दिल्ली दंगा मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट ने नौ मुसलमान लोगों को बरी किया
दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर पूर्वी दिल्ली में 2020 के दंगों के दौरान तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाओं में शामिल होने के आरोपी नौ मुसलमान लोगों को बरी कर दिया है. बरी किए गए लोगों में मोहम्मद शाहनवाज, मोहम्मद शोएब, शाहरुख, राशिद, आजाद, अशरफ अली, परवेज, मोहम्मद फैसल और राशिद नाम का एक अन्य व्यक्ति शामिल है.
शिकायतकर्ता भी निकला झूठा :
इस समूह पर 25 फरवरी, 2020 को गोकलपुरी पुलिस स्टेशन के अंतर्गत चमन पार्क इलाके में शिकायतकर्ता की संपत्ति को कथित रूप से क्षतिग्रस्त करने और आग लगाने वाली एक गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा होने का आरोप था.
अपने फैसले में, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ आरोपों को साबित करने में विफल रहा है. उन्होंने स्वीकार किया कि हालांकि वास्तव में बर्बरता और आगजनी में एक गैरकानूनी भीड़ शामिल थी, लेकिन सबूतों ने आरोपियों को भीड़ से पर्याप्त रूप से नहीं जोड़ा. दो प्रमुख सरकारी गवाह अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन करने में विफल रहे. एक गवाह, सहायक उप-निरीक्षक हरि बाबू ने अदालत में कहा कि वह स्मृति हानि से पीड़ित था और उसका इलाज चल रहा था. जिरह के दौरान, उसने अपनी स्थिति के कारण कथित दंगाइयों में से चार की सही पहचान करने में असमर्थता स्वीकार की.
गवाहों का झूठ हुआ उजागर :
अभियोजन पक्ष के एकमात्र अन्य गवाह, हेड कांस्टेबल विपिन ने आरोपियों की पहचान करने का दावा किया था, लेकिन 7 अप्रैल, 2020 तक आधिकारिक तौर पर इसे दर्ज नहीं किया था. अदालत के लिए इसे विश्वसनीय सबूत मानने के लिए बहुत देर हो चुकी थी. अदालत ने बाबू वसीम के खिलाफ आरोपों को भी खारिज कर दिया, जिस पर शाहरुख पठान को हथियार बेचने का आरोप था. न्यायाधीश प्रमाचला ने फैसला सुनाया कि आरोप अटकलों पर आधारित थे और इसमें ठोस सबूतों का अभाव था, साथ ही पठान के अपने बयान को कानून के तहत अस्वीकार्य माना गया. पुलिस ने पहले दावा किया था कि पठान ने 24 फरवरी, 2020 को दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल दीपक दहिया पर पिस्तौल तान दी थी. घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पठान भाग गया था, लेकिन बाद में उसे 3 मार्च, 2020 को उत्तर प्रदेश के शामली में गिरफ्तार कर लिया गया था.
कोर्ट ने सारे आरोपों से किया बरी :
अभियोजन पक्ष ने पहले तर्क दिया था कि पठान ने खुलासा किया था कि उसने दिसंबर 2019 में वसीम से 35,000 रुपये में एक पिस्तौल और 20 गोलियां खरीदी थीं. हालांकि, अदालत को इसका समर्थन करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं मिला. यह फैसला कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने सुनाया. पठान को जाफराबाद थाने में दर्ज एफआईआर 49/2020 में पहले ही जमानत मिल चुकी थी.
अदालत ने स्पष्ट किया कि पठान द्वारा कथित तौर पर एक पुलिस अधिकारी पर पिस्तौल तानने का मामला अलग है जज अमिताभ रावत ने फैसला सुनाया कि बाबू वसीम के खिलाफ मामला पूरी तरह से काल्पनिक था, जिसमें यह मानने का कोई आधार नहीं था कि वसीम ने आर्म्स एक्ट की धारा 25 का उल्लंघन किया था. अदालत ने अभियोजन पक्ष के इस दावे को स्वीकार नहीं किया कि पठान ने वसीम से पिस्तौल खरीदी थी, जिसके कारण वसीम को बरी कर दिया गया. फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 40 मुस्लिम और 13 हिंदू शामिल थे. हिंसा में घरों, दुकानों और पूजा स्थलों को भी काफी नुकसान पहुंचा. दंगों से जुड़े कई कानूनी मामले अभी भी दिल्ली की अदालतों में चल रहे हैं, जिनमें दिल्ली हाई कोर्ट भी शामिल है.