हज़रत फख़रुल आरेफीन की आजज़ी
हज़रत फख़रुल आरेफीन की आजज़ी
हज़रत फख़रुल आरेफीन (द्वितीय) मौलाना अब्दुल हई (क़द्दस अल्लाहू सिर्राहु) को फक़ीरी का कैसा भी बाहरी दिखावा नापसंद था। अजमेर शरीफ में समा सुनते हुए आप एक आम आदमी की तरह कपड़े पहनते और मशायख़ (विद्वानों) के बजाय आम लोगों के साथ बैठते।
एक बार आप हज़रत मौलाना अब्दुल हई (क़द्दस अल्लाहू सिर्राहु) समा सुन रहे थे, जबकि आपके मुरीद और ख़लीफा, हज़रत ख़्वाजा मोहम्मद नबी रज़ा शाह (क़द्दास अल्लाहू सिर्राहु) मशायख़ के साथ बैठे थे। जब हज़रत मोहम्मद नबी रज़ा शाह (क़द्दस अल्लाहू सिर्राहु) ने हज़रत मौलाना अब्दुल हई (क़द्दस अल्लाहू सिर्राहु) को आम लोगों के साथ बैठे देखा, तो आप दौड़े और हज़रत मौलाना अब्दुल हई (क़द्दास अल्लाहू सिर्राहु) के पैरों पर गिर पड़े।
दूसरे माशायख़ ये देख कर हैरान हो गए क्योंकि हज़रत मोहम्मद नबी रज़ा शाह (क़द्दस अल्लाहु सिर्राहु) को अपने समय के सबसे बड़े औलिया और मशायख़ की तरफ से बहुत इज़्ज़त और एहत्राम हासिल था, इसलिए वे सब यह नहीं सोच सकते थे कि हज़रत मोहम्मद नबी रज़ा शाह (क़द्दस अल्लाहु सिर्राहु) किसी और शेख़ के सामने ऐसे सर झुकाएँगे ख़ासतोर पर जो एक आम आदमी की तरह सादे लिबास पहने हुए हों।
हज़रत मोहम्मद नबी रज़ा शाह (क़द्दस अल्लाहू सिर्राहु) ने फिर सभी को समझाया "यह मेरे मालिक हैं और मैं इनका ग़ुलाम हूँ।" सिलसिला आलिया को बाद में अजमेर शरीफ में हज़रत ख़्वाजा मोहम्मद नबी रज़ा शाह (कद्दस अल्लाहू सिर्राहु) के ज़रिए से इतनी कामयाबी और तरक़्क़ी दी गई कि अजमेर शरीफ और आसपास के इलाकों से अब इस सिलसिले में हजारों तादाद में मुरीद हैं।
दुआ:
दिलको हमारे या ख़ुदा दे जिंदगी और ताज़गी,
शाह मुहम्मद अब्दुल हई मक़बूल उद दुआ के वास्ते
हो दुआ मक़बूल हमारी सदका ए ला तक नातू,
शहंशाह ए मोहम्मद नबी रज़ा के वास्ते
सिलसिला-ए-आलिया ख़ुशहालिया !!
(संदर्भ: एजाज़-ए-जहाँगीरी, पृष्ठ 18)
Syed-Afzal--Ali-shah
Editor cum Bureau chief.
Lucknow