सामाजिक द्वेष को दूर करने के लिए नई दृष्टिकोण की आवश्यकता
अमरेन्द्र यादव :
नूह जैसी साम्प्रदायिक तनाव की विस्फोटक स्थितियाँ देश में अनेक स्थानों पर बन रही हैं। हिन्दु मुस्लिम सौहार्द को बनाने के पुराने तरीक़े अब सफल नहीं हो रहे इसलिए नवाचारी उपायों के प्रयोगों की आवश्यकता है। 31 जुलाई को हरियाणा के नूह में हुई सांप्रदायिक हिंसा का शोध आधारित अध्ययन करने के बाद कम्यूनिकेशन रिसर्च ग्रुप (सी आर जी) ने यह अनुशंसा भी की है कि नूह ज़िले में प्रशासनिक संरचना को तुरन्त प्रभाव से दोगुना करना चाहिए। अतिरिक्त संरचना की ज़िम्मेदारी हो कि मेवात के इस क्षेत्र में हिन्दु-मुसलिम सकारात्मक संवाद को निरन्तर बनाए रखें व द्वेष फैलाने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं को या तो निष्क्रिय करें या ज़िले से बाहर निकाले।
मीडिया की रिपोर्टिंग व सोशल मीडिया की सामग्री, का विश्लेषण व अधिकारियों, सहभागियों व प्रत्यक्षदर्शियों से बातचीत पर आधारित सी आर जी के निष्कर्ष में कहा गया है कि मेवात तीर्थ यात्रा से पूर्व ही तनाव बढ़ गया था जिसके कारण मेवात के मुस्लिमों के एक भाग ने हिंसा करने की योजना बना ली थी। सी आर जी के प्रवक्ता ने आनलाइन प्रेस वार्ता में बताया कि पीस कमेटी और स्थानीय प्रशासन दोनों ही तनाव की पूर्व स्थिति को समझने और आवश्यक कार्रवाई करने में असफल हुए।
यह भी सामने आया कि तीर्थ यात्रियों पर आसपास की पहाड़ियों से पत्थर मारे गए और गोलियाँ दागी गई। सड़कों पर लाठियों, सरियों व तलवारों से भी मारपीट की गई। घटनास्थल पर जो सीमित संख्या में पुलिस थी वह भी हिंसा के शिकार हुए।
समाजशास्त्रियों, प्राध्यापकों व मीडिया कर्मियों की 6 विशेषज्ञों की टोली ने दोनों पक्षों की जानकारी के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि मेवात के इस क्षेत्र में मुसलमानों की जनसंख्या सभी अन्य समुदायों से अधिक है परन्तु मुसलमानों में अभी भी जाति व गोत्र व्यवस्था प्रचलन में है। बहुसंख्यक समाज का एक अल्पसंख्यक हिस्सा विभिन्न समुदायों में वैरभाव, द्वेष व अविश्वास उत्पन्न करने का कार्य योजना से कर रहा है। मेवात का आम नागरिक समाजिक तनाव व पारस्परिक अविश्वास में रहता है। कोई भी बहाना लेकर शरारती तत्व हिंसा करने के लिए उकसाने में सफल हो जाते हैं।
मेवात तीर्थ यात्रा नूह क्षेत्र में तीन मन्दिरों में क्रमपूर्वक उपासना के लिए है जिसमें नूह के अतिरिक्त शेष हरियाणा, राजस्थान, पंजाब व दिल्ली से भी श्रद्धालु भाग लेते हैं। पूर्व में कई मुसलिम भी यात्रा में शामिल होते थे और यात्रियों के लिए सुविधाएँ भी जुटाते थे। इस वर्ष 31 जुलाई को होने बाली यात्रा से पहले ही तनाव बढ़ गया था परन्तु पीस कमेटी व प्रशासन के आश्वासन पर यात्रा प्रारम्भ की गई। नल्हड मन्दिर से निकलने के कुछ देर बाद ही जलूस पर आसपास की पहाड़ियों से पत्थर बरसाए गए और बन्दूकों से गोलियाँ चलाई गई। पुलिस कर्मी जो संख्या मे बहुत कम थे वे भी हिंसा के शिकार हुए। सड़कों पर लाठियों, सरियों व तलवारों से वार किए गए। बसें, ट्रक, कारें व दोपहिया के वाहनों को तोड़ा गया और कुछ को जलाया गया।
यात्रियों जिनमें महिलाएँ व बच्चे भी थे, ने नल्हड मन्दिर में शरण ली। उपद्रवियों ने मन्दिर में घुसने का प्रयास नहीं किया। बाद में पुलिस ने फँसे हुए यात्रियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया। इस समय भी पुलिस पर गोलीबारी हुई और पुलिस ने जवाब में पहाड़ियों की तरफ़ गोलियाँ दागी। घटना के दो-तीन दिन तक आसपास के क्षेत्रों में तोड़फोड़ की घटनाएँ हुई और कुछ सीमा तक मुसलिमों से भी हिंसा हुई।
गुरुग्राम में एक मस्जिद में भी दंगा हुआ और एक मौलवी की भी मौत हुई।
सी आर जी की रिपोर्ट में मुख्य सिफ़ारिशों में कहा गया है कि तुरन्त प्रभाव से नूह ज़िले में प्रशासनिक व्यवस्था को दोगुना किया जाए जिसमें अतिरिक्त दल का काम दोनों समुदायों में लगातार सकारात्मक बातचीत कराने का और शरारती तत्वों को ज़िले से बाहर करने का रहे। सी आर जी ने यह भी सिफ़ारिश की हैं कि यह अतिरिक्त दल स्कूल जाने योग्य आयु की लड़कियों व लड़कों के आपसी संबाद के मंच बनाए और उन्हें सकारात्मक व रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखने के उपाय करे। स्कूल जाने वाली सभी लड़कियों को दोगुनी छात्रवृतियाँ दी जाए। शोध समूह ने दीर्घकालिक उपाय के संदर्भ में अनुशंसा की है कि एक कार्यदल बनाया जाए जो नूह ज़िले में सौहार्द बनाने के लिए शोध व विमर्श आधारित नवाचारी प्रयोग करे। इन उपायों के सफल होने पर देश के अन्य संवेदनशील ग्रामों व नगरों में भी इनका उपयोग किया जाए।