बिहार के शिक्षा मंत्री इन दिनों मानसिक रूप से बीमार हो गए है - आलोक कुमार सिंह
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औरंगाबाद: (बिहार) भाजपा के जिला मंत्री, आलोक कुमार सिंह ने सोशल मीडिया के माध्यम से लिखित भेजते हुए कहा है कि सुर्खियों में बने रहने के लिए बिहार के शिक्षा मंत्री, चंद्रशेखर इन दिनों मानसिक रूप से बीमार हो गए हैं. इसीलिए रामचरित्र मानस जैसे धार्मिक ग्रंथों के कुछ चौपाई को तोड़ - मडोड कर अपने राजनीतिक एजेंडे के तहत प्रस्तुत कर रहे हैं. राज्य की शिक्षा व्यवस्था आज दो राहों पर खड़ी है.
शिक्षा व्यवस्था में सुधार की कोई नीति बनाने के बजाय सिर्फ समाजिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए ही रामचरित्र मानस जैसे धर्म ग्रंथ का भी अपमान कर रहे हैं. बिहार में शिक्षा मंत्री के नाते उन्हें यह बताना चाहिए कि बिहार के शिक्षा व्यवस्था में वित्त रहित शिक्षक, नियोजित शिक्षक, शारीरिक शिक्षक, और पुस्तकालय शिक्षको के मानदेय विसंगति को दूर करने को लेकर क्या योजना है. जिस विद्यालय के पास पर्याप्त भवन, भूमि, उपस्कर और शिक्षक नही है. फिर भी उन्हें उत्क्रमित कर माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालय बनाने के पीछे क्या योजना है. मध्य विद्यालय स्तर पर नियोजित प्रक्रिया के तहत नियोजन किए गए फिजिकल टीचर को मानदेय मात्र 7,000 हजार रुपया किस नैसर्गिक प्रक्रिया के तहत है. क्या शिक्षा मंत्री के नाते आपको पता है कि मध्य विद्यालयों को दिया गया कम्यूटर कितने दिन चल सका और उसकी क्या स्थिति है.
सिमुलतला विद्यालय अपने आरंभिक काल के गौरव को खोता जा रहा है. आखिर ऐसा क्यो. इसके बाद जिला मंत्री, आलोक कुमार सिंह ने कहा है कि शिक्षा मंत्री जी राज्य की शिक्षा जरूरतों को पूरा करने में वित्त रहित शिक्षको का योगदान लगभग 60 प्रतिशत से अधिक है. फिर भी आखिर क्या कारण है कि वित्त रहित शिक्षको को छात्र उतीर्णता के आधार पर दिया जाने वाला अनुदान 2016 से क्यों बंद है. जिस संस्थान के पास भूमि, उपस्कर, भवन, तकनीकी शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था, सुसज्जित प्रयोगशाला एवं व्यवस्थित पुस्तकालय के साथ ही दशकों से शिक्षा दान कर रहे योग्य शिक्षक है. उन्हें जांच के नाम पर मानसिक तथा आर्थिक प्रताड़ना दिया रहा है. तो बिना मानकों के पूरा किए हुए ही उत्क्रमित कर खुद की पीठ थपथपा रहे हैं.
रामचरित्र मानस और गीता जैसे ग्रंथ सम्पूर्ण मानव के लिए संयमित जीवन का आधार है. शिक्षा मंत्री को यह पता होना चाहिए, कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने जो मर्यादा इस दुनिया को दिया. उसी मर्यादा के तहत स्वयं शिक्षा मंत्री के माता पिता संस्कारित हुए है. भगवान राम ने स्वयं केवट को अपना मित्र बनाया. वनवास गमन के समय अयोध्या साम्राज्य के सानिध्य में कई ऐसे क्षत्रप थे. जो राम को सहायता प्रदान कर सकते थे. किन्तु भगवान श्रीराम ने अपने वनवास आदर्शों को स्थापित करने के लिए बाली, सुग्रीव, जामवंत, हनुमान जैसे वनवासियों को भी अपना सहचर बनाया. जटायु जैसे पक्षी को भी उचित सम्मान देने का गौरव बनाया. माता सबरी का जूठा बैर भी खाकर माता की ममता को रेखांकित किया. वही चंद्रशेखर जी राजनीतिक कुंठा और सत्ता के अहंकार वश अपना निजी राजनीतिक एजेंडा साधने के लिए वैमनस्यता फैला रहे हैं. इस देश मे लोग आपसी भाईचारे के साथ रह रहे हैं. तभी तो जीतनराम मांझी हो या भागीरथी देवी. या आज देश के सर्वोच्च पद पर द्रौपदी मुर्मू को भी बैठाया जाना देश की सामाजिक भावना का प्राकट्य है.
आज देश के किसी भी मंदिरों में किसी भी जाति के लोगो के साथ कोई भेद भाव नही है.
इसलिए शिक्षा मंत्री को यह बताना चाहिए कि आखिर मुख्यमंत्री किस अधिकार के साथ अपने दौरे में गया आने पर एक मुस्लिम मंत्री को पवित्र विष्णुपद मंदिर में जहां अहिन्दू प्रवेश निषेध था. प्रवेश करवाकर मंदिर की व्यवस्था को छीन - भिन्न किया. क्या किसी मुख्यमंत्री और मंत्री को किसी के धार्मिक व्यवस्था को तार - तार करने का हक है. क्या मुख्यमंत्री जी को अधिकार है कि मस्जिद में हिंदुओ को साथ ले जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करवा सकते हैं. आज जरूरत है. शिक्षा की जन आकांक्षाओं के अनुरूप युवा हित मे बनाया जाए.
-अजय कुमार पाण्डेय