उत्तराखण्ड बेरोज़गार आंदोलन की मांगों का NAPM समर्थन करती है.

एक तरफ, देश का ध्यान अडानी खुलासे पर टिका हुआ है, वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड के पहाड़ी राज्य में महा-घोटाला सामने आया है: पेपर लीक भ्रष्टाचार कांड या कुख़्यात ‘नकल माफिया. यह कड़ी निंदा की बात है कि पुष्कर सिंह धामी सरकार ने आक्रोशित युवाओं से बातचीत करने और उनकी जायज़ मांगों पर ध्यान देने के बजाय, कई राउंड लाठीचार्ज का आदेश दिया,

उत्तराखण्ड बेरोज़गार आंदोलन की मांगों का NAPM समर्थन करती है.
Uttarakhand unemployed movement

BJP सरकार के दमन व बेरोज़गारी की मार झेल रहे युवाओं की समस्याएँ का समाधान न करना निंदनीय.

सभी पेपर लीक घोटालों पर न्यायिक निगरानी में CBI जांच हो.</ h2>

सभी गिरफ़्तार युवाओं को तुरंत रिहा करो.

13 फरवरी, 2023: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम), उत्तराखंड के बेरोज़गार युवाओं पर भा.ज.पा सरकार के दमन की कड़ी निंदा करती है, जिन्होंने पिछले हफ्ते सड़कों पर उतरकर पेपर लीक घोटाले का पर्दाफाश किया और एक निष्पक्ष भर्ती तंत्र और रोजगार की मांग उठाई. हम मांग करते हैं कि सभी गिरफ्तार किये गए युवाओं को तुरंत रिहा किया जाए और सभी पेपर-लीक घोटालों की न्यायिक निगरानी में सी.बी.आई जांच शुरू की जाए.

जबकि एक तरफ, देश का ध्यान अडानी खुलासे पर टिका हुआ है, वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड के पहाड़ी राज्य में महा-घोटाला सामने आया है: पेपर लीक भ्रष्टाचार कांड या कुख़्यात ‘नकल माफिया. यह कड़ी निंदा की बात है कि पुष्कर सिंह धामी सरकार ने आक्रोशित युवाओं से बातचीत करने और उनकी जायज़ मांगों पर ध्यान देने के बजाय, कई राउंड लाठीचार्ज का आदेश दिया, जिसमें कुछ युवक गंभीर रूप से घायल हो गए. इसके अतिरिक्त, बॉबी पंवार, राम कंडवाल, संदीप सिंह, मुकेश सिंह, अनिल कुमार, अमन चौहान, शुभम सिंह नेगी, लुसून तोराडिया, हरिओम, मोहन कैंथोला, रमेश तोमर, नितिन दत्त, अमित पंवार सहित उत्तराखंड बेरोजगार संघ के 13 प्रमुख सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया है और उन पर कई तरह के मनमाने आरोप लगाए गए हैं. खबर है कि कई अन्य युवाओं के ख़िलाफ़ भी मामले दर्ज किए गए हैं जो पिछले कुछ दिनों में शांतिपूर्ण आंदोलन का हिस्सा थे.

उत्तराखंड में परीक्षा घोटालों का इतिहास कम से कम 2016 तक जाता है, और पिछले कुछ वर्षों में कई पेपर लीक हुए हैं; ग्राम पंचायत विकास अधिकारी, यू.के.पी.सी.एस, यू.केएस.एस.एस.सी, एई/जेई और अन्य परीक्षाओं इसमें शामिल हैं. इनमें से कुछ में, पेपर लीक के लिए सत्तारूढ़ भा.ज.पा के कुछ करीबी लोगों और कुछ अधिकारियों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए हैं. संजय धारीवाल, हाकम सिंह, चंदन मनराल, संजीव चतुर्वेदी आदि जैसे लोगों की मिलीभगत खुलकर सामने आ गई है और जनता के भारी दबाव के कारण, इन कथित घोटालेबाजों में से कुछ के खिलाफ एक हद तक कार्रवाई हो पायी. हालांकि, जिस तरह की दमनकारी तरीका राज्य सरकार ने अपनाया है, उससे यह स्पष्ट है कि वह न केवल दोषियों के ख़िलाफ़ प्रभावी कार्रवाई करने में जानबूझकर विफल रही है, बल्कि पेपर लीक के लिए ज़िम्मेदार लोगों को किसी भी क़ीमत पर बचाना चाहती है.

अपनी साख़ बचाने के लिए, मुख्यमंत्री ने राज्यपाल की सहमति के साथ, उत्तराखंड प्रतियोगी परीक्षा (भर्ती में अनुचित प्रयासों की रोकथाम के लिए उपाय) अध्यादेश, 2023 नामक एक अध्यादेश जारी किया है, जिसे युवा ‘लफ़्फ़ाज़ी’ कह रहे हैं, और सी.बी.आई जांच द्वारा उल्लंघनकर्ताओं के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई पर की मांग पर अडिग हैं. 12 फरवरी को पटवारी और लेखपाल की परीक्षा जल्दबाजी में आयोजित करने के खिलाफ भी व्यापक आक्रोश है, जबकि परीक्षा विभाग से संबंधित प्रमुख अधिकारी (श्री चतुर्वेदी) को पेपर लीक घोटाले का हिस्सा होने के कारण निलंबित कर दिया गया है.

जैसा कि हम सभी जानते हैं, उत्तराखंड अभी भी हाल की जोशीमठ आपदा से जूझ रहा है, जो विकास-प्रेरित हादसों की श्रृंखला में एक और चेतावनी है. जबकि प्रभावित लोग उचित सहायता और पुनर्वास के लिए संघर्ष कर रहे हैं, अंधाधुंध 'विकास' और इसके प्रभावों को चुनौती देने वाले लोगों को तरह-तरह के नाम दिए जा रहे हैं और उन्हें ‘देश-द्रोही’ भी कहा जा रहा है. यह अब भा.जपा सरकार की एक जानी-मानी प्रवृत्ति बन गई है कि उसकी जनविरोधी नीतियों और अपराधों को चुनौती देने वालों को 'देशद्रोही' करार दिया जाए.

भारत एक गंभीर बेरोज़गारी संकट से गुजर रहा है, और विशेष रूप से भा.ज.पा सरकार लाखों युवाओं की इन चिंताओं को दूर करने में बुरी तरह से विफल रही है. वह केवल जुमले, प्रतिरोध करने वालों को भद्दे नाम से पुकारना, फर्जी प्रकरण, गिरफ्तारी और हिंसा का सहारा लेती आ रही है. हम यह देख रहे हैं कि उत्तराखंड के जिलों में युवाओं में अशांति तेज़ हो रही है और अगर राज्य ने उनकी चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया तो देहरादून और दिल्ली की ओर आंदोलित होने की योजना प्रस्तावित है. हमारी सुविचारित राय है कि सरकार को सख़्ती से पेश आने के बजाय, युवाओं को आश्वस्त करने के लिए तत्काल सार्थक कदम उठाना चाहिए.

हम उत्तराखंड के संघर्षरत युवाओं के साथ अपनी पूरी एकजुटता प्रकट करते हैं और मांग करते हैं कि:

  • उत्तराखंड सरकार दमन की इस होड़ को समाप्त करे और युवाओं की जायज़ मांगों पर तत्काल और सकारात्मक संवाद करे.
  • गिरफ्तार किए गए सभी 13 युवकों को तुरंत रिहा किया जाए और उनके तथा अन्य के खिलाफ लगाए गए आरोप तत्काल हटाए जाएं.
  • 2016 के बाद से राज्य में सभी पेपर लीक घोटालों की उच्च स्तरीय न्यायिक निगरानी और समयबद्ध सी.बी.आई जांच स्थापित की जाए और सभी उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए.
  • उन अधिकारियों और पुलिस कर्मियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए जिन्होंने क्रूर लाठीचार्ज का आदेश दिया और उसे अंजाम देते हुए कई छात्रों को घायल किया.

एन.ए.पी.एम उन हजारों युवाओं को सलाम करता है जो इन घोटालों का पर्दाफाश करने के लिए सड़कों पर उतरे हैं और दमन के बावजूद, शांतिपूर्ण आंदोलन के माध्यम से राज्य के भ्रष्टाचार, क्रूरता और सत्ता को चुनौती देना जारी रखे हुए हैं.

भारत और उत्तराखंड के युवाओं को रोज़गार का अधिकार है. इसी तरह, उन्हें भ्रष्टाचार और कदाचार से मुक्त एक निष्पक्ष परीक्षा और भर्ती प्रणाली का भी अधिकार है.

हम उत्तराखंड बेरोजगार संघ और राज्य के युवाओं से अपील करते हैं कि वे अपना संघर्ष दृढ़ता और शांतिपूर्ण तरीके से जारी रखें. भारत के लोकतांत्रिक आंदोलन आपके साथ हैं.

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) द्वारा जारी