मंडावली बी ब्लॉक में 14 वर्षीय ज़ोया चौधरी बनीं कुरान हाफिज
14 वर्षीय लड़की ज़ोया चौधरी ने कुरान पाक को मुकम्मल याद किया है.
परिवार और समुदाय के लिए गर्व का क्षण
नई दिल्ली, 25 अक्टूबर 2024: मंडावली बी ब्लॉक इलाके में पहली बार 14 वर्षीय लड़की ज़ोया चौधरी ने कुरान पाक को मुकम्मल याद किया है. उनके पिता का नाम आफताब चौधरी है. यह उनके परिवार के लिए बेहद खुशी का पल है कि उनकी बेटी ने कुरान शरीफ को पूरा याद कर लिया है.
ज़ोया का सफर आसान नहीं था. आज के समय में, जब बच्चों को स्कूल की पढ़ाई में पूरा दिन लग जाता है, ज़ोया ने कुरान शरीफ के 30 पारों को याद करके एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है. उनका यह समर्पण उन्हें न केवल उनके परिवार में, बल्कि पूरे समुदाय में एक खास पहचान दिलाता है. अब उनके नाम के आगे हाफिज जुड़ गया है.
परिवार का समर्थन
ज़ोया का परिवार हमेशा से उसके सपनों को साकार करने में मददगार रहा है. उनके पिता, आफताब चौधरी, ने ज़ोया को धार्मिक शिक्षा पर जोर देने के लिए प्रोत्साहित किया. वे कहते हैं, "मुझे गर्व है कि मेरी बेटी ने इतनी छोटी उम्र में कुरान को याद किया है. यह न केवल हमारे परिवार, बल्कि पूरे समुदाय के लिए एक प्रेरणा है."
ज़ोया की माँ, नूरी चौधरी, भी अपने बच्चों को धार्मिक और शैक्षणिक दोनों क्षेत्रों में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. उन्होंने हमेशा ज़ोया को यह समझाया कि शिक्षा का महत्व केवल स्कूल की किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि धर्म और संस्कृति को भी जानना जरूरी है.
मोहम्मदी मस्जिद का योगदान
मोहम्मदी मस्जिद में कुरान शरीफ की पढ़ाई कराने वाले मुफ्ती नूर आलम साहब की मेहनत का भी बड़ा योगदान है. मुफ्ती साहब ने ज़ोया को अपने समर्पण और मेहनत से शिक्षा दी. उन्होंने न केवल ज़ोया बल्कि कई अन्य बच्चों को भी हाफिज बनाने का कार्य किया है. उनका मानना है कि शिक्षा केवल ज्ञान प्राप्त करने का साधन नहीं है, बल्कि यह एक व्यक्ति की पहचान भी बनाती है.
मुफ्ती नूर आलम कहते हैं, "ज़ोया जैसी छात्राएं हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. उनका समर्पण और मेहनत देख कर मुझे बहुत खुशी होती है. जब मैं देखता हूँ कि मेरे छात्र कुरान को याद कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि मैंने सही दिशा में काम किया है."
समुदाय की सराहना
ज़ोया की इस उपलब्धि को लेकर मंडावली बी ब्लॉक के लोग बहुत खुश हैं. मोहम्मदी मस्जिद की कमेटी ने ज़ोया चौधरी को हाफिज की उपाधि देकर उनका हौसला बढ़ाया और उन्हें ढेर सारी बधाइयाँ दीं. कमेटी के सदस्यों का मानना है कि ज़ोया की सफलता से अन्य बच्चे भी प्रेरित होंगे और वे भी कुरान पढ़ने की ओर अग्रसर होंगे.
एक स्थानीय निवासी ने कहा, "ज़ोया ने हमें दिखाया है कि यदि आप मेहनत करते हैं, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है. हमें गर्व है कि हमारे समुदाय में ऐसी प्रतिभाएँ हैं."
ज़ोया की प्रेरणा
ज़ोया की इस उपलब्धि ने कई बच्चों को प्रेरित किया है. अब उनके सहपाठी भी कुरान पढ़ने के लिए प्रेरित हो रहे हैं. ज़ोया का सपना है कि वह भविष्य में एक धार्मिक शिक्षक बने और औरों को भी कुरान की शिक्षा दे. वह कहती हैं, "मैं चाहती हूँ कि हर बच्चा कुरान पढ़े और इस ज्ञान को अपनी ज़िंदगी में उतारे."
ज़ोया का यह समर्पण न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे समुदाय के लिए एक प्रेरणा है. उनका मानना है कि कुरान की शिक्षा जीवन को सही दिशा देती है और इससे इंसान के चरित्र में निखार आता है.
आने वाले दिन
ज़ोया के हाफिज बनने के बाद, मोहम्मदी मस्जिद में विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में ज़ोया को सम्मानित किया गया और समुदाय के सभी लोगों ने उनके लिए दुआ की. यह कार्यक्रम न केवल ज़ोया के लिए, बल्कि पूरे समुदाय के लिए गर्व का क्षण था.
ज़ोया की सफलता की कहानी अब स्थानीय स्कूलों में चर्चा का विषय बन गई है. कई बच्चे और उनके माता-पिता अब ज़ोया की तरह अपने बच्चों को कुरान की पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.
निष्कर्ष
इस तरह, ज़ोया चौधरी की कहानी न केवल एक लड़की की मेहनत की कहानी है, बल्कि यह समाज में धार्मिक शिक्षा के महत्व को भी उजागर करती है. यह हमें यह सिखाती है कि शिक्षा का कोई एक रास्ता नहीं होता, बल्कि इसे विभिन्न माध्यमों से प्राप्त किया जा सकता है. ज़ोया ने हमें यह दिखाया है कि यदि मन में जज़्बा हो, तो हर किसी के लिए अपने सपनों को पूरा करना संभव है.
ज़ोया चौधरी की कहानी एक नई शुरुआत का प्रतीक है, जो न केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि पूरे समुदाय के लिए एक प्रेरणा बनकर उभरी है. माशाल्लाह, ज़ोया के इस सफर की शुरुआत से उम्मीद की एक नई किरण भी जागी है.
by Shahbuddin Ansari.