राजस्थान से सीपीएम के सांसद की जीत के कारण क्या हैं. उन्हीं की ज़ुबानी
राष्ट्रीय सेक्युलर मंच द्वारा प्रसारित
-एल.एस. हरदेनिया :
मेरे क्षेत्र में आज़ादी के पहले किसान आंदोलन मज़बूत रहा है। यह ही एक ऐसा कारण है कि जिससे वामवंथी ताकत इस क्षेत्र में अपना अस्तित्व बचाके रख सकी। हम वामपंथी क्षेत्र में ज़ोरदार ढंग से किसानों के अधिकारों की मैदानी वकालत करते हैं। इस क्षेत्र में हमारी उपस्थिति काफी शक्तिशाली है। परंतु जब बात भाजपा को हराने की होती है तो प्रायः मतदाता कांग्रेस को वोट देते हैं। यह मत है आमरा राम के, जो राजस्थान से सीपीएम के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गये। इनका चुना जाना वैसे ही है जैसे किसी बड़े मरूस्थल में हरित भूमि का होना। राजस्थान सामंतशाहों का गढ़ रहा है। इसके बावजूद राम का चुना जाना इस बात का सबूत है कि यदि कम्युनिस्ट पूरी लगन और पूरी मेहनत से जनता की समस्याओं को हल करने का प्रयास करें तो उन्हें हराना मुश्किल होगा।
राम पहली बार लोकसभा के लिए चुने गये। परंतु उसके पहले वे 1993 से 2014 तक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार की हैसियत से राजस्थान की विधानसभा के लिए चुने जाते थे। टाईम्स ऑफ इंडिया के एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि आपकी जीत का मुख्य कारण क्या है, तो उन्होंने उत्तर में कहा कि हमारी पार्टी इस क्षेत्र में लगातार किसानों और आम लोगों के हितों के लिए संघर्ष करती रही। हमने अपने आंदोलन के द्वारा यह बताने का प्रयास किया कि किसानों की समस्याएँ लगभग वे ही हैं जो आम लोगों की समस्याएँ हैं। लोगों ने न सिर्फ हमारी बात को सुना वरन् हमें समर्थन भी दिया। हमने अपने आंदोलन के दौरान बिजली के बढ़ते हुए बिल, किसानों और आम लोगों के कर्ज़ों को माफ कराने का आंदोलन, अत्यधिक प्रतिक्रियावादी कृषि संबंधी कानूनों का पूरी मुस्तैदी से विरोध, इन सबने हमारी जड़ों को मज़बूती दी और हमारी पार्टी को पूरा समर्थन दिया।
उनसे पूछा गया कि आप संसद में शपथ लेने के लिए ट्रैक्टर पर बैठकर क्यों गये, उन्होंने कहा कि इसे विशेष महत्व नहीं दिया जाना चाहिए परंतु यह किसानों के प्रति एकजुटता का प्रतीक है। उनसे पूछा गया कि क्या कारण है कि वामपंथी दलों का दबदबा लगभग खत्म हो गया है? उन्होंने कहा कि वामपंथी पार्टी बंगाल, केरल, त्रिपुरा में मज़बूत थी। उसे मैदानी चुनावी समर्थन प्राप्त था। परंतु लगता है कि मतदाताओं को लगा कि यदि भाजपा को शिकस्त देना है तो कांग्रेस को समर्थन देना आवश्यक है। इस समय मतदाताओं पर ममता बैनर्जी की पकड़ मजबूत है। चूँकि बंगाल में कांग्रेस का अस्तित्व न के बराबर है इसलिए भाजपा विरोधी मतदाता तृनमूल कांग्रेस के साथ हो गए। इस बार के चुनाव में वामपंथियों ने भाजपा के वोट कम करने में सफलता पाई है। परंतु अगले चुनाव में भाजपा उन मतदाताओं का समर्थन खो सकती है जो उन्होंने कम्युनिस्टों के मतों पर कब्जा कर प्राप्त किया था। इस स्थिति में संभवतः अंतर आ सकता है।
इस समय जो दिल्ली में सरकार बनी है उसे मोदी की सरकार कहना गलत होगा। वह मोदी की मजबूत नहीं बल्कि मजबूर सरकार है। उनसे यह पूछा गया कि क्या कारण है कि जो 35 साल के अंतराल के बाद सीपीएम को लोकसभा की सीट जीतने का अवसर मिला? इसके पूर्व सीपीएम ने 1989 में बीकानेर से शिवपाल सिंह को लोकसभा में भेजने में सफलता पाई थी। उन्होंने बीकानेर से चुनाव इसलिए लड़ा था क्योंकि शिकार से देवीलाल चुनाव लड़ रहे थे। परंतु उस समय भी हम लगातार विधानसभा की सीटें जीतते रहे। यह सच है कि लोकसभा का चुनाव हमारे लिए कठिन होता गया। अब 35 साल के बाद हम फिर लोकसभा में प्रवेश कर रहे हैं। विरोधी दलों की भूमिका के बारे में उन्होंने कहा कि यह एकता एक तरह से वैचारिक है। मोदी सरकार की असफलताओं, दिये गये आश्वासनों को पूरा नहीं करना, किसानों की मांगों को नहीं मानना, पहलवान महिलाओं का अपमान करना, ये सब ऐसे मुद्दे हैं जिनसे इंडिया को सफलता मिली।
इस समय विरोधी दलों और विशेषकर वामपंथ के सामने चुनौती क्या है, इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि यदि भाजपा अहंकार से भरपूर होकर सभी विरोधी सांसदों को बहिष्कृत करती रही, जनता की बुनियादी समस्याओं की उपेक्षा करती रही तो वह समय दूर नहीं जब हमारी ताकत में इजाफा होगा। इस समय मोदी इंदिरा गाँधी के समान राज्यों के ताकतवर नेताओं को हटा रहे हैं। यदि यही चलता रहा तो उनकी ताकत में कमज़ोरी आना अवश्यंभावी है। यदि कांग्रेस भाजपा को अपदस्थ करना चाहती है तो उसे क्षेत्रीय पार्टियों से मिलकर चलना होगा।