Doctors Day 2022: मिलिए इन 5 डॉक्टरों से जो अपनी निःस्वार्थ सेवा से धरती पर भगवान का काम कर रहे हैं
National Doctor's Day Special: मिलिए देश के 5 ऐसे डॉक्टरों से जो अपनी निःस्वार्थ सेवा से कर रहे हैं मानवता की सेवा।
आज भी धरती पर अगर किसी को भगवान माना जाता है, तो वो हैं डॉक्टर्स। समय के साथ चिकित्सा सेवा और डॉक्टर्स का रूप भले ही बदला हो लेकिन आज भी लोग डॉक्टर्स को धरती पर मौजूद भगवान का दर्जा देते हैं। जैसे-जैसे मेडिकल साइंस ने तरक्की की है वैसे ही डॉक्टर्स का रूप और रोल बदला है। जब से चिकित्सा सेवा प्रोफेशनल सर्विस में तब्दील होनी शुरू हुई है, तब से कई बार ऐसा भी देखने को मिला है कि डॉक्टर्स पर तरह-तरह के आरोप लगे हैं। अब स्थितियां पहले जैसी नहीं हैं। मेडिकल सर्विस में भी व्यावसायिकता हावी हो रही है और स्पेशलाइजेशन और सुपर स्पेशलाइजेशन का दौर चल पड़ा है। यही कारण है कि अब लोगों को लगने लगा है कि चिकित्सक या डॉक्टर सेवा नहीं कर रहे, बल्कि लोगों से धन का दोहन करने में लगे हैं। लेकिन इन सबके बीच हमारे देश में कुछ ऐसे डॉक्टर भी हैं जिन्होनें अपने प्रोफेशन में रहते हुए जन सेवा की ऐसी मिसाल पेश की है, जो काबिले तारीफ है।
डॉक्टर्स की सेवा के प्रति कृतज्ञता और सम्मान जाहिर करने के लिए 1 जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे (National Doctors' Day) के रूप में मनाया जाता है। चिकित्सा सेवा में बीते दो साल ऐसे रहे हैं, जिसमें डॉक्टर्स की अहमियत समाज के सामने आई है। इन दो सालों में डॉक्टर्स ने भी अपने काम और कार्यशैली से एक नई मिसाल कायम की है। इस डॉक्टर्स डे के मौके पर आज हम देश के 5 ऐसे डॉक्टर्स की कहानी आपको बताने जा रहे हैं, जिन्होनें लोगों की सेवा करते हुए अपने जान की परवाह नहीं की है। इनमें से कुछ डॉक्टर तो ऐसे हैं जिन्होनें अपनी जिंदगी और सुख सुविधाओं को भी जन सेवा के सामने खत्म कर दिया है। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ डॉक्टर्स की कहानी जिन्होनें धरती पर मौजूद भगवान के भरोसे को कायम रखा और समाज के लिए एक आदर्श बनकर सामने आए।
1. डॉ. अजीत जैन (Dr. Ajeet Jain)
बीते 2 सालों से कोरोना वायरस महामारी के कारण पैदा हुई स्थिति भला कौन नहीं जानता। इस महामारी को नियंत्रण में लाने और इसकी चपेट में आए लोगों का इलाज करने में डॉक्टर्स की भूमिका सबसे बड़ी रही है। हम और आप कभी भी इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि किस तरह से खुद को संक्रमित होने के डर के बावजूद डॉक्टर्स और अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों ने लोगों की सेवा की है। डॉ अजीत की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। डॉ. अजीत राजधानी दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के सुप्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट हैं। कोरोना काल के दौरान डॉ. अजीत को कोविड केयर नोडल अधिकारी के रूप में काम का जिम्मा दिया गया था।
कोरोना संक्रमण के दौरान जब स्थिति गंभीर हुई, तो अस्पतालों का मंजर बेहद डरावना हो गया था। दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में तैनात डॉ. अजीत का घर अस्पताल से महज कुछ ही किलोमीटर दूर था लेकिन महामारी के दौरान वे मरीजों की सेवा में ऐसे लगे, कि लगातार 170 दिन बिना घर गए अस्पताल में लोगों का इलाज करते रहे। डॉ. अजीत मरीजों के इलाज के बाद जब 107 दिन बाद अपने घर लौटे, तो उनका स्वागत हीरो की तरह से किया गया।
डॉ. अजीत ने बातचीत में बताया कि जब वह लगातार 6 महीने तक बिना घर गए अस्पताल में रहकर मरीजों का इलाज कर रहे थे, तो उस समय उनके परिवार से रोजाना रात के समय 1 से 2 बजे के बीच 10-15 मिनट के लिए ही बातचीत हो पाती थी। कोरोना महामारी के समय 6 महीने तक अस्पताल ही उनका घर बन चुका था। डॉ अजीत की पत्नी जो खुद एक डॉक्टर थीं, उनकी कोरोना संक्रमण से मौत होने के बाद भी वो हौसला नहीं हारे और लगातार मरीजों की सेवा में लगे रहे। जब डॉ. अजीत लगातार 107 दिनों तक बिना घर गए मरीजों की सेवा में लगे हुए थे, उस समय 15 अगस्त को उन्हें राष्ट्रपति भवन में दिल्ली के जाने माने डॉक्टर्स के सम्मान में आयोजित एक कार्यक्रम में भी शामिल होना था। डॉक्टर अजीत कार्यक्रम में जाने से पहले तक मरीजों की सेवा में लगे रहे। अस्पताल से निकलकर उन्होंने अपनी गाड़ी में ही पीपीई किट उतारकर कपड़े बदले और सीधे राष्ट्रपति भवन के कार्यक्रम में शामिल हुए। डॉ. अजीत ने कोरोना काल के दौरान जिस तरह से लोगों की सेवा के लिए घर पास में ही होने के बावजूद अपना सब कुछ भुलाकर काम किया वह अपने आप में एक मिसाल है।
2. प्रो. टीके लाहिड़ी (Dr. T. K. Lahiri)
प्रोफेसर डॉ. टी के लाहिड़ी (डॉ तपन कुमार लाहिड़ी) देश के जाने माने कार्डियोलॉजिस्ट हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त होने के बाद भी 81 वर्षीय डॉ. लहिड़ी मरीजों को निःशुल्क सेवा देने में लगे हुए हैं। पद्मश्री से सम्मानित डॉ. लाहिड़ी 90 के दशक से ही अपना वेतन और रिटायर होने के बाद अपनी पेंशन तक को गरीबों की सेवा के लिए दान कर रहे हैं। लोग डॉ. लाहिड़ी की तुलना डा. विधानचंद्र राय से करते हैं जिनकी जयंती पर देश में राष्ट्रीय डॉक्टर्स डे मनाया जाता है।
डॉ टीके लाहिड़ी को साल 2016 में चिकित्सा के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गए योगदान को सराहने के लिए भारत सरकार ने पद्मश्री सम्मान से नवाजा था। आज भी डॉ. लाहिड़ी के घर में सिर्फ कुछ जरूरत की चीजें ही मौजूद हैं। लोगों का निःशुल्क इलाज करने के लिए मशहूर डॉ. लाहिड़ी के लिए जरूरतमन्द मरीजों के आगे कोई नहीं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री साल 2017 में बनारस की प्रमुख हस्तियों से मुलाकात कर रहे थे लेकिन उस दौरान उन्होंने सीएम से मिलने को लेकर यह कहा था कि अगर उन्हें मिलना ही है तो वह मेरी ओपीडी में आकर मिलें। 81 साल की उम्र में भी मरीजों की निःस्वार्थ सेवा में लगे डॉ. लाहिड़ी समाज के लिए प्रेरणा हैं।
3. डॉ. रामचंद्र दांडेकर (Dr Ramchandra Dandekar)
आज के समय में चिकित्सा जहां व्यवसाय बन गया है, वहीं देश के कोने-कोने में ऐसे भी डॉक्टर मौजूद हैं, जो बिना खुद की परवाह किये दिन-रात लोगों की निःशुल्क सेवा में लगे हुए हैं। उन्हीं में से एक हैं डॉ रामचंद्र दांडेकर। 87 साल के डॉ रामचंद्र महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के रहने वाले हैं। इस उम्र में भी डॉ रामचंद्र निःस्वार्थ सेवा की ऐसी मिसाल हैं, जिनसे आने वाली कई पीढ़ियां प्रेरणा ले सकती हैं।
87 साल के हो चुके डॉ रामचंद्र दांडेकर पिछले 60 सालों से लोगों की निःशुल्क सेवा कर रहे हैं। डॉ. रामचंद्र ने होम्योपैथ में डिप्लोमा करने के बाद 1 साल तक बातौर लेक्चरर काम किया। डॉ. दांडेकर बताते हैं कि उन्हें उनके किसी करीबी ने ग्रामीण इलाके में लोगों की सेवा के लिए प्रेरित किया। जिसके बाद से अब तक लगातार वह बिना किसी लालच या मोह के लोगों की फ्री में सेवा कर रहे हैं।
डॉ. रामचंद्र जिस इलाके से आते हैं वहां आज भी आवागमन की सुविधा शहरों जैसी अच्छी नहीं है। इसलिए लोगों का इलाज करने के लिए वह सुबह 6 बजे साईकिल से अपने साथ दवाओं का बैग और टेस्ट किट लेकर निकल पड़ते हैं। इसके बाद वह इलाके में घूम-घूमकर लोगों का इलाज करते हैं और देर रात 12 से 1 बजे के करीब अपने घर लौटते हैं। कोरोना महामारी के दौरान भी डॉ. रामचंद्र दांडेकर ने अपनी जान की परवाह किये बिना लोगों की सेवा में लगातार लगे रहे। इस दौरान वह अपनी साईकिल पर सुबह इलाके के लोगों के इलाज के लिए निकलते थे और देर रात लोगों की सेवा कर घर वापस लौटते थे। ऐसे समय में जब पूरी दुनिया अपने घर से बाहर निकलने से डरती थी, डॉ रामचंद्र ने अपनी परवाह किये बिना लगातार लोगों की सेवन की। ओनलीमायहेल्थ ऐसे डॉक्टर के जज्बे और सेवा को नमन करता है।
4. प्रो रेखा सचान (Dr Rekha Sachan)
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में स्थित क्वीनमेरी अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. रेखा सचान महिलाओं के स्वास्थ्य पर निःस्वार्थ भाव के साथ लगातार काम कर रही हैं। हमारे देश में आज भी महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी है। ऐसे में डॉ. रेखा लगातार महिलाओं को जागरूक करने की दिशा में प्रयास कर रही हैं। ग्रामीण महिलाओं में स्वास्थ्य से जुड़े विषयों की जागरूकता हो और उन्हें अच्छा इलाज मिल सके, इसी प्रेरणा के साथ डॉ. रेखा लगातार काम कर रही हैं।
डॉ. रेखा सचान सही मायने में डॉक्टर्स को लेकर कही जाने वाली कहावत 'धरती के भगवान' को चरितार्थ कर रही हैं। ग्रामीण महिलाओं को स्वास्थ्य और सेहत से जुड़े मुद्दों पर जागरूक करने के लिए वह लगातार निःस्वार्थ भाव से काम कर रही हैं। डॉ. रेखा का मानना है कि महिलाओं में मेंस्ट्रुअल हाइजीन, ब्रेस्ट कैंसर, बच्चेदानी के कैंसर आदि से जुड़े विषयों में जागरूकता होने से वह इसका शिकार होने से बच सकती हैं। अपने कैंपेन के जरिए उन्होंने महिलाओं और खासतौर पर किशोरियों को इन विषयों पर जागरूक करने का बीड़ा उठाया है। इसके तहत डॉ. रेखा ग्रामीण इलाके में जाकर महिलाओं को निःस्वार्थ भाव से जागरूक करने में लगी हैं।
5. डॉ. रामनंदन सिंह (Dr. Ramnandan Singh)
डॉ. रामनंदन सिंह की कहानी बिहार के एक ऐसे डॉक्टर की कहानी है जिन्होनें अपने काम से मिसाल कायम की है। बिहार के शेखपुरा जिले के रहने वाले डॉ. रामनंदन बीते 35 सालों से मामूली फीस लेकर लोगों का इलाज कर न सिर्फ उनकी सेवा कर रहे हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर अपने मरीजों की आर्थिक मदद के लिए भी आगे आते हैं।
डॉ. रामनंदन सिंह ने रिम्स रांची से एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद सीधे गांव के लोगों की सेवा में जुट गए। डॉ. रामनंदन बताते हैं कि, "35 साल पहले जब मैंने अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की, तो मुझे लगा कि जिस इलाके से वे आते हैं वहां पर संसाधनों की कमी की वजह से स्वास्थ्य सेवा में बड़ा पिछड़ापन है और इसका शिकार लोग हो रहे हैं। उसके बाद मैंने अपनी पढ़ाई लोगों की सेवा के काम में लगा दी।" बीते 35 सालों से महज कुछ रुपये की फीस लेकर वह लोगों का इलाज कर रहे हैं। शुरुआत में डॉ रामनंदन सिर्फ 5 रुपये फीस लिया करते थे जिसके दशकों बाद अब वह 50 रुपये लेकर मरीजों का इलाज करते हैं। डॉ. बताते हैं कि सुबह 8 बजे से लेकर रात के 8 बजे तक वह लगातार मरीजों की सेवा में लगे रहते हैं।
कोरोना काल के दौरान भी उन्होंने मरीजों की सेवा बिना खुद की परवाह किए निःस्वार्थ भाव से की। 68 साल की उम्र में वह आज भी रोजाना 12 घंटों से ज्यादा मरीजों का इलाज करने में लगाते हैं। यही नहीं डॉ. रामनंदन को जानने वाले लोग बताते हैं कि वह न सिर्फ मामूली फीस लेकर अपने मरीजों को उचित इलाज देते हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर उनकी आर्थिक सहायता भी करते हैं। एक तरफ जहां पढ़ाई पूरी होने के बाद लोग बड़े पैकेज वाली नौकरी के पीछे भागना शुरू कर देते हैं। वहीं डॉ. रामनंदन ने अपने गांव और जिले के लोगों की सेवा करने की ठानी। उनकी यह कहानी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है। हम डॉ. रामनंदन के जज्बे को सलाम करते हैं।
इन सभी डॉक्टर्स के अलावा देश के कोने-कोने में कई ऐसे डॉक्टर्स हैं, जो दिन-रात बिना किसी स्वार्थ या लालच के मानवता की सेवा में लगे हुए हैं। भारतीय चिकित्सा शास्त्र के जनक माने जाने वाले मनीषी चरक ने कहा था कि, "मरीज किसी चिकित्सक को उसकी सेवा या चिकित्सा के बदले धन दे सकता है और अगर धन न हो तो कोई उपहार दे सकता है। अगर उसके पास यह भी न हो, तो उसके ज्ञान और कौशल का प्रचार कर सकता है और अगर कुछ नहीं कर सकता, तो ईश्वर से ऐसे चिकित्सक या डॉक्टर के भले के लिए प्रार्थना जरूर कर सकता है।" इस डॉक्टर्स डे के मौके पर Onlymyhealth देश के उन सभी डॉक्टर से जज्बे और लगन को सलाम करता है, जो समाज की सेवा में अपनी जान की परवाह किये बिना निःस्वार्थ भाव से लगे हुए हैं। अगर इन डॉक्टर्स की कहानी ने आपको प्रभावित किया है, तो आप इसे दूसरों के साथ जरूर साझा करें और जीवन में दूसरों की भलाई करने का संकल्प लें।
Source: onlymyhealth