सरफ़राज़ ख़ान की तुलना डॉन ब्रैडमैन से हो रही है।
सरफ़राज़ ख़ान, 24 साल के इस युवा बल्लेबाज़ ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उनकी बल्लेबाज़ी का औसत 82.83 है. इससे बेहतर रिकॉर्ड क्रिकेट की दुनिया में केवल एक बल्लेबाज़ का है और वो बल्लेबाज़ हैं ऑस्ट्रेलिया के महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन. ब्रैडमैन ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 95.14 की औसत से रन बनाए थे. फर्स्ट क्लास में 2000 से ज़्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज़ों में सरफ़राज़ ख़ान, ब्रैडमैन के बाद दूसरे स्थान पर हैं. करियर के शुरुआती दिनों में ऐसी उपलब्धि हासिल करना किसी करिश्मे से कम नहीं है.
इस रणजी सीज़न में भी सरफ़राज़ ने शानदार खेल दिखाया है. क्वार्टरफ़ाइनल मुक़ाबले में उत्तराखंड के ख़िलाफ़ उन्होंने 153 रनों की पारी खेली, इस दौरान उन्होंने चौथे विकेट के लिए डेब्यू कर रहे क्रिकेटर सुवेद पारकर के साथ 267 रनों की साझेदारी निभायी. महज छह मैचों में 937 रनों के साथ सरफ़राज़ इस सीज़न में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज़ हैं.
यहां यह याद रखना ज़रूरी है कि पिछले सीज़न में भी उन्होंने 928 रन बनाए थे. दो सीज़न में 900 से ज्यादा रन बनाने की उपलब्धि रणजी इतिहास में अब तक महज दो बल्लेबाज़ों के नाम थी. दिल्ली के बल्लेबाज़ अजय शर्मा ने 1991-92 में 933 और 1996-97 में 1033 रन बनाए थे जबकि मुंबई के पूर्व कप्तान वसीम जाफ़र ने 2008-09 में 1260 और 2018-19 में 1037 रन बटोरे थे.
लगातार दो सीज़न में सरफ़राज़ ख़ान ने जिस तरह की बल्लेबाज़ी की है, उसने लोगों को अचरज में डाला हुआ है. पिछले सीज़न में उनके 928 रन को ज़ोरदार वापसी के तौर पर देखा गया था क्योंकि सरफ़राज़ को एक सीज़न के लिए मुंबई की टीम से दूर रहना पड़ा था.
सरफ़राज़ ख़ान आज करिश्माई बल्लेबाज़ी कर रहे हैं तो इसके लिए केवल और केवल उनके पिता नौशाद ख़ान ज़िम्मेदार हैं, जो अपने बेटे के कोच भी हैं. मुंबई की उमस भरी गर्मी के बीच भी हर दिन नेट्स पर सरफ़राज़ ख़ान को वे 400 गेंद यानी 65 से भी ज़्यादा ओवर की बल्लेबाज़ी कराते हैं. यही वजह है कि सरफ़राज़ अब कहीं ज़्यादा अनुशासित, बेहतर और भरोसेमंद बल्लेबाज़ के तौर पर उभरे हैं.
मध्य प्रदेश के ख़िलाफ़ फ़ाइनल मुक़ाबले की पहली पारी में उन्होंने अधिकांश रन निचले क्रम के बल्लेबाज़ों के साथ बनाए हैं. उन्होंने बाउंड्री जमाने के लिए कमजोर गेंदों का इंतजार किया और मुंबई के शीर्ष बल्लेबाज़ों के पवेलियन लौटने के बाद भी रन बनाने का सिलसिला जारी रखा.
सरफ़राज़ ख़ान स्कूली क्रिकेट से ही खेल प्रेमियों का ध्यान आकर्षित करते आए हैं. उनकी ज़ोरदार पारियों की चर्चा होती रही है. बचपन से अपने पिता नौशाद के साथ वे मुंबई के हर मैदान पर जाकर घरेलू मैच और अभ्यास का मौका तलाशते रहे. इतना ही नहीं, अपनी से दोगुनी उम्र के गेंदबाज़ों की धुनाई भी करते रहे.
12 साल की उम्र में ही हैरिस शील्ड इंटर स्कूल टूर्नामेंट में सरफ़राज़ ने 439 रनों की पारी खेली थी, मुंबई क्रिकेट में शायद ही कोई होगा जिसे ये पारी याद नहीं हो. इसके बाद अंडर -16 और अंडर-19 क्रिकेट में भी सरफ़राज़ ने ढेरों रन बनाए. उन्हें 2014 में जब अंडर-19 वर्ल्ड कप में खेलने का मौका मिला तो उन्होंने छह मैचों में 70 से ज़्यादा की औसत से 211 रन बनाए थे.
इस बल्लेबाज़ी पर रॉयल चैलेंजर्स बेंगलौर प्रबंधन की नज़र भी गयी और 2015 में टीम ने 50 लाख रुपये में सरफ़राज़ ख़ान को अनुबंधित कर लिया. उस वक्त उनकी उम्र महज 17 साल थी. इन सबसे सरफ़राज़ का मनोबल बढ़ रहा था. 2016 में उन्हें अंडर-19 वर्ल्ड कप में फिर से खेलने का मौका मिला और इस बार छह मैचों में सरफ़राज़ के बल्ले से 355 रन निकले.
यहां तक सरफ़राज़ के करियर में सबकुछ ठीक चल रहा था. वे आईपीएल की टीम में थे, घरेलू क्रिकेट में लगातार रन बना रहे थे ऐसे में लगने लगा था कि भारतीय टीम का दरवाजा बहुत दूर नहीं रह गया है. लेकिन कहते हैं कि समय एक सा नहीं रहता, यही सरफ़राज़ के साथ हुआ.
सरफ़राज़ ख़ान को 2014 में मुंबई की रणजी टीम से डेब्यू करने का मौका मिला था, लेकिन उनकी टीम में जगह पक्की नहीं थी. वे टीम में आ रहे थे और बाहर हो रहे थे. इसे देखते हुए उनके पिता और कोच नौशाद ख़ान ने एक फ़ैसला ले लिया.
चूंकि उनका परिवार उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ से है लिहाजा नौशाद को लगा कि उनके बेटे को उत्तर प्रदेश की ओर से कहीं ज़्यादा मौके मिल सकते हैं और उन्होंने 2015-16 में अपना बेस उत्तर प्रदेश को बना लिया. सरफ़राज़ के लिए ये फ़ैसला बहुत ख़राब साबित हुआ. उन्हें दो सीज़न के दौरान यूपी से भी लगातार खेलने के मौके नहीं मिले.
चोट के चलते उन्हें यूपी की वनडे टीम से भी बाहर किया गया. हलांकि जब उन्हें ड्रॉप किया गया था तब 2016 के अंडर 19 वर्ल्ड कप में उन्होंने ज़ोरदार बल्लेबाज़ी की थी और आईपीएल में आरसीबी के साथ भी बने हुए थे.
इन सबका असर सरफ़राज़ के खेल पर पड़ने लगा था. रॉयल चैलेंजर्स बेंगलौर के तत्कालीन कप्तान विराट कोहली ने भी सरफ़राज़ ख़ान को वजन कम करने को कहा था और टीम ने अनफ़िट होने के चलते उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. इसी दौरान उनकी पीठ और घुटने में तकलीफ उभर आयी.
सरफ़राज़ की बल्लेबाज़ी की सबसे बड़ी ख़ासियत उनकी टाइमिंग है. हालांकि बैट उनके कमर तक आता है लेकिन इसके बावजूद टाइमिंग के चलते उनके पास हर गेंद को खेलने के लिए पर्याप्त समय होता है. हाल के दिनों के मुंबई क्रिकेट से निकले बेहतरीन बल्लेबाज़ सचिन तेंदुलकर और रोहित शर्मा की तरह ही सरफ़राज़ ख़ान को आने वाले दिनों का सितारा माना जा रहा है. वे अपनी बल्लेबाज़ी से लोगों का चौंकाते भी रहे हैं.
रणजी ट्रॉफ़ी फ़ाइनल में उनकी शतकीय पारी ने एक बार फिर से राष्ट्रीय चयनकर्ताओं को झकझोरा होगा और अभी ये किसे मालूम होगा कि नवंबर महीने में बांग्लादेश में दो टेस्ट खेलने के लिए दौरा करने वाली टीम में उनका नाम भी हो और भारतीय टीम से खेलने का उनका सपना सच साबित हो.
सौजन्य : बीबीसी