मणिपुर के घाव पर नमक न छिड़कें
इस देश में हर रोज 80 कत्ल होते हैं, और 85 रेप दर्ज होते हैं, न जाने कितने ज्यादा होते होंगे. हम सब न तो सब के बारे में जान सकते हैं, न बोल सकते हैं.
योगेन्द्र यादव :
‘‘मणिपुर तो सचमुच शर्मनाक घटना है लेकिन हिंसा, हत्या और रेप तो बाकी जगह भी होते हैं, सबके बारे में क्यों नहीं बोलते आप?’’ मैं जानता था बात किस तरफ जाएगी, लेकिन फिर भी टालने की गरज से बोला, ‘‘हर हत्या, हर रेप के बारे में तो हर कोई नहीं बोल सकता. आप भी नहीं बोल सकते. इस देश में हर रोज 80 कत्ल होते हैं, और 85 रेप दर्ज होते हैं, न जाने कितने ज्यादा होते होंगे. हम सब न तो सब के बारे में जान सकते हैं, न बोल सकते हैं, न ही बोलना आवश्यक है. हम कुछ चुनिंदा घटनाओं पर ही बोल सकते हैं.’’ लेकिन वह टाल-मटोल के मूड में नहीं थे, ‘‘हां, चुनना तो पड़ेगा, लेकिन इस चयन का आधार क्या है आपका? आप हर नृशंस घटना पर क्यों नहीं बोलते?’’मैं इस सवाल का बहुत देर से इंतजार कर रहा था, इसलिए तुरंत समझाने बैठ गया, ‘‘देखिए, हर हिंसा, हर हत्या, हर रेप दुखद है, निंदनीय है. हमें किस घटना पर क्या प्रतिक्रिया देनी चाहिए यह चार बातों पर निर्भर करेगा.
पहला, उस घटना से हमारी नजदीकी क्या है? अगर मेरे सामने या मेरे पड़ोस में छेडख़ानी की घटना होती है तो मैं उस पर आंख मूंदकर दूर-दराज में हुई हत्या और रेप की चर्चा नहीं कर सकता, उस घटना पर प्रतिक्रिया देना मेरा पहला धर्म बनता है. दूसरी बात है उस घटना की प्रकृति. जाहिर है कुछ किस्म की हिंसा अपनी नृशंसता के कारण मानवीय संवेदनाओं को ज्यादा छूती है, हमसे प्रतिक्रिया की मांग करती है. दिल्ली में निर्भया कांड या जम्मू में आसिफा कांड कुछ ऐसी ही घटनाएं थीं. तीसरी बात है उस हिंसा का संदर्भ. क्या वह घटना एक व्यापक सिलसिले का उदाहरण है? क्या किसी सामाजिक समूह के विरुद्ध अन्याय और हिंसा के व्यापक चक्र का हिस्सा है? जहां ऐसा होता है वहां हमारी प्रतिक्रिया ज्यादा त्वरित और तीखी होनी चाहिए इसीलिए औरतों पर होने वाली हिंसा या फिर अमरीका में अश्वेत के विरुद्ध हिंसा ज्यादा ध्यान खींचती है. इसी कारण से आए दिन मुसलमानों के खिलाफ लिंचिंग की खबर हर भारतीय से नैतिक प्रतिक्रिया की मांग करती है.
चौथी और सबसे बड़ी बात है उस हिंसा की घटना में पुलिस, प्रशासन, सरकार और सत्ताधारियों की भूमिका क्योंकि ऐसी घटनाओं को रोकना उनकी जिम्मेवारी है इसलिए जाहिर है जब वे अपनी जिम्मेवारी का वहन करने में असफल होते हैं या फिर पीड़ित की बजाय अपराधी के साथ खड़े दिखाई देते हैं तब हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी आवाज बुलंद करें. चाहे वह 1984 में सिखों का कत्लेआम हो या फिर मलयाना में मुसलमानों की सामूहिक हत्या या फिर 2002 में गुजरात में मुसलमानों का कत्लेआम. जहां राजसत्ता अपराधियों के साथ खड़ी हो वहां हिंसा के शिकार के साथ खड़ा होना हर नागरिक का पहला धर्म है.
अपनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए मैंने बात समेटी, ‘‘किसी भी इंसान के लिए यह संभव तो नहीं और मुनासिब भी नहीं कि वह हर ऐसी घटना पर प्रतिक्रिया दे सके. लेकिन मैं कोशिश करता हूं अपनी प्रतिक्रिया के लिए चुनते वक्त इन चार बातों का ध्यान रख सकूं, दोहरे मानदंड न अपनाऊं.’’ इतनी लंबी व्याख्या से वह कुछ ऊबने लगे थे, लेकिन मेरे अंतिम वाक्य को पकड़ कर बोले, ‘‘ मैं कोई दार्शनिक नहीं हूं. साफ सवाल यह है कि आप मणिपुर पर तो बोलते हैं लेकिन बंगाल, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुई हिंसा पर बात क्यों नहीं करते?’’
अब मुझे खुलासा करना पड़ा, ‘‘मैं तो समझ रहा था कि मैं आपके सवाल का जवाब दे चुका हूं, लेकिन अगर आप और स्पष्ट शब्दों में सुनना चाहते हैं तो सुन लीजिए. मणिपुर में हुई ङ्क्षहसा उन चारों कसौटियों पर पूरी तरह से खरी उतरती है जिनका जिक्र मैंने ऊपर किया. पहला मणिपुर हमारे अपने देश का अभिन्न अंग है. वहां चल रही अनवरत हिंसा के बारे में चुप्पी बनाए रखना दरअसल उस मानसिकता का हिस्सा है जिसके चलते पूर्वोत्तर के लोग अलगाव महसूस करते हैं. जो टी.वी. एंकर फ्रांस की घटनाओं को दिखाते हैं लेकिन मणिपुर पर पर्दा डालते हैं वे पाखंडी देश से कोई लगाव नहीं रखते. दूसरा, मणिपुर की घटनाओं की नृशंसता अब तो वीडियो पर सामने आ गई है लेकिन पिछले 2 महीने से उसके दर्जनों सबूत हमारे पास आ चुके थे. तीसरा, वीडियो में दर्ज हुई यह घटना कोई अपवाद नहीं थी, कुछ स्थानीय लोगों की आपसी रंजिश का परिणाम नहीं थी.
स्वयं मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि प्रदेश में ऐसी सैंकड़ों घटनाएं हो चुकी हैं. यहां बहुसंख्यक समाज के लोग अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं पर पूरी बेशर्मी से हिंसा कर रहे हैं. और चौथी दिल दहला देने वाली बात यह है कि इस घटनाक्रम में पुलिस प्रशासन और सत्ता बिल्कुल एकतरफा व्यवहार कर रही है. घटना पुलिस के सामने हुई, लेकिन न तो उसने रोका और न ही इसकी एफ.आई.आर. दर्ज की. एफ.आई.आर. दर्ज होने के बाद कोई कार्रवाई नहीं की. मुख्यमंत्री खुलकर बहुसंख्यक समाज के प्रतिनिधि की भाषा बोल रहे हैं. जहां तक पश्चिम बंगाल का संबंध है वहां से दो घटनाओं के आरोप आए हैं. महिला को निर्वस्त्र करने की एक घटना प्रमाणित है, निंदनीय है, लेकिन उसका किसी सामाजिक समूह या राजनीति से कोई संबंध नहीं दिखता. यूं भी पुलिस ने केस रजिस्टर किया है और कार्रवाई की है.
भाजपा के उम्मीदवार के साथ ऐसे दुव्र्यवहार के दूसरे आरोप के बारे में अभी तक कोई प्रमाण नहीं है. राजस्थान में दलित लड़की से रेप की घटना में जातीय हिंसा का पुट है इसलिए चिंता का विषय है लेकिन यहां के पुलिस प्रशासन द्वारा अपराधी को प्रश्रय देने का सवाल भी नहीं उठा है, दरअसल एक आरोपी के तो भाजपा से जुड़े छात्र संघ से संबंधित होने की बात सामने आई है. रही बात छत्तीसगढ़ की, उसके बारे में तो भाजपा के प्रवक्ता भी कोई हालिया घटना बता नहीं पा रहे हैं. इन राज्यों की मणिपुर से तुलना करना हास्यास्पद ही नहीं बेकार भी है. मणिपुर में अपनी पार्टी और अपनी सरकार की आपराधिक लापरवाही और हिंसा में संलिप्तता पर पर्दा डालने के लिए इन कुतर्कों का इस्तेमाल करते समय यह भूल जाते हैं कि आज जिन तर्कों का इस्तेमाल मणिपुर के लिए हो रहा है कल उनका इस्तेमाल न जाने किस-किस अपराध को ढकने के लिए किया जाएगा. जब देश के कर्णधार देश की बुद्धि भ्रष्ट करने पर तुल जाएं तो उसका अंत कहां होगा, वे खुद नहीं जानते.