मौलाना सैयद अबुल अला मौदुदी की किताबों को एएमयू के पाठ्यक्रमों से हटाने का फैसला क्या उचित है?
मौलाना सैयद अबुल अला मौदुदी का जन्म 1903 में हैदराबाद रियासत में हुआ और उनकी मृत्यु 1979 में एक बीमारी से हुई. मौदुदी के पिता अहमद हसन नहीं चाहते थे कि उनका बेटा पश्चिमी शिक्षा सीखे.
-मोईन अहमद खान:
यह बात पिछले साल की है जब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) प्रशासन ने इस्लामिक अध्ययन विभाग के पाठ्यक्रम से प्रसिद्ध विद्वान लेखक मौलाना अबुल अला मौदुदी और मिस्र के विद्वान सैयद कुतुब की पुस्तकों को हटाने का फैसला किया था. मौलाना सैयद अबुल अला मौदुदी का जन्म 1903 में हैदराबाद रियासत में हुआ और उनकी मृत्यु 1979 में एक बीमारी से हुई. मौदुदी के पिता अहमद हसन नहीं चाहते थे कि उनका बेटा पश्चिमी शिक्षा सीखे.
माना जा रहा है कि यह एएमयू ने यह फैसला 20 से अधिक शिक्षाविदों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए पत्र के बाद लिया गया. इस्लामी उपदेशक और जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक मौदुदी की किताबों का बहिष्कार लगता है सिर्फ इस्लाम की शिक्षा है. शिक्षाविदों ने यह भी दावा किया कि हिंदू समाज, संस्कृति और सभ्यता पर हो रहे हमलों का कारण भी बताया.
आज एक साल भी सरकार के इस फैसले को पूरी दुनिया के मुस्लिम जगत में पूरजोर विरोध हो रहा है. मौलाना मौदुदी की किताबों को पूरी दुनिया में इस्लामिक स्टडिज के कोर्स में पढ़ाया जाता है. एएमयू में इस्लामिक अध्ययन पाठ्यक्रम में मौलाना मौदुदी की किताबों को बीए और एमए कक्षाओं में पढ़ाई जाती थीं.
मौलाना मौदुदी 1919 में पाकिस्तान से दिल्ली चले आये और सैयद अहमद खान के कार्यों का अध्ययन किया और यहीं प्रमुख यूरोपीय विचारकों और लेखकों द्वारा दर्शन, समाजशास्त्र, इतिहास और राजनीति के प्रमुख कार्यों का अध्ययन भी किया.
उन्होंने उर्दू अखबारों के लिए कॉलम लिखना भी शुरू किया. वे अपने लेखों में हेगेल, एडम स्मिथ, रूसो और वोल्टेयर, चार्ल्स डार्विन आदि को उद्धृत करते पाये गये.
अपने स्तंभों के माध्यम से, उन्होंने (मुसलमानों के लिए) पश्चिमी राजनीतिक विचार और दर्शन का अध्ययन करने और समझने की आवश्यकता पर जोर देकर एक कथा को आकार देना शुरू किया.
25 साल की उम्र में मौदुदी भारत में अब्दुल सत्तार खैरी जैसे मार्क्सवादी बुद्धिजीवियों की ओर आकर्षित हुए. मौलान ने महात्मा गांधी के राजनीतिक और आध्यात्मिक नेतृत्व की भी प्रशंसा की. उन्होंने कथित तौर पर गांधी और एक अन्य कांग्रेस विचारक पंडित मालवीय की जीवनियां भी लिखीं. सन 1937 में मौलाना ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रवाद का विरोध किया और 1940 के शुरुआत में जिन्ना की अखिल भारतीय मुस्लिम लीग और मुस्लिम राष्ट्रवाद के भी आलोचक थे.
26 अगस्त 1941 को जमात-ए-इस्लामी की स्थापना अविभाजित भारत में मौलाना सैयद अबुल अला मौदुदी के नेतृत्व में लाहौर में हुई थी. भारत की आजादी के बाद, जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) की स्थापना आधिकारिक तौर पर 16 अप्रैल 1948 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में एक बैठक में की गई थी, जिसके अपने मौलिक सिद्धांतों और एक अलग नेतृत्व और संरचना थी.
2019 में भारत सरकार ने राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का हवाला देते हुए जमात-ए-इस्लामी कश्मीर पर प्रतिबंध लगाया है.
जहां तक इस्लामिक विद्यार्थियों, शिक्षाविदों और विद्वानों का कहना है कि मौलाना सैयद अबुल अला मौदुदी ने अराजकता, उग्रवाद, अशांति, उपद्रव इत्यादि की बात कहीं भी अपनी किताबों में नही लिखी है. इसी वजह से पूरी दुनिया के छात्र आज भी उनके लिए आवाज़ उठा रहे हैं.
उन्होंने तन्कीहात, खुतवात, तफहीमात, इस्लामी रियाशत, तजदीदो अहयाए दीन, खिलाफात और मलुकियत लीखीं जो पूरी मुस्लिम दुनिया में बेपनाह मकबूल हुईं और इनके कई जुबानों में तर्जुमें भी मौजूद हैं. जनाब मौलाना मौदूदी साहब ने छः हिस्सों में कुरान की तफ्सीर भी लीखी.
अब अंत में सवाल पाठकों के लिए है कि क्या यह उचित है सालों से जो किताबें पाठ्यक्रम का हिस्सा रही हों उन्हें हटाया जाए.