अमरावती की सच्चाई : क्या कुर्सी के लिए सियासत का मैयार इस क़द्र गिराया जा सकता है?

अमरावती की सच्चाई : क्या कुर्सी के लिए सियासत का मैयार इस क़द्र गिराया जा सकता है?

अमरावती की सच्चाई : क्या कुर्सी के लिए सियासत का मैयार इस क़द्र गिराया जा सकता है?

अमरावती की क्या सच्चाई है नहीं मालूम लेकिन महाराष्ट्र में सरकार बदलते ही इस मामले को भी तूल दे दिया गया। इसको उदयपुर की तरह क़रार दे दिया गया लेकिन देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीमकोर्ट की जानिब से जो टिपण्णी की गई है और उपरोक्त बातों के लिए जिस गुस्ताख़ ए रसूल को ज़िम्मेदार क़रार दिया गया है उसके ख़िलाफ़ अबतक कोई करवाई नहीं की गई बल्कि सुप्रीमकोर्ट के ख़िलाफ़ ही मुहिम छेड़ दी गयी। सर्वोच्च न्यायालय की शान में फ़िरक़ापरस्तों की जानिब से जो अभद्र टिपण्णी की गयी है उसको यहाँ लिखना भी मुनासिब नहीं है।

सवाल यह है कि अगर सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने अपने तब्सरे में यह कह दिया कि 'आपके बयान से देश का माहौल ख़राब हुआ है। आपके बयान से मुल्क की बदनामी हुई है। आपने पैग़म्बर पर भड़काऊ बयान दिया है। आपको टीवी पर जाकर माफ़ी मांगनी चाहिए। आप ख़ुद को वकील कहती हैं, फिर भी ऐसा बयान दे दिया। तो इसमें ग़लत क्या है? सुप्रीमकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को भी अगर फटकार लगाई कि आख़िर एफ़ आई आर दर्ज होने के बाद नूपुर शर्मा को गिरफ़्तार क्यों नहीं किया गया? लगता है आपके (नूपुर शर्मा ) लिए दिल्ली पुलिस ने रेड कार्पेट बिछा रखा है तो इसमें हैरानी क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने बहुत साफ़ शब्दों में ये भी कहा है कि नूपुर शर्मा के बयान की वजह से ही उदयपुर का हादसा हुआ है, इसके बावजूद क्या नूपुर शर्मा की गिरफ़्तारी अमल में लायी गई? कहीं महापंचायत करके और कहीं जुलूस निकाल कर मुसलामानों के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने का एलान किया जा रहा है तो कहीं मुस्लिम सब्ज़ी और फल बेचने वालों का समाजी बहिष्कार का एलान किया जा रहा है। उदयपुर और अमरावती के मुल्ज़िमीन की गिरफ़्तारियों के बावजूद मुस्लिम मुख़ालिफ़ सियासत जारी है।

नूपुर शर्मा की हिमायत पहले से ज़्यादा की जा रही है। सुप्रीमकोर्ट के सख़्त तब्सरे के बावजूद फ़िरक़ापरस्त ताक़ते मुल्क के मुसलामानों को ही क़ुसूरवार ठहरा रही हैं। इस दौरान उदयपुर के ताल्लुक़ से यह बात भी सामने आई है कि जिस रियाज़ नाम के शख़्स ने कन्हैया का क़त्ल किया है इसका ताल्लुक़ भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा से है। रोज़नामा दैनिक भास्कर की जानिब से इस पर एक पूरी स्टोरी भी चलाई गई है। विपक्ष की जानिब से भाजपा को घेरा भी गया है और जवाब माँगा गया है तो क्या इसकी ईमानदारी से जांच नहीं होनी चाहिए?

सवाल यह है कि मुल्क में हो क्या रहा है? क्या कुर्सी के लिए सियासत का मैयार इस क़द्र गिराया जा सकता है? बहरहाल कुछ भी हो लेकिन "बर्क़ गिरती है तो बेचारे मुसलामानों पर" वाली सूरत ए हाल है। इस पूरी गुफ़्तगू में जो सबसे अहम बात छन कर आयी है वो ये कि सरकार में बैठी भाजपा की नज़र में सुप्रीमकोर्ट और संविधान की कोई इज़्ज़त है या नहीं? अगर है तो नूपुर शर्मा को फ़ौरी तौर पर जेल भेजा जाए और सुप्रीमकोर्ट की तौहीन करने वालों के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की जाए वरना यही समझा जाएगा कि अब देश में क़ानून का राज नहीं है।

मुमकिन है कि इस पर भाजपा की जानिब से यह जवाब हो कि नहीं है लेकिन मुझको कहने दीजिये कि देश में जो कुछ हो रहा है उसको पूरी दुनिया देख रही है। आज़ाद सहाफ़ी मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ कहाँ कहाँ आवाज़ बुलंद हुईं बताने की ज़रूरत नहीं है। नूपुर शर्मा का बचाव मोदी सरकार को कितना महंगा पड़ रहा है वो भी सबके सामने है इसलिए मेरा कहना है कि ग़लत फ़हमी को दूर करते हुए संविधान की सर्वोच्चता को क़ायम रखा जाए। क़ुसूरवारों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए और मुल्क के अमन व अमान को बहाल किया जाए, इसी में ख़ैर है।

जहाँ तक मुल्क के मुसलामानों का ताल्लुक़ है तो उनको यही मश्विरा है कि वो और सब्र व तहम्मुल से काम लें। संविधान और अदालत पर भरोसा रखें। अपनी सियासी ताक़त पैदा करें और सुप्रीमकोर्ट के तब्सरे से जो रौशनी मिली है उसमें मुल्क के रौशन मुस्तक़बिल को देखें। आख़िर अपनी बात एक शेर से ख़त्म करता हूँ।

तुंदी ए बाद ए मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब।

ये तो चलती है तुझे ऊंचा उड़ाने के लिए॥

*कलीमुल हफ़ीज़*, नई दिल्ली