देश में सुरक्षा का वातावरण नहीं है आखिर क्यों? सोचना चाहिए

देश में सुरक्षा का वातावरण नहीं है आखिर क्यों? सोचना चाहिए
no security environment in the country

-एल.एस. हरदेनिया

कोलकता में एक महिला डॉक्टर के साथ दुष्कर्म किया गया और उसकी हत्या भी कर दी गई। यह अत्यधिक दुखद घटना है। इसके विरोध में पूरे देश के डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी आक्रोश प्रकट कर रहे हैं। डाॅक्टरों के साथ यह पहली घटना नहीं है। डॉक्टर अब सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम मांग रहे हैं। उनका कहना है कि उनकी सुरक्षा के लिए केन्द्रीय सरकार कानून बनाए। यहाँ यह बताना आवश्यक होगा कि पूरे देश में इस समय असुरक्षा की भावना है। समाज का कोई भी ऐसा वर्ग नहीं जो अपने को असुरक्षित महसूस नहीं कर रहा हो। यहां तक कि वे भी अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं जिन पर दूसरों को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी है। आखिर क्यों? शायद इसलिए कि लोगों में अब कानून का भय खत्म हो गया है। प्रसिद्ध शासकीय अधिकारी श्री एम. एन. बुच (जो अब नहीं हैं) बताते थे कि जब वे बैतूल में कलेक्टर थे किसी विषय को लेकर एकाएक बड़ी भीड़ इकट्ठा हो गई। भीड़ ने आक्रामक रूप ले लिया। जिस स्थान पर भीड़ थी और अपना रोष प्रकट कर रही थी, उस स्थान पर पुलिस का एक ही सिपाही था। उसने भीड़ के लिए एक रेखा खींच दी और और कहा कि जो इस रेखा को पार करेगा उसे सख्त कानून का सामना करना पड़ेगा। उसकी इस चेतावनी का असर हुआ और भीड़ आगे नहीं बढ़ पाई।

लॉ एंड आर्डर अथोरिटी अधिकारियों का ऐसा ही दबदबा हुआ करता था। अब तो आए दिन यह खबरे मिलती हैं कि रेत खनन माफिया ने बड़े अधिकारी पर हमला किया। जब उसने उनके विरूद्ध चोरी कर रेत ले जाने का अपराध कायम किया। अभी तक कई बड़े-बड़े अधिकारी खनन माफिया के शिकार हो चुके हैं।

अनेक कॉलेजों में और स्कूलों में आए दिन शिक्षकों पर हमले होते हैं। कुछ दिन पहले उज्जैन में सरेआम एक शिक्षक की हत्या कर दी गई। अभी हाल में भोपाल के एक कॉलेजों के संचालक पर दिन-दहाड़े हमला कर दिया गया। हमला करने वाले विद्यार्थी परिषद से संबंधित थे। विद्यार्थी परिषद इस समय के सत्ताधारी पार्टी से संबंधित हैं। रेलवे में यदि टीआई टिकट का पूछता है तो उस पर हमला कर दिया जाता है। अतिक्रमण कर अनेक लोग मकान बना लेते हें। जब अधिकारी उनको हटाने जाते हैं तो उन पर हमला कर दिया जाता है। बिजली का बिल नहीं देने पर बिजली बोर्ड के अधिकारी उस क्षेत्र की बिजली काटने जाते हैं तो उन्हें मारकर भगा दिया जाता है। बैंक का कर्ज वसूल करने के लिए यदि टीम जाती है तो उसे मोहल्ले में प्रवेश नहीं दिया जाता है। महिलाओं के साथ आए-दिन दुष्कर्म हो रहे हैं। जब अपराधी को गिरफ्तार करने की कोशिश की जाती है तो इसी तरह की प्रतिक्रिया होती है और प्रभावशाली व्यक्ति उस अपराधी की रक्षा में खड़े हो जाते हैं।

अभी हाल में एक भाजपा के विधायक ने सांसदों को गाली (चूतिया कहा) दी और कहा कि इन्हें संसद से बाहर कर दिया जाये। अभी तक उसके खिलाफ क्या कार्यवाही की गई पता नहीं है। बिहार की राजधानी पटना में विरोधी दल के बड़े नेता इकट्ठा हुए थे। भाजपा ने इस घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि पटना में चोरों का सम्मेलन हो रहा है।

कुल मिलाकर यदि वास्तविक हिंसा नहीं तो एक-दूसरे के बारे में हम हिंसक भाषा का उपयोग कर रहे हैं। इसे कैसे रोका जाए? यदि डॉक्टर के साथ हिंसा जारी रही तो फिर रोगियों का क्या होगा। कोलकता की घटना के पीछे क्या तथ्य हैं यह पता नहीं लगा है। परंतु जो समाज को संचालित करते हैं और जिनका समाज पर दबदबा रहना चाहिए यदि वे ही ऐसी स्थिति में आ जाएं कि वे असामाजिक तत्वों से डरें और अपना कर्तव्य निर्वहन न कर पाएं तो पूरे समाज में अराजकता फैल जाएगी। ब्रिटेन में पुलिस का इतना दबदबा है कि साधारणतः असामाजिक तत्व अपना सिर नहीं उठा पाते हैं। अमरीका में भी असामाजिक तत्वों को भी डर कर रहना पड़ता है। वहां न्याय की प्रक्रिया अत्यधिक दु्रत गति से चलती है। अभी कुछ दिन पहले वहां के एक काले नागरिक को गौरे पुलिस वाले ने मारडाला था। उसका अपराध दु्रत गति से तय हुआ और उसे आवश्यक सज़ा दी गई। हमारे देश में तो बरसों लग जाते हैं एक अपराधी को दंडित करने में। हमारे वर्तमान देश के मुख्य न्यायाधीष श्री चंद्रचूड़ इस संबंध में अनेक बार चिंता प्रकट कर चुके हैं। परंतु फिर भी स्थिति में कोई सुधार नहीं है।

सुरक्षा अकेली डॉक्टरों की नहीं पूरे समाज की आवश्यक है। यह कैसे संभव हो इस पर पूरे देश को विचार करना आवश्यक है। वैसे जहां तक डॉक्टरों की सुरक्षा का सवाल है आम लोगों में डॉक्टरों की प्रतिष्ठा में काफी कमी आई है। आम लोगों का चिंतन है कि डॉक्टर साधारणतः उनसे ज्यादा वसूली करते हैं। इस समय तो जो डॉक्टर अपने को प्रतिष्ठित समझते हैं उनमें से बहुसंख्यक ने अपनी कंसल्टेशन फीस 1000/- रूपए तक कर दी है। फिर कई किस्म की जाँचों को करवाना भी आवश्यक बता देते हैं। इनमें खून की जांच, एक्स-रे और भी अनेक किस्म की जांचे शामिल हैं।

स्वर्गीय बाबूलाल गौर एक किस्सा बताते थे। चुनाव में उनके विरोध में भोपाल के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉक्टर बिसारिया चुनाव लड़ रहे थे। वे मतदाताओं से संपर्क कर रहे थे। जब वे एक वरिष्ठ मतदाता के पास पहुंचे और उनसे वोट देने का अनुरोध किया तो उस मतदाता ने कहा कि मेरा वोट आपको उसी समय मिलेगा जब आप मुझे 200 रूपये देंगे। बिसारिया जी ने उस मतदाता से पूछा कि वोट देने के लिए पैसे की मांग तो मैं पहली बार सुन रहा हूँ। इस पर उस मतदाता ने कहा कि जब मैं आपके पास अपनी बीमारी का इजाल करवाने गया तो आपने पहले 200 रूपए रखवा लिये थे और सिर्फ मेरी नाड़ी देखकर मेरा इलाज बता दिया था। इस पर डॉक्टर बिसारिया को हंसी आना स्वभाविक था। परंतु यह एक उदाहरण है कि आम आदमी डॉक्टरों के बारे में क्या रवैया रखता है। आए दिन अखबारों में इस तरह के लेख छपते हैं कि जितने लोग डॉक्टरों के इलाज से ठीक होते हैं उतने ही लोग डाॅक्टरों द्वारा गलत प्रिस्क्रिप्शन बताने से मरते हैं। फिर दवाईयों की कीमतों में अनापशनाप पैसा वसूल होता है। कुल मिलाकर आम आदमी के लिए इलाज उसकी पहुंच से बाहर हो गया है। यहां पर मैं दो अद्भुत उदाहरण देना चाहूंगा।

इंदौर में एक जाने-माने डाॅक्टर थे। वे अपनी परामर्श फीस के रूप में सिर्फ 16 रूपए लेते थे। उनका ज्ञान भी अद्भुत था। भारी संख्या में लोग उनके पास इलाज के लिए जाते थे। एक मौका ऐसा आया जब इंदौर के अनेक डाॅक्टरों ने उनसे अनुरोध किया कि वे अपनी परामर्श फीस बढ़ा दें परंतु वे अपनी फीस पर कायम रहे। इसी तरह इंदौर के कम्युनिस्ट नेता होमीदाजी थे उनकी बेटी थी रोशनी। वह मोस्को से मेडिकल शिक्षा लेकर आई थी। उसने अपना क्लीनिक इंदौर की एक गरीब बस्ती में खोला और परामर्श शुल्क के रूप में वह सिर्फ 5 रूपए लेती थी। दुर्भाग्य से कुछ दिनों में उसकी कैंसर की बीमारी से मृत्यु हो गई। कुल मिलाकर यदि डॉक्टर आम जनता का ख्याल रखें तो जनता ही उनकी रक्षा करेगी। भोपाल में आँख के एक बड़े डॉक्टर थे संतोष सिंह। उनका कोई रोगी निरोग होकर अपने गाँव जाना चाहता था तो वे उससे पूछते थे कि जाने के लिए तेरे पास किराया है? यदि वह कहता था कि नही ं तो प्रायः वे अपनी पॉकेट से उसको पैसे दे देते थे। दवाईयां तो वह प्रायः मुफ्त दिया करते थे। इन सारे तथ्यों के बावजूद डॉक्टरों को सुरक्षा की आवश्यकता है और शासन को उसे उपलब्ध करवाना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ उपाय सुझाए हैं। आशा है कि इन पर अमल होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने टॉस्क फोर्स बनाई है जो डॉक्टरों को किस प्रकार की सुरक्षा दी जाए इसकी सिफारिश करे। इस समय जनप्रतिनिधियों चाहे सांसद हो, चाहे विधायक हो शासन के द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है, और भी महत्वपूर्ण व्यक्तियों को सुरक्षा दी जाती है। सुरक्षा में कभी-कभी एक दर्जन सुरक्षाकर्मी भी लगाए जाते हैं। कभी-कभी इनकी संख्या आवश्यकता से भी ज्यादा होती है। इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि क्या सभी सांसदों और विधायकों को इतनी सुरक्षा की आवश्यकता है? कुल मिलाकर सुरक्षा एक महत्वपूर्ण विषय है जिसपर अधोपांत विचार होना चाहिए।