हाईकोर्ट का अनोखा निर्णय: प्रेमी जोड़े को संरक्षण का दिया आदेश
-एल.एस. हरदेनिया :
मैंने कुछ दिन पहले यह सुझाव दिया था कि प्रेमी जोड़ों को शासन, समाज और न्यायपालिका का संरक्षण मिलना चाहिए. प्रायः इस तरह की खबरे आती हैं कि यदि प्रेमी अपने माँ-बाप की मर्जी के बिना विवाह कर लेते हैं तो प्रायः उनकी हत्या कर दी जाती है. विशेषकर वे प्रेमी जो एक-दूसरे विरोधी धर्मों, जाति के और यहाँ तक कि अन्य किसी प्रकार के विरोध के होते हैं माँ-बाप की हिंसा के शिकार होते हैं. मुझे यह जानकर प्रसंशा है कि इन्दौर की हाईकोर्ट ने 19 वर्ष के एक प्रेमी जोड़े के लिए पूरी सुरक्षा का आदेश दिया है. इन्दौर हाइकोर्ट से इस 19 वर्षीय जोड़े ने सुरक्षा की मांग की थी. उन्हें इस बात का खतरा था कि वधु के परिवार के लोग उनकी हत्या कर देंगे. यह जोड़ा मध्यप्रदेश के खरगौन नामक स्थान में रहता था. उन्होंने एक पिटिशन के माध्यम से यह मांग की थी कि उन्हें पुलिस का संरक्षण दिलवाया जाए. हाईकोर्ट ने उनकी इस मांग को स्वीकार कर पुलिस को आदेश दिया कि वह उन्हें यथावत संरक्षण प्रदान करे.
न्यायमूर्ति अभ्यंकर ने यह माना कि याचिकाकर्ता वयस्क हैं और उन्हें पूरी तरह से अपने परिवार की इच्छा के विरूद्ध जीवनयापन करने का अधिकार है.
सरकारी वकील ने प्रेमी जोड़े की मांग का विरोध किया. वकील का कहना था कि प्रेमी जोड़े की अभी वैवाहिक उम्र नहीं है ऐसी स्थिति में यदि उन्हें संरक्षण प्रदान किया गया तो यह समाज के लिए उचित नहीं होगा. हाईकोर्ट ने इस तर्क को मंजूर नहीं किया और पुलिस को आदेश दिया कि वह प्रेमी जोड़े को सुरक्षा प्रदान करे.
अदालत ने यह तर्क दिया कि जोड़े में पति शादी की उम्र पूर्ण कर चुका है इसलिए उसे अपनी मर्जी से शादी करने का हक है और इसलिए उसे किसी बाहरी तत्वों द्वारा किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाने का अधिकार नहीं है.
यद्यपि कोर्ट के न्याय मूर्ति अभ्यंकर ने संरक्षण प्रदान करते हुए कहा कि वे इस बात को लेकर चिंतित हैं कि बहुत कम उम्र में नवयुवक शादी करने का फैसला कर रहे हैं. न्यायाधीश महोदय ने यह कहा कि यद्यपि संविधान नवयुवकों को शादी करने का अधिकार देता है परंतु यह जरूरी नहीं कि अपरिपक्व उम्र में नवयुवक इस अधिकार का उपयोग करें. यदि इस उम्र में विवाह किया जाता है तो हो सकता है कि इससे स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त करने में बाधा हो. यदि इतनी कम उम्र में वैवाहिक जीवन में प्रवेश कर भी लेता है तो इससे उसे वैवाहिक जीवन बिताने में काफी कठिनाईयाँ हो सकती हैं, विशेषकर लड़की के लिए यह ज्यादा कठिनाईपूर्ण हो सकता है. विशेषकर यदि वह गर्भवती हो गई तो उसे कई प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है. अंत में जज महोदय ने कहा कि यह सही है कि संविधान एक आयु के बाद शादी करने का अधिकार देता है पर यह जरूरी नहीं कि इस अधिकार का उपयोग किया जाये.
मैंने भी लेख में इस बात पर ज़ोर दिया था कि यदि कम आयु में युवक-युवतियाँ अपनी मर्जी से शादी कर लेते हैं तो सिर्फ इसलिए उनकी हत्या कर देना या उन्हें दुख पहुंचाना उचित नहीं है.