संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध ब्यूरोक्रेट थे श्री एम एन बुच
- एल. एस. हरदेनिया :
बहुरंगी व्यक्तित्व के धनी श्री महेश नीलकंठ बुच का जन्मदिन कैसे मनाया जाए इस बात पर गहन विचार करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि जयंती मनाने का सर्वाधिक अच्छा तरीका उनकी आत्मकथा को पढ़ना है। वैसे मैं सरसरी तौर पर पूर्व में उनकी आत्मकथा पढ़ चुका हूं। परंतु उसे फिर से पढ़ने का अलग आनंद है।
वैसे तो बुच साहब ब्यूरोक्रेट थे परंतु इसके साथ ही वे अनेक मानवीय मूल्यों के धनी थे। ब्यूरोक्रेट होते हुए भी वे कितने लोकप्रिय थे इस बात का अंदाज चुनाव में उन्हें प्राप्त मतों के आधार पर लगाया जा सकता है। उन्होंने सन् 1984 में मध्यप्रदेश की बैतूल लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था। इस लोकसभा सीट की 6 विधानसभा सीटें बैतूल जिले में थीं और 2 होशंगाबाद जिले में (उस समय हरदा अलग जिला नहीं बना था)। वे बैतूल की 6 सीटों पर जीत गए परंतु होशंगाबाद की दो सीटों पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव के लगभग 20 साल पहले वे बैतूल जिले के कलेक्टर रहे थे। वहां कलेक्टर रहते हुए उन्होंने जो जन हितैषी काम किए थे उन्हें वहां की जनता तब तक भूली नहीं थी। लोगों को उनके कार्य इस हद तक याद थे कि एक स्थान पर लोग उन्हें देवता मानने लगे थे।
बुच साहब वैसे तो आईएएस अधिकारी थे परंतु उनकी कार्यप्रणाली जैसी थी उसके चलते उन्हें जन ब्यूरोक्रेट कहा जा सकता है। उन्हें यस मिनिस्टर और नो मिनिस्टर दोनों एक साथ कहा जा सकता है। यस मिनिस्टर से अर्थ यह है कि उन्हें राजनीतिक बास जो आदेश देता था यदि वह नियमानुसार होता था तो उसे वे जी जान लगाकर निर्धारित समय सीमा में पूरा कर देते थे। ऐसा ही एक कार्य उन्होंने बैतूल जिले में बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) से आए शरणार्थियों को बसाने का किया था। उस दौरान पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र मुख्यमंत्री थे और श्री नरोन्हा मुख्य सचिव थे। दोनों ने इन शरणार्थियों को बसाने की जिम्मेदारी बुच को सौंपी थी। बुच ने न सिर्फ इन शरणार्थियों को समय सीमा में बसाया और इतना अच्छा बसाया कि श्री नरोन्हा ने बुच की भूरि-भूरि तारीफ की। जब 25 हजार शरणार्थियों को बसाने का काम पूरा हो गया उसके बाद बुच नरोन्हा के पास गए और उनसे कहा कि मैंने जो कुछ किया उसकी मंजूरी चाहिए। नरोन्हा ने बुच से कहा कि मैं जानता हूं कि तुम ने समय पर काम करने के लिए अनेक नियम तोड़े होंगे। जाओ और तुम ने जितने ‘पाप’ किए होंगे उनकी सूची बनाकर दे दो। मैं सब मंजूर कर दूंगा। इस पर बुच ने कहा कि समय पर काम करने के लिए मैने जितने नियम तोड़े उन्हें लिखने के लिए अनेक रीम कागज की जरूरत पड़ेगी। इस पर नरोन्हा ने कहा कि लिखकर ले आओ। उन्होंने एक शीट कागज पर कुछ मुख्य पाईंट लिखे और नरोन्हा जी को दे दिए। इस पर नरोन्हा ने उसी कागज पर लिखा “D.C. Betul has carried out my orders. CM may approve” डी. पी. मिश्रा ने उसी कागज पर लिख “Approved” और फाईल वापिस कर दी। यह बुच साहब का यस मिनिस्टर का चमकदार सकारात्मक उदाहरण था।
उन्होंने अपने कैरियर में अनेक बार अपने मंत्रियों को न भी कहा था। ऐसा ही उनका एक उदाहरण है जब उन्हें एक मंत्री से ‘न’ कहने पर लगभग एक वर्ष तक छुट्टी पर रहना पड़ा। परंतु इसके बावजूद वे मंत्री के सामने झुके नहीं।
बुच साहब अपनी आत्मकथा में ऐसे अधिकारियों की सूची देते हैं जो उनकी नजर में ईमानदार थे और हर हालत में नियमों का पालन करते थे। उन्होंने इस चैप्टर का नाम चार्ज बियरर रखा था। इस सूची में सबसे पहले वे के. के. चक्रवर्ती और वाई. एन. चतुर्वेदी का नाम रखते हैं। आपताकाल लागू होते ही इन दोनों अधिकारियों को उन लोगों की सूची दी गई थी जिन्हें गिरफ्तार करना था। परंतु इन्होंने इस सूची में शामिल अनेक लोगों को गिरफ्तार करने से इंकार कर दिया क्योंकि उनकी नजरों में इन लोगों का कोई अपराध नहीं बनता था। आपातकाल के दौरान ऐसा रवैया अपनाना बहुत ही साहस का काम था। इसी तरह के अधिकारियों की सूची में उन्होंने जी. सी. श्रीवास्तव, ललित जोशी, नीरू नंदा, रमेश नारायण स्वामी, आर. एस. खन्ना समेत अनेक नामों को शामिल किया है।
उनकी आत्मकथा के एक चैप्टर का शीर्षक है “Scoundrels” (पृष्ठ 196)। इस चैप्टर में उन्होंने कुछ ऐसे अधिकारियों के नाम रखे हैं जिनके शब्दकोष में ‘नो‘ शब्द है ही नहीं। इस चैप्टर में बुच ने जिन अधिकारियों के नाम शामिल किए हैं मैं उनका जिक्र नहीं करना चाहूँगा क्योंकि उनमें से अनेक जीवित नहीं हैं। परंतु इस संदर्भ में मैं एक घटना का उल्लेख जरूर करना चाहूंगा। इसका संबंध कर्नल अजय नारायण मुश्रान से है। मुश्रान ने एक फाईल पर लिखा “G. P. Dube has been in a ‘dry’ position for the past seven years. I have promised a wet position and therefore he is posted as D.F.O. East Raipur ”। जब यह फाईल बुच साहब के पास पहुंची (वे उस समय वन विभाग के प्रमुख सचिव थे) तब यह नोट पढ़कर उन्होंने मुश्रान से पूछा कि फाईल पर ऐसा नोट लिखकर क्या वे स्वयं भ्रष्टाचार नहीं कर रहे हैं या भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन नहीं दे रहे हैं। क्या इस तरह की भाषा में एक ट्रांसफर आर्डर दिया जाता है। बुच ने इस तरह का आर्डर जारी तो नहीं किया परंतु उन्होंने उसकी कापी अपने पास रख ली।
बुच साहब अपनी किताब में अंग्रेजों के जमाने की एक घटना का उल्लेख करते हैं। उस समय बुलढ़ाना में एक अंग्रेज पुलिस कप्तान था। उसके यहां एक भारतीय नौकर था। किसी कारण से कप्तान उस नौकर से नाराज हो गया और गुस्से में उसने नौकर को एक मुक्का मार दिया। नौकर को मुक्का इतनी जोर से लगा कि उसकी तिल्ली फट गई और उसकी मृत्यु हो गई। कप्तान साहब ने संबंधित पुलिस थाने के इंचार्ज को बुलाया और एक्टीडेंटल मृत्यु रजिस्टर करने के लिए कहा। थानेदार आए और ड्राईंग रूम के सोफे पर बैठ गए। यह कप्तान साहब को अच्छा नहीं लगा। थानेदार साहब ने कहा कि वे एक जांच के लिए आए हैं। आपके यहां एक व्यक्ति की मौत हो गई है। इस पर कप्तान साहब ने कहा ‘‘तुम्हारी इतनी हिम्मत। क्या तुम्हारा मतलब यह है कि मैं अपराधी हूं।‘‘ थानेदार ने कहा ‘‘षायद‘‘। पूरी जांच के बाद कप्तान साहब अपराधी पाए गए। कप्तान को गवर्नर ने बुलाया और उससे इस्तीफे पर हस्ताक्षर कराए। इसके बाद उसे लंदन भेज दिया गया।
अभी कुछ दिन पहले ऐसी ही एक घटना लखनऊ में हुई थी। इस घटना में भी एक पुलिस कप्तान ने अपने अर्दली को मार दिया था। उसे गंभीर चोटें आईं परंतु इस घटना में अर्दली के ही खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।
बुच साहब की किताब के एक चैप्टर का शीर्षक है “I am more secular than you” (मैं तुमसे ज्यादा सेक्युलर हूं)। इसमें वे उन घटनाओं का उल्लेख करते हैं जो समय रहते नहीं दबाई जातीं तो अत्यधिक गंभीर रूप ले लेतीं। ऐसी एक घटना का संबंध एक मौलाना से था। ये मौलाना बीच सड़क पर एक मजार बनाना चाहते थे। जब इस बात की खबर बुच साहब को लगी (वे उस समय उज्जैन के कलेक्टर थे) तो उन्होंने दिन दहाड़े उसे बीच सड़क से हटवाया और मौलाना को गिरफ्तार करवाया। मजार हटवाने और मौलाना को गिरफ्तार करने का काम उन्होंने भीड़ की मौजूदगी में सबके सामने करवाया।
मौलाना की गिरफ्तारी की खबर तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री फखरूद्दीन अली अहमद तक पहुंची। उन्होंने बुच को फोन किया और उनसे मौलाना को लगभग रिहा कर देने को कहा। बुच ने उनसे कहा कि मौलाना मेरी कस्टडी में है और जब मैं उचित समझूंगा तब उसे रिहा करूंगा। बुच ने यह बात तत्कालीन मुख्यमंत्री डी. पी. मिश्रा को भी बता दी। उन्होंने बुच साहब के रवैये का पूरी तरह समर्थन किया।
उज्जैन की मजार संबंधी घटना से पाटनी बाजार में स्थित एक मंदिर के पुजारी ने यह समझा कि मैं हिन्दुओं की ओर झुकने वाला कलेक्टर हूं। पुजारी ने मंदिर की सीमा बढ़ा ली। ऐसा होने से व्यस्त सड़क का कुछ हिस्सा अवरूद्ध हो गया। सड़क के इस हिस्से पर उसने कुछ मूर्तियों की स्थापना कर दी। जब मुझे इस बात का पता लगा तो मैंने जूते पहने हुए मंदिर में प्रवेश किया, उन मूर्तियों को जूते से ही ठोकर मारी और उन्हें वहां से हटवाकर पुजारी को गिरफ्तार किया। ऐसा करके मैं उज्जैन वासियों को यह बताना चाहता था कि मेरी (कानून की) नजरों में कानून तोड़ने वाला हर व्यक्ति अपराधी है फिर चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान।
बुच साहब लिखते हैं कि ‘‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा” इकबाल ने लिखा। “Abide with me” गांधीजी की सबसे पसंदीदा कविता थी। इसे हमारी फौजी परेडों में बजाया जाता था। दुर्भाग्य से अभी हाल में “Abide with me” परेड से हटा दिया गया।
बुच ने अपनी किताब में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखा अपना एक पत्र भी संकलित किया है। इस पत्र में वे मोदी से उन सभी मस्जिदों-मजारों का पुननिर्माण करने का अनुरोध करते हैं जो सन् 2002 के दंगों के दौरान ध्वस्त कर दिए गए थे। ‘‘मेरा पत्र पाकर मोदी ने मेरे भतीजे, सुधीर मनकड़, जो उस समय गुजरात के मुख्य सचिव थे, से कहा कि बुच मुझसे जो चाहे मांग सकते हैं परंतु मैं उनकी इस बात को मानने को तैयार नहीं कि ध्वस्त मस्जिद-मजारें मैं फिर से बनवाऊं।
बुच का व्यक्तित्व जितना अद्भुत था उतना ही उनका परिवार भी अद्भुत है। एक ही परिवार में तीनों भाई आईएएस हों ऐसा बहुत कम होता है। उससे भी ज्यादा असाधारण बात यह है कि उनकी मां ने अपने तीनों बेटों को अपने ही दम पर आईएएस बनाया। बुच के पिता आईसीएस थे। परंतु उनकी मृत्यु 45 वर्ष की आयु में हो गई थी। उसके बाद सभी बच्चों के लालन-पालन का उत्तरदायित्व बुच साहब की मां पर आ गया।
परिवार में आईएएस अधिकारियों की संख्या चार हो गई जब निर्मला यादव बुच परिवार की बहू बनीं। श्रीमती निर्मला बुच को मध्यप्रदेश की प्रथम (और अब तक की एकमात्र) महिला मुख्य सचिव होने का गौरव हासिल है।
आईएएस में चयन होने के बाद बुच की नियुक्ति मध्यप्रदेश में हुई। इस प्रदेश से उन्हें अद्भुत प्यार था। वे लिखते हैं “Undoubtedly the state qualifies as the most beautiful in this country. Anyone who has stood on top of the Kesal Ghat and taken a 360 degree view of the canopy of jungle all around would lose his heart to M. P. in that very instant, When Prince Philip visited Kana in 1983 he drove through a hundred miles of unbroken forest and said that he had never seen such a sight before in his life. This state has welcomed all of us into its generous heart”
इसी तरह वे इस देश के भी आभारी हैं। वे लिखते हैं “Being born in India, whose wonders are so beautifully described by Mark Twain I, too, have experienced the dreams, the promises and the romance of this country and had glimpses of its people which have left me awestruck at what this country and its people have to offer”.
उनकी किताब लोकतांत्रिक भारत के नागरिक के लिए गीता, कुरान, बाईबिल एवं गुरू ग्रंथ साहब एक साथ है। विशेषकर उनके लिए जो इस देश के शासन-प्रशासन का संचालन करते हैं।
उनकी किताब के सबसे छोटे चैप्टर का शीर्षक है “Foes” यानि दुश्मन। इस चैप्टर में वे वाल्टेयर को कोट करते हैं “My prayer to God Is a very short one. ‘Oh Lord, make my enemies ridiculous. God has granted it”.