भेड़िया के भेस में थाना में बैठे थानेदारों पर बिहार में कार्रवाई क्यों नहीं
भेड़िया के भेस में थाना में बैठे थानेदारों पर बिहार में कार्रवाई क्यों नहीं, अगर एसपी व डीएम से उपर थानेदार है तो फिर जिलें में इन पदों की जरूरत ही क्या है?
अनिल कुमार मिश्र ,संवाददात्ता :
औरंगाबाद (बिहार) 27 जून 2022 :- आतंकवादियों से भी क्रूर है औरंगाबाद जिले के कुटुंबा प्रखंड का थानेदार, थानेदार को उग्रवाद उत्पादक यंत्र कहा जाय तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी , की जांच बिहार प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने औरंगाबाद जिले के पुलिस कप्तान को सुपुर्द किया है, जैसा कि प्रशासनिक सूत्रों से शिकायत कर्ता को सूचना प्राप्त है। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि आतंकवादियों से भी दूर है कोटवा प्रखंड के थानेदार की जाँच एक जमादार को मिला हुआ है, ऐसा वर्षो से होते आया है और आज यह कोई नई बात भी नहीं ! जब भी आलाकमान का जाँच आता है तो आरोपित थानाध्यक्ष को आरोपो की जाँच सपुर्द किया जाता है और आरोपित थानाध्यक्ष अपने उपर लगे आरोपों का जाँच भी अपने अधीनस्थ चहेते अधिकारियों से कराकर स्वयं क्लीन चिट (निर्दोष ) और शिकायतकर्ता को अपराधी साबित कर देते है।
थानाध्यक्ष का तथ्यहीन रिपोर्टर अपने आप में कार्रवाई के लिए पर्याप्त साक्षय एवं अधार है फिर भी कार्रवाई नहीं होता है, यदा कदा किसी ने जाँच रिपोर्ट में सच्चाई को लाने का साहस भी किया तो भ्रष्टाचार का जारी खेल में संलिप्त अधिकारी उसे दुशाहस बताकर आरोपित पुलिस के बचाव में जूट जाते है। ऐसे भी पुलिस का अपराध की जाँच जब पुलिस वाले तथा इनके अधीनस्थ अधिकारी जब तक करते रहेंगे तबतक हलात भी यही रहेगें।
अब सवाल उठता है क्या बिहार -पुलिस के पास "अपराधियों को पकड़ने व सजा दिलाने के लिए "यही वैज्ञानिक अनुसंधान है जिसके तहत थाने में बैठकर अपराध जगत को संचालित करने वाले थानाध्यक्षों को अपराध की छूट दिया जाता है एवं प्रतिशोध में बदला लेने वालो पर नकेल कसे जाते हैं ।
ज्ञातब्य हों कि पीड़ितों को न्याय दिलने की जबादेही सभी राज्यों में राज्य सरकार की होती है किन्तू बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले में यौन शोषण की शिकार नाबालिग लड़की व महिलाओं, घरेलु हिंसा का शिकार महिला व पुरूष , उपेक्षित सीनियर सिटीजन, सभी जात व समुदाय के पीड़ित व उपेक्षित कमजोर वर्ग के महिला व पुरूष, छात्र - छात्रा तथा इनके आवाज को उठाने वाले सोशल एक्टिविस्ट एवं पत्रकारों को न्याय कौन दिलायेगा और न्याय दिलाने की जवाबदेही किसकी है ,यह सभी के समझ से परे हो चुका है और थाना के संरक्षण में सरेआम दमन की करवाई, सरकारी संपदा की लूट ,अवैध शराब के कारोबार तथा सरकार प्रायोजित विभिन्न महत्वाकांक्षी योजनाओं में सरेआम लूट का धंधा फल-फूल रहे हैं जिससे जिले के तमाम पदाधिकारी ,राजनीतिक दल के नेता अनभिज्ञ नहीं है।
आखिर थानाध्यक्ष का आतंक को सहन करने के लिए जिले में कमजोर वर्ग, सोशल एक्टिविस्ट एवं पत्रकार विवश व लाचार क्यों है और इन्हें न्याय कौन दिलायेगा ,यह जिले के पीड़ित व उपेक्षित सोशल एक्टिविस्ट व पत्रकार तथा इनके परिवार जिले के तमाम प्रशासनिक व पुलिस पदाधिकारियों, बिहार सरकार के माननीय मुखिया,मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जानना चाहते हैं और पीड़ितों व उपेक्षितों नें समाचार पत्र व सोशलमीडिया के माध्यम से सवालों के जवाब भी मांगा है । अब सवाल उठता है, क्या जिले के तमाम वरीय पुलिस व प्रशासानिक अधिकारी एवं बिहार- सरकार के माननीय मुखिया नीतीश कुमार इन सवालों का जबाब दे पायेंगे।
माँगे :-
01 अनैतिक कार्यों के विरुद्ध उठ रहे आवाज को दबाने हेतु थाना के संरक्षण ,उकसावे एवं बहकावे में सोशल एक्टिविस्ट एवं पत्रकार पर लगातार हुए हमले की गहन जाँच व समीक्षा मीड़़िया व शिकायत कर्ताओं के बीच कराने
02.अनैतिक दबाव बनाने हेतू सोशल एक्टिविस्ट एवं पत्रकार तथा इनके परिवार पर सरासर झूठे व तथ्यहीन दर्ज अनेको मुकदमों का गहन जाँच व समीक्षा मीड़़िया व शिकायत कर्ताओं के बीच करने।
03. थाना के संरक्षण में सरकारी संपत्ति व संपदा तथा सरकार प्रायोजित योजनाओं की लूट को रोकने हेतू थाना के संरक्षण में हुए लूट की गहन जाँज व समीक्षा मीड़़िया व शिकायत कर्ताओं के बीच करने।
04. घटनाओं की पुनरावृत्ति पर रोक लगाने हेतू जाँचोपरान्त
अपराधकर्मियो के संरक्षक थानाध्यक्षों एवं इनके संरक्षक पुलिस पदाधिकारियों पर विधिसम्मत धराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज कराकर समुचित सजा दिलाने,
05 सरकारी संपदा एवं जनमानस को निर्बाध गति से लूटने हेतु सोशल एक्टिविस्ट एवं पत्रकार तथा इनके परिवार पर लगातार सरासर झूठे व तथ्यहिन दर्ज (दर्जनों) मुकदमे को न्यायहित एवं राज्यहित में वापस लेने की मांग ,जिला प्रमंड़ल व राज्यस्तरीय पुलिस व प्रशासानिक पदाधिकारी , बिहार -सरकार के माननीय मुखिया , नीतीश कुमार मुख्य मंत्री बिहार सरकार से की है।