क्या शब्दों से भरा पेट है जो अब भरेगा...
प्रिय पाठको,
आजकल हमारा भारत देश 75वां अमृत महोत्सव मना रहा है और साथ की 76वां स्वतंत्रता दिवस भी मना रहा है. आज प्रधानमंत्री जी ने लाल किले से कोई वायदा तो नही लेकिन देश की जनता को कुछ नसीहत का पाठ जरूर पढ़ाया है। सरकार क्या कर रही है और क्या प्रधानमंत्री जी देश के लिए सोचते हैं।
देश का एक बहुत बड़ा तबका आज भूखमरी की चपेट में है और सरकार धन का सही इस्तेमाल नही कर रही है। जो धन जनता में लगना चाहिए था वह कुछ लुटेरे लूट के ले गए हैं और कुछ लेपापोथी में लग रहा है।
प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में कहा कि परिवारवाद और भाई-भतीजेवाद से समाज को चुनौती है। समाधान जनता के पास है, सरकार जनता की है। इसमें जनता क्या करे। उन्होंने यह भी कहा कि देश के पास अगर करोड़ों समस्याएं हैं तो देश के पास करोड़ों समाधान भी हैं। आखिर पाठ से कभी कुछ निकला है या करने से होगा? रोजगार, कामधंधा, सुशासन की चाबी सरकार के पास है। आप जनता के लिए दरवाजे तो खोलो। भाषण से पेट नही भरेगा और प्रधानमंत्री जी सब संभव है और देश में खुशहाली भी संभव है उसके लिए नियत का होना जरूरी है जो आज ज्यादातर हमारे नेताओं में नही है।
प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में कहा कि भ्रष्टाचार समाज को दीमक की तरह खोखला कर रहा है। यह भी सबको मालूम है और भ्रष्टाचार की गंदी प्रवृत्ति तब तक रहेगी जब तक हमारे नेताओं और हमारे उद्योगपतियों को हराम के खाने से परहेज न होगा। आज कौन है जो अपना अपना नही कर रहा है? कोई है जो कहे मेरे देशवासी, मेरे भाई बहन?
क्या देश ने इस अमृत महोत्सव में कुछ सीखा या प्रतिज्ञा ली है। आज भी हमारे भाई बहन अकाल मौत के मुंह में जा रहे है। मैं सारा कसूर सरकार का मानता हूं। एक समय होता था जब कोई कुत्ता भी बगैर पानी के मरने पर अपनी पकड़ से डर होता था। आज किसी को बिल्कुल भी डर नही है। बेईमानी, झूठ, कपट आज शिक्षा के मूल पाठ हो गए हैं। कारोबार में झूठ, समाज में धोखे और घृणा को परोसा जा रहा है।
प्रधानमंत्री जी ने कहा कि 10 अच्छे काम किए हैं और 15 आगे दो सालों में करूंगा। पता नहीं वे 10 अच्छे कौन से हैं और 15 अच्छे आगे देश देख ही लेगा जब होंगे।
आत्म निर्भर भारत के लिए डिजिटल इंडिया और 5जी से बढ़कर हमारे देश के लोग हैं उनकी जाने हैं। रोटी, कपड़ा और मकान है। जो आज भी एक समस्या बनी हुई है। आज पीने का पानी समस्या है। ग्लोबल वार्मिंग समस्या है, जलवायु समस्या है, आक्सीजन की कमी इत्यादि समस्याएं कोरोना से भी भंयकर समस्याएं हैं। देश में हर साल बाढ़ से जान मान का नुकसान होता है उसका कोई समाधान नहीं है। यह कैसा विकास है जिसमें लाचारी के अलावा कुछ नही है।
देश का किसान काम कर रहा है, मजदूर, ड्राईवर काम कर रहे है जो रोज उठता है और काम करता है देश की तरक्की में अपना खून पसीना देता है। नौकरियां ठेकेदारों के हवाले हो गई वह भी 2-3 साल के लिए। यह किसी ने सोचा कि फिर इन बच्चों का क्या होगा? बच्चे दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। अपने 8-10 लोगों का परिवार की देखभाल कर रहे हैं। क्यूं नहीं हम देश के हर नागरिक के भविष्य में बारे में सोचते हैं। क्यूं नहीं हम अपने बच्चों को उन्माद से बचाएं, हर धर्म से घृणा नहीं प्रेम करना सिखाएं।
स्वच्छता के नाम पर 2 अक्टूबर को स्वच्छता दिवस मनाया जाता है जो एक दिवस मनाने भर तक रह गया और गंदगी देखने के लिए दूर न जाएं दिल्ली को देख लें। मेरे देशवासियों का पेट झूठे वायदों, झूठे भाषणों और नसीहतें खाने से भर जाता है। यह कोई जोक नही है मेरा देश बंग्लादेश, नाजिरिया, नेपाल की तरह गरीब हो रहा है। हम खुशहाली में 146 देशों की लिस्ट में 136 पर हैं।
मेरी यह व्यक्तिगत राय है कि देश में धर्मान्धता की बीमारी पर रोक लगना चाहिए। सरकारों को बेरोजगारी और मंहगाई जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए ईमानदार कोशिश करनी चाहिए।
-मोहम्मद इस्माइल, एडीटर