विश्वासघात : राष्ट्रीय दलों की 82 प्रतिशत इनकम सोर्स का पता नहीं: एडीआर

विश्वासघात : राष्ट्रीय दलों की 82 प्रतिशत इनकम सोर्स का पता नहीं: एडीआर
No electoral bond

प्रिय पाठको, अज्ञात स्रोतों से 1,832.88 करोड़ रुपए की रकम राजनीतिक दलों को आई. यह बात द एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने गुरुवार 7 मार्च को एक रिपोर्ट में कहा. देश के राजनीतिक दलों को 82 प्रतिशत आय जो अज्ञात स्रोत आई है उसका देश की जनता को पता नहीं. ये रकम केवल एक साल 2022-23 में इलेक्टोरल बॉन्ड से जुटाई गई. ये जानकारी चुनाव आयोग को दी गई. यह देश के भविष्य के लिए घातक है. चुनाव आयोग के सामने केवल 18 प्रतिशत रकम का रिकार्ड दिया गया है.

इससे यह पता चलता है कि देश के अन्दर कितना भ्रष्टाचार है. 82 प्रतिशत आय जो अज्ञात स्रोत से राजनीतिक दलों के पास आया है वे इन राजनीतिक दलों के नेताओं से किस तरह वसूल करेंगे यह सब जानते हैं. इससे यह साफ हो गया है कि इस खेल में सब चोर-चोर मौसेरे भाई हैं. राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग को वित्तीय वर्ष 2022-23 की फाइनेंशियल रिपोर्ट सौंपी थी. जिसका एनालिसिस एडीआर ने किया है. एडीआर के मुताबिक राजनीतिक दलों को अज्ञात स्रोतों से 1,832.88 करोड़ रुपए की आय हुई. इसमें से इलेक्टोरल बॉन्ड से इनकम का हिस्सा 1,510 करोड़ रुपए (82.42 प्रतिशत) था.

एडीआर ने केवल भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, सीपीआई-एम, बसपा, आम आदमी पार्टी और नेशनल पीपुल्स पार्टी के इनकम का अध्ययन किया है.

एडीआर के मुताबिक, कांग्रेस और सीपीआई-एम ने संयुक्त रूप से अपनी इनकम 136.79 करोड़ बताई है. दोनों पार्टियों ने कहा कि ये रकम कूपन बेचकर जुटाई गई है. यह राशि अज्ञात स्रोतों से मिले कुल डोनेशन का 7.46 प्रतिशत है.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि राष्ट्रीय पार्टियों को जो डोनेशन इलेक्टोरल बॉन्ड से मिला, उसे हाईलाइट किया गया है. राज्य स्तर के दलों को भी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए पैसा मिला. सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई  को 6 मार्च तक चुनाव आयोग को जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था.

एसबीआई ने कोर्ट में आवेदन दायर करके कहा कि उन्हें डिटेल निकालने के लिए समय चाहिए. एसबीआई ने अपने आवेदन में कहा कि इसके लिए 6 मार्च का समय पर्याप्त नहीं है इसलिए भारतीय स्टेट बैंक ने राजनीतिक दलों के इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी का खुलासा करने के लिए 30 जून तक का समय मांगा है. इससे यह समझा जा सकता है कि बैंक भी मामले पर लिपापोथी करना चाहता है. तब तक नई सरकार कौन सा दल बना रहा है उसका पता भी चल जाऐगा.

सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को राजनीतिक फंडिंग के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह स्कीम असंवैधानिक है. बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है. यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.

देश के अन्दर क्या-क्या और कैसे-कैसे घोटाले हो रहे हैं जिसकी जानकारी देश की जनता को नही हैं. अगर किसी को मालूम भी है तो उसकी कोई सुनने वाला नही है. क्यूंकि ज्यादातर लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. देश में बेरोजगारी, मंहगाई, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, सुरक्षा पर कोई भी नेता बात नही करना चाहता.

अंत में यह कहा जा सकता है कि तमाम दल सत्ता पाने के लिए भ्रष्टाचार में और ज्यादा लिप्त हो रहे हैं. अब यह कहा जा सकता है कि खरीद-फरोख्त की राजनीति को प्रजातंत्र नही कहा जा सकता है. क्या देश न्याय पालिका और चुनाव आयोग इस प्रथा पर रोक लगा सकता है.

-मो. इस्माइल, एडीटर