औरतों पर जुर्म, आख्रिर कब तक ???
Crime on women till when
New Delhi, January 06, 2013 : दोस्तों, गलत को गलत और सही को सही कहा जाना चाहिए और जुर्म के खिलाफ जंग होनी चाहिए, आवाज उठनी चाहिए लेकिन ऐसा आजकल नहीं हो पा रहा है, वह इसलिए कि अब लोगों के अन्दर इंसानियत मर रही है और नैतिकता और अच्छे आचार लुप्त हो रहे है. दिल्ली में छात्रा दामिनी के साथ कुछ युवकों ने शराब के नशे में जो घिनौना दुर्व्यवहार किया वह निन्दा के लायक है. दिल्ली के साथ सारे देश की जनता, मीडिया तथा कई सामाजिक संस्थाएं, रामदेव, केजरीवाल यहां तक की दिल्ली सरकार व केन्द्र सरकार तथा दूध के धुले कई नेता भेड़ों की तरह कतार में शामिल हो गए.
जनता ने प्रदर्शन किया और कठोर कानून की मांग की, क्या यह सब आसान है? मेरे प्यारे दोस्तों, मानसिकता का कोई ईलाज नहीं है. आज शराब का बेतहाशा चलन, धन, लचीला कानून, गन्दा फैशन, सिफारिश या पहुंच और सबसे अहम नैतिकता के पतन के कारण इस तरह की तमाम घिनौनी घटनाएं हो रही है. आज भी हत्याएं और इज्जत तार-तार हो रही है और पहले भी हुए थे और आगे भी होंगे मगर आखिर इन ज्यादतियो पर रोक कब लगेगी? आखिर हम कब जागेंगे?
मेरे अजीजो, इस जुर्म की बेशुमार घटनाएं हैं, कुछ चंद घटनाएं मैं बताता चलूं ताकि आप लोगों की आत्मा पाक और साफ हो जाए और इंसानियत के लिए आप आगे फैसला ले सकें. 28 फरवरी 2002 में गुजरात राज्य के जवान नगर, नवोदा पाटिया की घटना, 23 फरवरी 1991, कश्मीर के जिला कुपवाड़ा के एक गांव की घटना, मणिपुर में मनोरमा, इरोम शर्मिला, दंडपानी, आरती मांझी, सोनी सोरी इत्यादि बेकसूर महिलाओं के साथ हुई घटनाओं में प्रशासन का हाथ पाया गया. बर्बरता और हैवानियत की यह शायद अंतिम सीमा है.
दोस्तों यही हाल इराक, अफगानिस्तान और म्यामार में हुए जुर्म, कत्लेआम की घटनाओं का है. जो हमारे प्यारे भाई-बहिन इन घटना की चपेट में आए, हम उनके दुख-दर्द में बराबर के शरीक हैं वो चाहे किसी भी धर्म से हों. जहां तक औरतों को अधिकार, सुरक्षा, इज्जत, विकार, और बराबरी देने का सवाल है तो वह सही मायने में अभी नहीं मिला.
औरतों को आज भी भोग-विलास और इस्तेमाल की वस्तु समझा जाता है जो कि किसी जुर्म से कम नहीं है. आज स्वच्छ, चरित्रवान, न्याय व इंसानियत प्रिय और अच्छे अखलाक वाला नेता ढूंढ़ने से भी नहीं मिलता जो इंसानियत की भलाई का काम करे. और यह जानना भी हरेक के लिए जरूरी है कि वह विकास किसी काम का नहीं जिसमें इज्जत न हो.
अंत में, मैं अपने सभी पाठकों से गुजारिश करता हूं कि अपने परिवार से ही सुधार और नैतिकता को जिन्दा करने की शुरूआत कीजिए तभी देश व विश्व में रामराज आ पाएगा अन्यथा हमारी आने वाली पीढ़ी का भविष्य अंधकार तथा कष्टदायी होने में कोई शंका नहीं है.
-सम्पादक