बाढ़ और भारी बारिश के कारण हर साल दुनियाभर में अरबों रुपए का नुकसान होता है और अर्थव्यवस्थाएं कमजोर होती हैं।
सदी की सबसे भयानक बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है। लगभग एक चौथाई ऐसी बाढ़ के सीधे खतरे में हैं, जो सब कुछ बहा ले जा सकती है। इनमें से ज्यादातर लोग गरीब देशों में रह रहे हैं। दुनिया का लगभग हर चौथा इंसान बाढ़ के खतरे में है। गरीब देशों में यह खतरा ज्यादा बड़ा है। बाढ़ और भारी बारिश के कारण हर साल दुनियाभर में अरबों रुपए का नुकसान होता है और अर्थव्यवस्थाएं कमजोर होती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के साथ यह खतरा बढ़ता जा रहा है और ऐसे लोगों की संख्या भी बढ़ रही है जो इस खतरे के दायरे में आ चुके हैं।
‘नेचर कम्यूनिकेशंस’ नामक पत्रिका में प्रकाशित इस शोध में बाढ़ के वैश्विक खतरे का अध्ययन किया गया है। इस खतरे में समुद्र, नदियां और बारिश आदि बाढ़ के सभी संभावित खतरों का आकलन किया गया है। साथ ही, उस खतरे की जद में आने वाली आबादी और विश्व बैंक के गरीबी के आंकड़ों के साथ उनकी तुलना के बाद रिपोर्ट तैयार की गई है।
रिपोर्ट कहती है कि 1.81 अरब लोग यानी धरती के लगभग 23 फीसद आबादी ऐसी खतरनाक बाढ़ के सीधे खतरे में हैं जो कि सौ साल में एक बार आती है। इस बाढ़ में छह इंच से ज्यादा पानी का भराव हो सकता है। शोध के मुताबिक, ‘ऐसी बाढ़ जिदंगियों और रोजी-रोटी को गंभीर खतरा पहुंचाएगी, खासकर कमजोर तबकों के लिए।’ शोध के मुताबिक, जो 1.81 अरब लोग खतरे में हैं, उनमें से 90 फीसद न्यून या मध्य आय वाले देशों में रहते हैं। शोध का निष्कर्ष है कि गरीबी की रेखा से नीचे जीने वाले लोगों के लिए भयानक बाढ़ के खतरे का जो आकलन पहले किया गया था, जोखिम उससे कहीं ज्यादा है।
शोधकर्ताओं ने पाया है कि जिन इलाकों में सदी में एक बार आने वाली भयानक बाढ़ का खतरा है, वहां लगभग 9.8 खरब डालर की आर्थिक गतिविधियां होती हैं, जो कि 2020 के वैश्विक जीडीपी का 12 फीसद है। हालांकि शोधकर्ता स्पष्ट करते हैं कि इस खतरे का सिर्फ वित्तीय नुकसान देखना भेदभावपूर्ण हो सकता है, क्योंकि इससे ध्यान उन जगहों पर ज्यादा जाएगा जहां आर्थिक केंद्र हैं।
विश्व बैंक की जुन रेंटश्लेर और उनके साथियों ने यह अध्ययन किया है। रेंटश्लेर कहती हैं, ‘जोखिम के दायरे में आने वाली आबादी की गरीबी का आकलन कर हम यह दिखाना चाहते हैं कि गरीब देशों को खतरा ज्यादा है क्योंकि वहां खतरों के असर ज्यादा समय तक रहेंगे।’ रिपोर्ट के मुताबिक, खतरे के दायरे में आने वाले लोगों में से 1.21 अरब लोग दक्षिण और पूर्व एशिया में रहते हैं। इनमें चीन और भारत का नाम विशेष है, जहां दुनिया की एक तिहाई आबादी रहती है। इन लोगों में से 78 करोड़ ऐसे हैं, जो रोजाना 450 रुपए से भी कम की आय पर गुजर करते हैं।
नेशनल यूनिवर्सिटी आफ आयरलैंड गैलवे के थामस मैक्डेरमोट कहते हैं कि यह शोध ‘गरीबी और बाढ़ के खतरे में संबंध को पहली बार उजागर करती है।’ शोधकर्ताओं ने कहा कि इस बारे में पहले जो अध्ययन हुए हैं, वे अक्सर भोगौलिक क्षेत्रों या बाढ़ के विभिन्न प्रकारों में सीमित रहे थे, इसलिए उनमें यह बात सामने नहीं आ पाई कि असल में कितने लोग हैं, जो यह खतरा झेल रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन और जोखिम भरा शहरीकरण आने वाले सालों में खतरों को और बढ़ा सकते हैं।’ इसी महीने भारत, चीन और बांग्लादेश के हिस्सों में आई बाढ़ ने करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया। चीन में लगभग 50 लाख लोग विस्थापित हो गए, जबकि बांग्लादेश में लाखों लोग राहत कैंपों में रह रहे हैं। सभी जगह बाढ़ ऐसी बारिश की वजह से आई, जो सदी भर में सबसे ज्यादा थी।
सौजन्य : जनसत्ता