साक्षात्कार: मैंने गरीबी को काफी नजदीकी से देखा है - प्रमोद कुमार सिंह

Interview: I have seen poverty very closely - Pramod Kumar Singh

साक्षात्कार: मैंने गरीबी को काफी नजदीकी से देखा है - प्रमोद कुमार सिंह

अजय कुमार पाण्डेय:

औरंगाबाद: ( बिहार ) सोमवार का दिन है. तारीख है 20 फरवरी 2023. मुख्यालय स्थित ब्लॉक के पास अपने आवास पर बैठे हुए हैं. लोक जनशक्ति पार्टी ( रामविलास ) के प्रदेश महासचिव, गया जिला प्रभारी, समाजसेवी व वरीय नेता, प्रमोद कुमार सिंह. उसी वक्त संवाददाता की भी वरीय नेता, प्रमोद कुमार सिंह से पहुंचने पर होती है मुलाकात. 

संवाददाता के अलावे रफीगंज विधानसभा क्षेत्र से भी पहुंचे हुए कई लोग अपनी-अपनी समस्याओं को लेकर अपने वरीय नेता, प्रमोद कुमार सिंह से करते हैं बात. तब वरीय नेता, प्रमोद कुमार सिंह भी सभी लोगों की बारी - बारी से सुनते हैं समस्या. और निदान करने / करवाने का भी देते हैं पीड़ितों को भरोसा. 

इसके बाद संवाददाता ने लोजपा ( रामविलास ) के प्रदेश महासचिव व गया जिला प्रभारी, प्रमोद कुमार सिंह से सवाल पूछा कि आपका जन्म कब हुआ. आपका बचपन कैसे गुजरा. शिक्षा कहां से हासिल की. किस परिस्थिति में आपने बाहर जाकर काम किया. और आपके राजनीतिक जीवन की शुरुआत कब और कैसे प्रारंभ हुई. 

तब संवाददाता द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए प्रमोद कुमार सिंह ने कहा कि मेरा जन्म सन 1966 में मदनपुर प्रखंड अंतर्गत कमात गांव में हुआ. मैं एक किसान का बेटा हूं. मेरे पिताजी किसान थे. सबको पता है कि उस वक्त किसान की हालत क्या थी. मैं उच्च शिक्षा वार हाई स्कूल से पाया. सच्चिदानंद सिन्हा महाविद्यालय औरंगाबाद में मैं साइंस का स्टूडेंट रहा. मै अपने पिताजी को उस वक्त कुछ कह भी नहीं पाता था. क्योंकि मेरे घर की माली ( आर्थिक ) हालत भी ठीक नहीं थी. जब मैं अपने घर से पैदल चलकर वार पहुंचने के बाद राज्य परिवहन निगम की बस पकड़कर प्रतिदिन सुबह 6:00 बजे ही किसी भी मौसम में पढ़ने के लिए सच्चिदानंद सिन्हा महाविद्यालय, औरंगाबाद में जाता था. तब उस वक्त मेरे पिताजी 05 रुपया रोज के हिसाब से दिया करते थे जिसमें मैं 02 रुपया प्रतिदिन के हिसाब से राज्य परिवहन निगम बस को भाड़ा भी दे दिया करता था. 

सन् 1983 में मैं वार हाई स्कूल से मैट्रिक का डिग्री प्राप्त किया. उस वक्त वार हाई स्कूल में प्रिंसिपल मेरे गुरु थे. कोना निवासी, रामजतन बाबू. जो हमसे हमेशा कहते थे कि बाबू वार हाई स्कूल का अगर प्रतिष्ठा बचाना है. तो मैट्रिक के परीक्षा में फर्स्ट डिवीजन अवश्य लाना होगा. तब उसी वक्त में मैंने भी ठान लिया था कि मैट्रिक की परीक्षा में फर्स्ट डिवीजन रिजल्ट अवश्य लाऊंगा. इसके बाद मैं मैट्रिक की परीक्षा में 624 नंबर एग्रीगेट लाया. और प्रथम श्रेणी से पास हुआ. और जहां तक मुझे राजनीति में आने का सवाल है. तो मैं सेवा भाव से राजनीति में आया. 

किसानों की दयनीय स्थिति, बेरोजगारों की स्थिति को भी मैंने काफी नजदीकी से देखा. कि बेरोजगार लोग अपने रोजगार के लिए कैसे आतुर रहते हैं. मेरे घर की माली हालत ठीक नहीं थी. इसी वजह से मैं प्राइवेट नौकरी करने हेतु बाहर चला गया. सर्वप्रथम हम प्राइवेट नौकरी करने हेतु मध्य प्रदेश राज्य अंतर्गत कटनी निकले. वहां मेरे गांव के ही कुछ लोग रहते भी थे. उन्हीं लोगों को मैंने बताया. जबकि उन लोगों ने मुझे उस वक्त काम करने से मना भी किया कि आप पढ़ने में तेज है. इसलिए आप पढ़ लिखकर कोई अच्छा पोस्ट पर नौकरी कीजिए. तब मैं उन लोगों से कहा कि अब मेरे पिताजी पढ़ाने में सक्षम नहीं है. इसके बाद जब मैं उन लोगों से आग्रह किया. तब मुझे हमाली का काम मिला. 

इसके बाद उस वक्त मुझे प्रति कार्टून उतारने में मात्र 50 पैसा ही मिलता था. उस वक्त मैं दिन भर में मात्र 10 रुपया कमाता था. मैं करीब 15 दिनों तक बोरा का बिछौना बनाकर और ईंट का ही तकिया बनाकर कटनी रेलवे स्टेशन पर सोता था. तथा मैं रात्रि में पढ़ाई भी करता था. तब मुझे एक दिन मालिक ने भी देख लिया. इसके बाद फिर मुझे मालिक से बात हुई. उसी वक्त मैं अपना आई0एस0सी0 पास करने के बाद पढ़ाई का कंबीनेशन भी चेंज किया. पॉलिटिकल साइंस लिया. 

इसके बाद मुझे सन 1985 - 1986 में रविंद्र जायसवाल की कंपनी मसीहा बना. मेरा प्रमोशन हुआ. तब मैं सन् 2017 में 08 जोड़ा विकलांगों को शादी भी कराया. सभी बेटियां मुझसे आज भी बाप के रूप में सम्मान देते हुए बातें करती हैं. और हम भी हमेशा उन लोगों से पिता धर्म मानकर बातें करते हैं. और सहर्ष स्वीकार भी करते हैं. मैंने अपने 12 वर्षों की राजनीति में 500 से अधिक लोगों को मदद करके शादी भी कराया जिनके पिता सक्षम नहीं थे. उन्हें मैं अपने खून पसीने की कमाई से मेहनत करके शादी में सारा सहयोग करके शादी संपन्न कराया लेकिन मैं अन्य लोगों की तरह फेसबुक वगैरह में भी डालकर नहीं दिखाता हूं. मैं उनके समाज के सामने भी जलील नहीं करना चाहता हूं कि मैंने इन्हें मदद करके शादी संपन्न कराया है. ये सब ऊपर वाले के खाते में लिखा रहा है. 

इसके अलावे जमींदारी वक्त से जो काम नहीं हुआ था. किसान काफी परेशान थे. उसको मैंने पीपरौरा से लेकर बंचर तक लगभग 20 किलोमीटर पईन उड़ाही का भी काम करवाया जिससे आज 05 हजार हेक्टेयर में भूमि भी सिंचित हो रही है. नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जहां 1,000 दलित परिवार के लोग रहते हैं. वहां भी हमने अपना निजी फंड से 06 किलोमीटर तक रोड बनवाया. साथ ही मै अपने रफीगंज विधानसभा क्षेत्र में लगभग 50 - 60 गांवों में भी रोड बनवाया. 

इसके अलावे जीर्ण शीर्ण मंदिर का भी निर्माण कार्य कराया. नाटक मंचन, क्रिकेट मैच, फुटबॉल मैच के खेल में भी मैंने हमेशा सभी लोगों का मनोबल बढ़ाने का काम किया. मैंने इंफ्रास्ट्रक्चर में भी काम कराया. इसके अलावे भी मैंने अपने विधानसभा क्षेत्र में कई सामाजिक कार्य किया. मैं अभी तक अपने खून पसीना से कमाया हुआ लगभग 10 करोड़ रुपया से भी अधिक पैसा खर्च किया हूं.

इसके बाद वरीय नेता, प्रमोद कुमार सिंह ने रफीगंज विधानसभा क्षेत्र वासियों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि मैं जब सन् 2020 के बिहार - विधानसभा चुनाव में रफीगंज विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा. तब भी मुझे रफीगंज विधानसभा क्षेत्र वासियों ने रिकॉर्ड मत देकर दूसरे स्थान पर पहुंचाने का काम किया और विपक्षी दलों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि निर्दलीय प्रत्याशी होने के बावजूद भी प्रमोद कुमार सिंह को इतना अधिक मत कैसे प्राप्त हुआ. तो मेरे लिए भी यह कम बात नहीं है. इसलिए मैं भी अपने रफीगंज विधानसभा क्षेत्र वासियों द्वारा मिले हुए इस स्नेह - प्यार को कदापि नहीं भूल सकता हूं. 

इसके बाद कहा कि आप लोग भी जानते हैं. कि निर्दलीय प्रत्याशी का कोई वोट नहीं होता है. कोई वजूद नहीं होता है. उस परिवेश में भी मुझे रफीगंज विधानसभा क्षेत्र वासियों ने रिकॉर्ड मत दिया. इसीलिए मैं आज भी खुला मंच से ही कहता हूं. कि मेरा संपत्ति पर रफीगंज विधानसभा क्षेत्र वासियों का भी उतना ही अधिकार है. 

अंत में समाजसेवी, प्रमोद कुमार सिंह ने संवाददाता से हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि रफीगंज विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत भदुकी कला पंचायत में पहाड़ होने की वजह से वहां के लोगों को पानी नहीं मिल पाता था लेकिन आज मेरे द्वारा ही बोर कराया हुआ बोरिंग से वहां के लोगों को कम से कम पानी मिलने लगा है. जो मेरे लिए भी बहुत गर्व की बात है. 

समाजसेवी, प्रमोद कुमार सिंह ने कहा कि जब मेरी स्थिति ठीक हुई. तब मैं अपना सर प्लस पैसा को समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों के लिए मदद करना शुरू किया. अपना शारीरिक मेहनत करके, खून पसीना से कमाया हुआ पैसा को लगाया. सन् 2012 में मै राजनीति में आया. उसी वक्त से मेरा राजनीति में पदार्पण हुआ. मेरी 05 बहने है. फुआ ( बुआ ), दादी का भी श्राद्ध कर्म पूरा किया.