कम उम्र में विवाह कहाँ तक सही…
To what extent is marriage right at a young age?
-लेखक: राम पुनियानी-
हरियाणा में हाल में बलात्कार की घटनाओं की श्रृंखला ने इस गंभीर और क्रूर अपराध के कारणों पर एक बहस की शुरूआत कर दी है. इन घटनाओं को कैसे रोका जा सकता है, इस बारे में भी अलग-अलग राय व्यक्त की जा रही हैं. प्रगतिशील दृष्टिकोण वाले तबके का मानना है कि बलात्कार के पीछे लैंगिक असमानताएं हैं और इन्हें रोकने के लिए महिलाओं का सशक्तिकरण और कुछ कानूनी उपाय किए जाना आवश्यक है. दूसरी ओर, इस बारे में दकियानूसी वर्ग की सोच भी दिलचस्प है.
कुख्यात खाप पंचायतों का कहना है कि चूंकि आजकल लड़कियां 11 वर्ष की आयु में ही युवा हो जाती हैं इसलिए उनके विवाह की न्यूनतम आयु घटाकर 15 वर्ष कर दी जानी चाहिए. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चैटाला ने इस मांग का समर्थन करते हुए कहा कि ‘‘पूर्व में व विशेषकर मुगल काल में, माता-पिता अपनी लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दिया करते थे ताकि उन पर इस तरह के अनाचार न हो सकें.’’ अफसोस कि इन वरिष्ठ नेताजी के शानदार सुझाव में कई छेद हैं. पहली बात तो यह है कि अगर विवाह से बलात्कार रूकते होते तो इतनी बड़ी संख्या में विवाहित महिलाएं बलात्कार का शिकार क्यों होतीं? क्या यह सही है कि मुगलकाल में हिन्दू महिलाओं को मुगलों के क्रूर पंजों से बचाने के लिए उनका कम उम्र में विवाह कर दिया जाता था? यह मान्यता समाज के एक वर्ग में गहरे तक बैठी हुई है.
परंतु क्या कोई यह दावे के साथ कह सकता है कि महिलाओं के साथ बलात्कार या अत्याचार केवल मुगल साम्राज्य में या मुस्लिम राजाओं द्वारा किए जाते थे? क्या अन्य धर्मों के राजा-महाराजा सभी पराई स्त्रियों को केवल बहिन मानते थे? विजयी सेनाओं द्वारा विजित राज्य में लूटमार करना और वहां की महिलाओं के साथ बलात्कार करना सामंती युग में आम था और यह प्रवृत्ति किसी धर्म विशेष के राजाओं या सेना तक सीमित नहीं थी. केवल मुस्लिम शासकों और सामंतों को इसके लिए दोषी ठहराना, इतिहास के साम्प्रदायिकीकरण का हिस्सा है, जो कि हमारे अंगे्रज शासकों ने ‘फूट डालो और राज करो‘ की अपनी नीति के तहत किया था.
इस सिलसिले में यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि मुगल सेनाओं में सिर्फ मुसलमान नहीं होते थे. उनमें हिन्दुओं की भी बड़ी संख्या होती थी. जैसे, राजा मानसिंह, अकबर की सेना के सेनापति थे और औरंगजेब की सेना की कमान मिर्जा राजा जयसिंह के हाथों में थी. इसके बावजूद, औरंगजेब और अकबर की सेनाओं ने वही सब किया जो दुनिया की सारी सेनाएं करती हैं अर्थात निर्दोषों को मारना, लूटना और महिलाओं के साथ बलात्कार. यह सिलसिला आज भी कश्मीर, उत्तरपूर्व और देश के कई अन्य इलाकों में जारी है.
स्पष्टतः बलात्कार का धर्म से कोई वास्ता नहीं है. उल्टे, धर्म तो बाल विवाह और सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं का जनक है. 19वीं सदी में जब सुधारवादियों ने लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु में बढोत्तरी की मांग उठाई तब परंपरावादी और दकियानूसी तबके ने इसके विरोध में यह कहा कि लड़कियों को अपने पहले मासिक धर्म के समय अपने पतियों के पास ही होना चाहिए क्योंकि यह धार्मिक दृष्टि से आवश्यक है.
परंपरावादी मुसलमान भी लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु घटाने की मांग करते रहते हैं. यह तथ्य, कि दोनों समुदायों के एक तबके के, विवाह जैसे महत्वपूर्ण विषय पर महिलाओं के स्व-निर्णय के अधिकार के बारे में एक से विचार हैं, साबित करता है कि इस मुद्दे का धर्म से कोई संबंध नहीं है. असल में दकियानूसी वर्ग नहीं चाहता कि महिलाओं का उनके स्वयं के जीवन पर नियंत्रण हो क्योंकि इससे पितृसत्तात्मकता कमजोर होती है. कम उम्र में शादी होने से लड़कियां अपने पतियों और ससुरालवालों की गुलाम बनने पर मजबूर हो जाती हैं.
कम उम्र में मां बनने और घरेलू जिम्मेदारियों के बोझ तले दबने से उन्हें जो कष्ट भोगने पड़ते हैं, वे अलग हैं. कम उम्र में विवाह और गर्भधारण से बच्चे और मां दोनों के जीवन को खतरा होता है, ऐसी चिकित्सकीय राय है. इसलिए असल में यह संघर्ष सामंतवादी नियम समाज पर थोपने के इच्छुक लोगों और उनके बीच है जो पितृसत्तात्मक नियंत्रण से समाज को मुक्त करना चाहते हैं.
महिलाओं का शिक्षण, रोजगार और सशक्तिकरण, सामाजिक सुधार की आवश्यक शर्त है. स्वनियुक्त कानून निर्माताओं के आदेशों को गंभीरता से लेने की कतई आवश्यकता नहीं है. जहां तक हरियाणा का प्रश्न है, वहां खाप पंचायतों का बिस्तर गोल कर ऐसी पंचायतों का सशक्तिकरण करना जरूरी है जिनमें महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत स्थान आरक्षित हों. पंचायतों के जरिए जमीनी स्तर पर प्रजातंत्र को मजबूत करने से ही हम न्यायपूर्ण और लैंगिक समानता वाले समाज का निर्माण कर सकेंगे.
प्रस्तुतिः एल.एस. हरदेनिया